घर में लक्ष्मीजी का स्थायी निवास चाहते हैं तो इन बातों का ध्यान रखना होगा
देवी महालक्ष्मी आदिभूता, त्रिगुणमयी और परमेश्वरी हैं। व्यक्त और अव्यक्त भेद से उनके दो रूप हैं। वे उन दोनों रूपों से सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त करके स्थित हैं। स्त्री रूप में इस संसार में जो कुछ भी दृश्यमान है, वह सब लक्ष्मीजी का ही विग्रह है।
हर किसी की चाहत होती है कि माँ लक्ष्मी का उसके घर-परिवार में स्थायी निवास रहे। इसके लिए लोग तमाम तरह के प्रयत्न भी करते हैं। यह प्रयत्न कभी सफल होते हैं तो कभी नहीं हो पाते। लेकिन आइये दीपावली से पहले हम आपको बताते हैं कि माँ लक्ष्मी कैसे किसी के घर में अपना स्थायी निवास बनाती हैं और उसके घर को धन-धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं। सबसे पहले हमको यह जानना चाहिए कि जिस स्थान पर भगवान श्रीहरि की चर्चा होती है और उनके गुणों का कीर्तन होता है, वहीं पर सम्पूर्ण मंगलों को भी मंगल प्रदान करने वाली भगवती लक्ष्मी सदैव निवास करती हैं। जहां भगवान श्रीकृष्ण का तथा उनके भक्तों का यश गाया जाता है, वहीं उनकी प्राणप्रिया भगवती लक्ष्मी सदा विराजती हैं। जिस स्थान पर शंख ध्वनि होती है तथा शंख, तुलसी और शालग्राम की अर्चना होती है, वहां भी लक्ष्मी सदा स्थित रहती हैं। इसी प्रकार जहां शिवलिंग की पूजा, दुर्गा की उपासना, ब्राह्मणों की सेवा तथा सम्पूर्ण देवताओं की अर्चना की जाती है, वहां भी पद्ममुखी साध्वी लक्ष्मी सदा विद्यमान रहती हैं।
देवी लक्ष्मी की उपासना विधि
देवी लक्ष्मी की उपासना विषयक परम्परा अत्यत्न प्राचीन है। भाद्रमास की शुक्लाष्टमी से लेकर आश्विन−कृष्णाष्टमीतक लक्ष्मी व्रत का विधान है इससे ऐश्वर्य, सौभाग्य, धन, पुत्रादि की प्राप्ति होती है। लोक−परम्परा में आश्विन पूर्णिमा और कार्तिक अमावस्या 'दीपावली' को लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। प्रकाश और समृद्धि की देवी के रूप में विष्णु की शक्ति लक्ष्मी का दीपमालिकोत्सव से भी संबंध है। उस दिन अर्धरात्रि में इनकी विशेष पूजा होती है। पुराणों और आगमों में इनके अनेक स्त्रोत हैं जिनमें इनके चरित्र भी उपनिबद्ध हैं। इन सभी स्रोतों में इन्द्र द्वारा किया गया संस्तवन 'श्रीस्त्रोत्र' सर्वाधिक विख्यात है। वह अग्नि, विष्णु तथा विष्णुधर्मोत्तर आदि पुराणों में प्रायः यथावत रूप में प्राप्त होता है। राष्ट्रसंवर्धन और राज्यलक्ष्मी के संरक्षण के लिए इसका पाठ विशेष श्रेयस्कर माना गया है। इनकी दशांग उपासना की सम्पूर्ण विधि पटल, पद्धति, शतनाम, सहस्त्रनाम आदि स्तोत्रों और श्रीसूक्त के सम्पूर्ण विधान लक्ष्मीतन्त्र आदि विविध आगमों में प्राप्त है, जिनका एकत्र संग्रह शाक्तप्रमोद में श्रीकमलात्मिका प्रकरण में प्राप्त होता है। सौभाग्यलक्ष्मी उपनिषद में भी इनकी उपासना की सम्पूर्ण विधि प्रतिपादित है। इनकी आराधना से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति एवं अनेक प्रकार के अभीष्टों की सिद्धि सहज हो जाती है।
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देवी लक्ष्मी का ध्यान कैसे लगाएं
