श्री हनुमान चालीसा के पाठ से 'ऐसे सुधारें' अपना जीवन
मनुष्य के जीवन में तमाम तरीके की कठिनाइयां और समस्याएं समय-समय पर आती रहती हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मनुष्य के जीवन में आने वाली तमाम समस्याओं का समाधान आपको हनुमान चालीसा में मिलेगा।
रामचरित्र मानस की रचना के बाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त श्री हनुमान जी की लीलाओं के वर्णन के लिए हनुमान चालीसा की रचना की। गोस्वामी तुलसीदास ने इस चालीसा में 40 छंदों के द्वारा भगवान बजरंग बली के चरित्र और उनके गुणों का बखान किया है। कहते हैं कि जो भी मनुष्य अपने जीवन में श्री हनुमान चालीसा का पाठ करता है वह हर तरीके से सुखमय और मालामाल हो जाता है। मालामाल से तात्पर्य केवल आर्थिक रूप से ही नहीं, बल्कि निरोगी काया, सुंदर मन, सुंदर शरीर और गुणवान होने से है।
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हनुमान चालीसा पढ़ने के लाभ
मनुष्य के जीवन में तमाम तरीके की कठिनाइयां और समस्याएं समय-समय पर आती रहती हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मनुष्य के जीवन में आने वाली तमाम समस्याओं का समाधान आपको हनुमान चालीसा में मिलेगा। आज हम आपको जीवन से जुड़ी कुछ कठिनाइयों और हनुमान चालीसा द्वारा उससे छुटकारा पाने के बारे में बात करेंगे।
मनोकामना को पूर्ण करने वाला
इंसान के मन में तमाम चीजों को पाने की इच्छा रहती है और उसकी मनोकामना रहती है कि वह किसी भी प्रकार से अपने जीवन में इस मनोकामना को पूर्ण कर पाए। हनुमान चालीसा में इसका वर्णन मिलता है, जिसके पाठ से आप अपनी मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं।
'और मनोरथ जो कोई लावे, सोई अमित जीवन फल पावे'
अनचाहे डर और भय से मुक्ति पाने के लिए
आपको कोई अनजाना डर सता रहा है या फिर भूत- पिशाच से डर लगता हो तो आप हनुमान चालीसा में वर्णित इस छंद का पाठ कर इससे मुक्ति पा सकते हैं।
'भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे'
शारीरिक बीमारी से मुक्ति
लंबे समय से जूझ रहे शारीरिक बीमारी से मुक्ति के लिए हनुमान चालीसा के इस छंद का पाठ करें
'नासै रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा'
संकट के समय रक्षा के लिए
अगर आप किसी बड़ी समस्या यह संकट में फंस गए हैं और आपके सामने कोई रास्ता नहीं दिख रहा हो तो आप हनुमान चालीसा में वर्णित इस छंद का पाठ कर सकते हैं।
'संकट कटे मिटे सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा
संकट ते हनुमान छोड़ावे मन क्रम वचन ध्यान जो लावे'
बुरी संगत से बचने के लिए
अगर आप किसी बुरी संगत में पड़ गए हैं और उससे छुटकारा चाहते हैं, लेकिन लाख प्रयास के बाद भी अगर आप छुटकारा नहीं पा रहे हैं, तो आप हनुमान चालीसा में वर्णित इस छंद का पाठ रोज करें।
'महावीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी'
विद्यार्थी करें इसका पाठ
अगर आप विद्यार्थी हैं और पढ़ाई में आपका मन नहीं लग रहा है तो आप इस छंद का रोज जाप करें।
'बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार'
लंबे समय से कार्य अटका पड़ा हो...
अगर आपका कोई कार्य बहुत दिनों से अटका पड़ा हो या फिर लाख प्रयत्न के बावजूद आपका कार्य पूर्ण नहीं हो रहा है, तो आप यह छंद बार-बार दोहराएं।
'भीम रूप धरि असुर संहारे रामचंद्र के काज सँवारे'
मन व्याकुल हो तो?
अगर आपका मन विचलित हो रहा है और किसी भी चीज में नहीं लग रहा है तो यह छंद दोहरा सकते हैं।
'सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना'
अगर आप लगातार ध्यान पूर्वक हनुमान चालीसा का पठन-पाठन करेंगे तो पाएंगे कि इस चालीसा के 40 छंद आप के जीवन से जुड़ी तमाम समस्याओं के निवारण में मददगार साबित होंगे।
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कब करें हनुमान चालीसा का पाठ?
वैसे तो हनुमान चालीसा का पाठ शुरू करने के लिए किसी विशेष समय की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि भगवान महावीर पवन पुत्र हैं और पवन के वेग से ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं। इसीलिए जब भी आपको लगे कि आप हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहते हैं तो स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन से हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर सकते हैं। इतना ही नहीं, हनुमान चालीसा को लेकर कहा जाता है कि अगर कोई मनुष्य अपने जीवन में नियमित ढंग से हनुमान चालीसा का पाठ करता है तो वह इस भवसागर से मुक्त हो जाएगा और बैकुंठ में श्री राम के चरणों में उसे स्थान मिल जायेगा।
शास्त्रों में हनुमान चालीसा पढ़ने के नियम
हालांकि शास्त्रों में हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए नियम का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार हनुमान चालीसा को मंगलवार या शनिवार के दिन शुरू करना चाहिए और अगले 40 दिन तक इसका नियमित पाठ करना चाहिए। यह कार्य सुबह सूर्योदय के पूर्व यानि कि सुबह 4 बजे शुरू करना होता है। इसके बाद जब हनुमान चालीसा का संपूर्ण पाठ हो जाये तो अपने घर में ही छोटा सा हवन अवश्य करें और भगवान हनुमान को बूंदी और चूरमा का भोग लगाएं।
भगवान को लगा भोग बंदरों को अवश्य खिलाएं। इसके बाद इस प्रसाद को आप अपने परिवारजनों और मित्रों तथा पड़ोसियों को दे सकते हैं।
।। अथ श्री हनुमान चालीसा ।।
।। दोहा।।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
।। चौपाई।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मुँज जनेऊ साजै।।
शंकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे।।
लाय संजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हरी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दु:ख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि–भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत् सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटै मिटे सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गौसाईं। वृपा करहु गुरुदेव की नाईं।
जो त बार पाठ कर कोई। छुटहि बंदि महासुख होई।
जो यह पढ़ै हनुमान् चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
।।। दोहा।।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
- विंध्यवासिनी सिंह
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