तुलसी और गिलोय से कंट्रोल हो सकती है थैलेसीमिया की बीमारी, आयुर्वेद में बताए गए हैं ये 3 उपचार

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थैलेसीमिया की बीमारी में खून की कमी के कारण हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है। जिसकी वजह से बाहरी खून चढ़ाने के लिए अस्पताल ले जाना पड़ता है। आयुर्वेद के अनुसार, कुछ घरेलू उपचारों से थैलेसीमिया को नियंत्रित किया जा सकता है। इन सरल उपायों से आप थैलेसीमिया की बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं।

थैलीसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है, जो मां-बाप से बच्चों को अनुवांशिक तौर पर मिलती है। इस बीमारी में रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है। जिसके कारण उसे बार-बार बाहर ही खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। इस रोग की पहचान बच्चे में जन्म से 3 महीने के बाद ही हो पाती है। थैलेसीमिया की बीमारी में खून की कमी के कारण हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है। जिसकी वजह से बच्चों को बाहरी खून चढ़ाने के लिए अस्पताल ले जाना पड़ता है। 

बार-बार खून चढ़ाने के कारण मरीज के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है, दिल में पहुंचकर जानलेवा साबित होता है। डॉक्टर्स के मुताबिक एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कण की उम्र करीब 120 दिनों की होती है। लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कण सिर्फ 20 दिनों में ही खत्म हो जाते हैं। इस वजह से शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है और व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो सकता है।

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थैलेसीमिया के लक्षण हैं -

बार बार बीमार होना

सर्दी जुकाम होना

हर वक्त कमजोरी महसूस होना

आयु के अनुसार शारीरिक विकास न होना

शरीर में पीलापन होना

सांस लेने में तकलीफ होना

दांत बाहर की होना

पेट में सूजन

डार्क यूरीन

आयुर्वेद के अनुसार, कुछ घरेलू उपचारों से थैलेसीमिया को नियंत्रित किया जा सकता है। इन सरल उपायों से आप थैलेसीमिया की बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं - 

तुलसी का रस 

थैलेसीमिया की बीमारी में तुलसी के रस का सेवन करना बहुत फायदेमंद माना जाता है। तुलसी में कई आयुर्वेदिक गुण पाए जाते हैं जो इस बीमारी के इलाज में सहायक होते हैं। इसके लिए रोजाना चार से पांच चम्मच ताजा तुलसी के रस का सेवन करें।

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पत्तेदार साग 

थैलेसीमिया की बीमारी में गहरे रंग के पत्ते का साग और कम वसा वाले पौधे आधारित चीजों का सेवन करना भी फायदेमंद माना जाता है। थैलेसीमिया के इलाज में फोलिक एसिड युक्त भोजन जैसे दाल, केला, चुकंदर और शकरकंद खाने से फायदा होता है।

गिलोय 

आयुर्वेद में गिलोय को अमृत समान माना गया है। गिलोय का सेवन करने से थैलेसीमिया के रोग का इलाज करने में मदद मिलती है। इसमें रोग प्रतिरोधक गुण मौजूद होते हैं जो रक्त विकारों का इलाज करने में सहायक हैं। थैलेसीमिया की बीमारी में रोजाना गिलोय रस का सेवन करने की सलाह दी जाती है।

- प्रिया मिश्रा 

डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
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