महिलाओं के जीवन पर दशकों पूर्व हुई इस घटना का ऐसा असर, आज भी हैं मां बनने के सुख से वंचित
ग्रीनलैंड की महिलाओं के साथ डेनमार्क ने ऐसी हरतक की थी कि यहां की महिलाओं का जीवन ही बर्बाद हो गया। दशकों पहले स्कूली छात्रों के साथ उनकी इच्छा के विरुद्ध ऐसा कदम उठाया गया कि वो जीवन भर मां नहीं बन सकी। ये कदम ऐसा था जिसकी भनक तक कई लड़कियों को नहीं लगी।
ग्रीनलैंड की महिलाओं के साथ 1960-70 के दशक के दौरान हुई घटना का दर्द आज भी उन्हें झेलना पड़ रहा है। ग्रीनलैंड के इनुइत समूह की सैंकड़ों महिलाओं और लड़कियों को अपनी इच्छा के विरुद्ध उस दर्द से जूझना पड़ा जिसका असर उनके पूरे जीवन पर हुआ।
यहां महिलाओं का जबरन गर्भ निरोध किया गया। उनके यूट्रस में ऐसा उपकरण (IUD) लगाया गया जिससे वो जीवन भर मां बनने के सुख से वंचित रही। उनकी स्थिति बच्चे को जन्म देने की नहीं रही। दशकों पूर्व हुए इस गम को भूलना आज भी उन महिलाओं के लिए संभव नहीं है।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना की पीड़ित महिला नाजा लिबर्थ आज 60 वर्ष की हो गई है। उन्होंने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि वर्ष 1970 में जब उनके साथ ये घटना घटी वो मात्र 13 वर्ष की थी। स्कूल में रूटीन मेडिकल चेकअप के जरिए उनके यूट्रस में इस डिवाइस को लगाया गया। उन्होंने कहा कि इस कदम को उठाने से पूर्व ना ही उनसे अनुमति ली गई और ना ही उन्हें इस संबंध में कुछ भी समझाया गया। इस संदर्भ में उनके परिवार से भी किसी तरह की अनुमति नहीं ली गई थी।
घटना की कुछ धुंधली यादों को याद करते हुए बताया कि कुछ सफेद कोट पहने डॉक्टर थे जो उस समय वहां मौजूद थे। जब ये IUD उन्हें लगाया गया तब वो काफी डरी हुई थी। उन्होंने कहा कि वो पल ऐसा था जैसे किसी ने उनके शरीर पर चाकुओं से वार किए है। उन्होंने उस समय के अपनी क्लास के माहौल के बारे में बताया कि उस पल के बारे में हम दोस्त भी आपस में बात नहीं करना चाहते थे। जो भी डॉक्टर के पास गया वो आने के बाद किसी मुद्दे पर नहीं बोला।
बता दें कि दशकों का लंबा समय बीतने के बाद अब नाजा इस मुद्दे पर खुलकर बोल रही है। साक्ष्य ये भी बताते हैं कि इस कैंपेन में लगभग 4500 महिलाओं और लड़कियों के शरीर में IUD लगाया गया। वैसे ये प्रक्रिया 1975 तक जारी रही थी, हालांकि इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। इसमें अहम ये भी है कि इस प्रक्रिया के संबंध में कितनी लड़कियों या महिलाओं को जानकारी दी गई थी या कितनी महिलाओं से ये कदम उठाने से पहले इजाजत मांगी गई थी।
कई महिलाओं को निकलवाना पड़ा यूट्रस
इस परेशानी को झेलने वाली कई लड़कियों को आने वाले वर्षों में इतने दर्द से गुजरना पड़ा कि उन्हें अपना यूट्रेस ही निकलवाना पड़ा। इस कॉइल की वजह से लंबे समय तक दर्द से गुजरना पड़ा था। कई महिलाओं का कहना है कि इस IUD के कारण उन्हें कभी बच्चे नहीं हुए। कई महिलाओं ने अपनी इस परेशानी का जिक्र दूसरों के साथ नहीं किया क्योंकि उन्हें लगता था कि ये घटना अकेले उन्हीं के साथ हुई है।
दशकों बाद होगी मामले की जांच
हजारों महिलाओं के जीवन को बर्बाद करने वाली इस घटना की जांच अब दशकों बाद की जाएगी, जिसके लिए कमेटी का निर्माण किया गया है। कमेटी अब ये जांच करेगी कि ग्रीनलैंड में डेनमार्क द्वारा साल 1960 से 1991 तक लागू की गई स्वास्थ्य सेवाओं और बर्थ कंट्रोल नीतियां क्या थी। कमेटी ये भी जांच करेगी कि इस तरह की नीतियों को किन परिस्थितियों में और किन फैसलों के बाद लागू किया गया। डेनमार्क की स्वास्थ्य मंत्री मैगनस हैउनिके ने इस हादसे से पीड़ित कई महिलाओं से भी मुलाकात की है।
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