India Canda Relations Part 4 | खालिस्तान के नाम से ही इतना डर क्यों जाते हैं कनाडा के पीएम | Teh Tak

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अभिनय आकाश । Nov 20 2024 6:51PM

एक पत्रकार ने जब जस्टिन ट्रूडो से सवाल किया कि भारत का कहना है कि आप सिख चरमपंथियों पर नरम रुख अपनाते हैं। क्योंकि आप उस समुदाय के वोटों पर निर्भर हैं। इस पर जस्टिन ट्रूडो ने जवाब दिया कि भारत सरकार गलत है। कनाडा ने हमेशा हिंसा और हिंसा की धमकियों को बेहद गंभीरता से लिया है। बयान देते हुए जस्टिन ट्रूडो इतना डरे हुए थे कि वो खालिस्तानी शब्द का इस्तेमाल तक नहीं कर पाए। जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि भारत को ऐसा नहीं कहना चाहिए कि हम खालिस्तानियों के खिलाफ एक्शन नहीं ले रहे। लेकिन आपको जस्टिन ट्रूडो का एक पाखंड बताते हैं।

 स्वाभाविक ही सवाल उठता है कि आखिर टूडो सरकार इस तरह की हरकतें क्यों कर रही है जो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के तय मानकों में कहीं से फिट नहीं बैठतीं। घटनाओं और हालात के जरिए इसे समझने की कोशिश करें तो यह जाहिर हो जाता है कि वह घरेलू राजनीतिक दबावों और चुनावी फायदों से निर्देशित हो रही है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मानक और द्विपक्षीय रिश्तों की बेहतरी कम से कम फिलहाल उसकी प्राथमिकता में नहीं हैं। 

खालिस्तानियों के खिलाफ एक्शन लेने से खौफ खाते ट्रूडो 

एक पत्रकार ने जब जस्टिन ट्रूडो से सवाल किया कि भारत का कहना है कि आप सिख चरमपंथियों पर नरम रुख अपनाते हैं। क्योंकि आप उस समुदाय के वोटों पर निर्भर हैं। इस पर जस्टिन ट्रूडो ने जवाब दिया कि भारत सरकार गलत है। कनाडा ने हमेशा हिंसा और हिंसा की धमकियों को बेहद गंभीरता से लिया है। बयान देते हुए जस्टिन ट्रूडो इतना डरे हुए थे कि वो खालिस्तानी शब्द का इस्तेमाल तक नहीं कर पाए। जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि भारत को ऐसा नहीं कहना चाहिए कि हम खालिस्तानियों के खिलाफ एक्शन नहीं ले रहे। लेकिन आपको जस्टिन ट्रूडो का एक पाखंड बताते हैं। जिस वक्त जस्टिन ट्रूडो भारत को गलत बोल रहे थे। ठीक उसी समय कनाडा में भारतीय दूतावास के बाहर भारतीय राजनयिकों की एक पोस्टर लगी थी। जिसमें उन्हें निशाना बनाए जाने की बात कही गई थी। यानी खालिस्तानी समर्थक कनाडा में खुलेआम भारतीय राजनयिकों पर हमले की बात कर रहे हैं। लेकिन जस्टिन ट्रूडो की माने तो कनाडा में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। 

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कुर्सी बचाने के लिए खालिस्तान समर्थक को खुश रखना मजबूरी 

साल 2019 में कनाडा में आम चुनाव हुए थे। ट्रूडो ने चुनाव में जीत तो दर्ज कर ली थी लेकिन वो सरकार नहीं बना सकते थे। उनकी लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा को 157 सीटें मिली थी। विपक्ष की कंजरवेटिव पार्टी को 121 सीटें हासिल हुई थीं। ट्रूडो के पास सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं था। सरकार बनाने के लिए उन्हें 170 सीटों की दरकार थी। जिसकी वजह से ट्रूडो की पार्टी ने कनाडा के चुनाव में 24 सीटें हासिल करने वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का समर्थन लिया। इस पार्टी के मुखिया जगमीत सिंह है जो खालिस्तान आंदोलन के बड़े समर्थक हैं। ट्रूडो के लिए सत्ता में रहने का मतलब जगमीत को खुश रखना है। बहुमत के आंकड़ों के लिहाज से उनके लिए जगमीत की पार्टी का समर्थन बेहद जरूरी है। चुनाव के बाद सिंह और ट्रूडो ने कॉन्फिडेंस एंड सप्लाई एग्रीमेंट को साइन किया था। हालांकि हालिया घटनाक्रम में समझौते की समाप्ति के साथ, कनाडा पारंपरिक अल्पसंख्यक संसद की राजनीति में लौट आया है। 

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