देवी महालक्ष्मी आदिभूता, त्रिगुणमयी और परमेश्वरी हैं। व्यक्त और अव्यक्त भेद से उनके दो रूप हैं। वे उन दोनों रूपों से सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त करके स्थित हैं। स्त्री रूप में इस संसार में जो कुछ भी दृश्यमान है, वह सब लक्ष्मीजी का ही विग्रह है। भगवती महालक्ष्मी के अनेक ध्यान हैं, यहां शारदातिलक से एक ध्यान श्लोक दिया जा रहा है−
कान्त्या कान्चनसंनिभां हिमगिरिप्रख्यैश्चतुर्भिगजै र्हस्तोत्क्षिप्तहिरण्मयामृतघटैरासिच्यमानां श्रियम।
बिभ्राणां वरमब्जयुग्ममभयं हस्तेः किरीटोज्जवलां क्षौमाबद्धनितम्बबिम्बलसितां वन्देरविन्दस्थिताम्।।
उक्त श्लोक का अर्थ है- जिनकी कान्ति सुवर्ण वर्ण के समान प्रभायुक्त है और जिनका हिमालय के समान अत्यन्त उंचे उज्ज्वल वर्ण के चार गजराज अपनी सूंडों से अमृत कलश के द्वारा अभिषेक कर रहे हैं, जो अपने चार हाथों में क्रमशः वरमुद्रा, अभयमुद्रा और दो कमल धारण किये हुई हैं, जिनके मस्तक पर उज्ज्वल वर्ण का भव्य करीट सुशोभित है, जिनके कटि प्रदेश पर कौशेय वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी कमल पर स्थित भगवती लक्ष्मी की मैं वंदना करता हूं।
माँ लक्ष्मी की महत्ता
भगवती महालक्ष्मी भगवान विष्णु की अभिन्न शक्ति हैं और सूर्य एवं उनकी प्रभा तथा अग्नि की दाहिका शक्ति एवं चंद्रमा की चंद्रिका के समान वे उनकी नित्य सहचरी हैं। पुराणों के अनुसार वे पद्मवनवासिनी, सागरतनया और भृगु की पत्नी ख्याति की पुत्री होने से भार्गवी नाम से विख्यात हैं। इन्हें पद्मा, पद्माल्या, श्री, कमला, हरिप्रिया, इंदिरा, रमा, समुद्रतनया, भार्गवी, जलधिजा इत्यादि नामों से भी अभिहित किया गया है। इनके कई शतनाम तथा सहस्त्र नामस्त्रोत उपलब्ध होते हैं। ये वैष्णवी शक्ति हैं। भगवान विष्णु जब−जब अवतीर्ण होते हैं, तब−तब वे लक्ष्मी, सीता, राधा, रुक्मिणी आदि रूपों में उनके साथ अवतरित होती हैं। महाविष्णु की लीला विलास सहचरी देवी कमला की उपासना वस्तुतः जगदाधार शक्ति की उपासना है। इनकी कृपा के अभाव से जीव में ऐश्वर्य का अभाव हो जाता है। विश्व भर की इन आदिशक्ति की उपासना आगम−निगम सभी में समान रूप से प्रचलित है। इनकी गणना तांत्रिक ग्रंथों में दस महाविद्याओं के अन्तर्गत कमलात्मिका नाम से हुई है।
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पुराणों के अनुसार प्रमादग्रस्त इन्द्र की राज्यलक्ष्मी महर्षि दुर्वासा के शाप से समुद्र में प्रविष्ट हो गईं फिर देवताओं की प्रार्थना से जब वे प्रकट हुईं, तब उनका सभी देवता, ऋषि−मुनियों ने अभिषेक किया और उनके अवलोकन−मात्र से सम्पूर्ण विश्व समृद्धिमान तथा सुख−शांति से संपन्न हो गया। इससे प्रभावित होकर इन्द्र ने उनकी दिव्य स्तुति की, जिसमें कहा गया है कि लक्ष्मी की दृष्टि मात्र से निर्गुण मनुष्य में भी शील, विद्या, विनय, औदार्य, गाम्भीर्य, कान्ति आदि ऐसे समस्त गुण प्राप्त हो जाते हैं जिससे मनुष्य सम्पूर्ण विश्व का प्रेम तथा उसकी समृद्धि प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार का व्यक्ति सम्पूर्ण विश्व का आदर एवं श्रद्धा का पात्र बन जाता है।
-शुभा दुबे
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