चीन, रूस और पाकिस्तान आखिर क्यों बन गए तालिबान के चियर लीडर्स? रिश्ते बनाने के लिए हैं उतावले
चीन को भय सता रहा है कि तालिबान और उसके समर्थक गुट चीन में मुसलमानों के पक्ष में आकर आतंकवाद को बढ़ावा दे सकते हैं। रूस की नजर अफगानिस्तान के बंदरगाहों पर रही है। रूस अफगानिस्तान के रास्ते ईरान होते हुए अरब की खाड़ी पहुंच सकता है। पाकिस्तान तालिबान के जरिये कश्मीर का ख्वाब देख रहा है।
वर्तमान दौर में ये एक शाश्वत सत्य है कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। उसे चीन और रूस जैसे देशों का भी समर्थन मिल चुका है। चीन कह रहा है कि तालिबान बदल गया है। रूस का कहना है कि तालिबान को मौका मिलना चाहिए। पाकिस्तान तो इतना गदगद है कि उसकी खुशी छिपाए नहीं छिप रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये सारे देश तालिबान के चियर लीडर क्यों बन गए हैं।
अफगानिस्तान के खनिजों पर चीन की नजर
दरअसल, चीन चाहता है कि शिनजियांग क्षेत्र में उसके उईगर मुसलमानों पर अत्याचार का मुद्दा है वो रूस चाहता है कि आईएसआईएस और अलकायदा सेंट्रल एशिया में नहीं आए। हर देशों का अपना हित है इसलिए वो इन पर ऊंगलियां नहीं उठा रहे हैंं। तालिबान जब काबुल से आठ दिन दूर था तब चीन के विदेश मंत्री वांग वी तालिबानी नेता अब्दुल गनी बरादर से बात कर रहे थे। चीन ने एक तरह से पहले ही तालिबान को मान्यता दे दी थी। क्योंकि उसे इल्म हो चुका था कि अफगानिस्तान का नया आका तालिबान ही होगा। चीन ने मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में जनता पर बर्बर रुख अपना रखा है। दुनिया के मुसलमानों के हिमायती पाकिस्तान ने भी चीन के मुसलमानों से मुंह मोड़ रखा है। चीन को भय सता रहा है कि तालिबान और उसके समर्थक गुट चीन में मुसलमानों के पक्ष में आकर आतंकवाद को बढ़ावा दे सकते हैं। इसके अलावा चीन की नजर अफगानिस्तान में मिलने वाले तांबे, अभ्रक और लीथियम जैसे खनिजों पर है जिसकी कीमत लगभग 75 लाख करोड़ रुपये है। इलेक्ट्रिक की गाड़िया और मोबाइल की बैट्री बनाने के लिए लीथियम और कॉपर यानी तांबे का इस्तेमाल होता है। चीन को लग रहा है कि तालिबान को सरकार चलाने के लिए पैसों की जरूरत पड़ेगी जिसका इंतजाम वो आसानी से कर सकता है। बदले में उसे खानें मिल सकती है।
इसे भी पढ़ें: अमरुल्लाह सालेह ने पाक के मंसूबों को किया बेनकाब, US की मदद वाली रकम का इस्तेमाल तालिबान के पालन-पोषण में किया
तालिबान को क्यों मिल रहा रूस का साथ?
1980 के अंत में रूस को जिस तरह से अफगानिस्तान से परास्त होकर बाहर निकलना पड़ा था। एकदम उसी तर्ज पर 2021 में अमेरिका भी अफगानिस्तान से बाहर हुआ है। अमेरिकी सैनिकों के बाहर निकलते ही चीन का प्रभाव तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान समेत समूचे मध्य एशियाई के देशों में बढ़ जाएगा। यह पूरा क्षेत्र रूस का आंगन कहलाता है। यह देश पहले सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे। जाहिर है कि अगर ड्रैगन का प्रभाव इस क्षेत्र में बढ़ता है तो रूस को डर है कि उसकी साख कम होगी। तालिबान की जीत के साथ रूस को मध्य एशिया में अपने लिए भारी गुंजाइश दिख रही है। रूस की नजर अफगानिस्तान के बंदरगाहों पर रही है। रूस अफगानिस्तान के रास्ते ईरान होते हुए अरब की खाड़ी पहुंच सकता है। इसके अलावा तालिबान को खुश रखने में चेचन्या विद्रोहियों पर लगाम लगाने में सहायता मिलेगी।
तालिबान के जरिये कश्मीर का ख्वाब देख रहा पाकिस्तान
अफगानिस्तान में तालिबान राज आने पर जश्न मनाने वाली इमरान खान सरकार की पीटीआई की तरफ से दावा किया गया कि ने कहा कि तालिबान पाकिस्तान के साथ है। तालिबान आएंगे और कश्मीर को जीतकर उसे पाकिस्तान को देंगे। इसके साथ ही इमरान खान खुले तौर पर कह चुके हैं कि अफगानिस्तान गुलामी की जंजीरों से आजाद हो गया।
अन्य न्यूज़