शरद पूर्णिमा के दिन अनुष्ठान करने से सभी कामों में मिलती है सफलता
मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था और यह भी मान्यता प्रचलित है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इसी कारण से उत्तर भारत में इस दिन खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है।
आश्विन मास की पूर्णिमा का दिन शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार पूरे साल केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिंदू धर्म में लोग इस पर्व को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था और यह भी मान्यता प्रचलित है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इसी कारण से उत्तर भारत में इस दिन खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है।
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महात्म्य- मान्यता है कि इस दिन कोई व्यक्ति यदि कोई अनुष्ठान करता है तो उसका अनुष्ठान अवश्य सफल होता है। इस दिन व्रत कर हाथियों की आरती करने पर उत्तम फल मिलते हैं। आश्विन मास की पूर्णिमा को आरोग्य हेतु फलदायक माना जाता हे। मान्यता के अनुसार पूर्ण चंद्रमा अमृत का स्रोत है और इस पूर्णिमा को चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि के समय खीर को चंद्रमा की चांदनी में रखकर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है। चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा भोजन में समाहित हो जाती है जिसका सेवन करने से सभी प्रकार की बीमारियां दूर हो जाती हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों में भी इसकी चांदनी के औषधीय महत्व का वर्णन मिलता हे। खीर को चांदनी में रखकर अगले दिन इसका सेवन करने से असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन प्राकृतिक औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। लंकापति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिये।
- मृत्युंजय दीक्षित
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