टैक्स बचाने के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प क्या है ? अधिकतम रिटर्न कैसे हासिल करें ?
पहला सवाल सबके जेहन में यही होता है कि एनपीएस और पीपीएफ में से किसे चुनें? इसलिये यहां पर यह स्पष्ट कर दें कि टैक्स एवं निवेश मामलों के एक विशेषज्ञ के मुताबिक, नेशनल पेंशन सिस्टम और पब्लिक प्रोविडेंट फण्ड दोनों ही लंबी अवधि के निवेश उत्पाद हैं।
अगर आप इनकम टैक्स पेयर हैं तो वित्त वर्ष 2020-21 के लिए टैक्स बचाने की योजना पर अमल अभी से शुरू कर दीजिए। यदि आप वित्त वर्ष की शुरुआत से ही प्लानिंग करते हैं तो यह बेहतर रणनीति होगी। दरअसल, टैक्स सेविंग की सही रणनीति केवल कर का भार घटाने से जुड़ी हुई नहीं होती है। बल्कि इसकी प्लानिंग में अधिकतम रिटर्न हासिल करने के साथ-साथ जोखिम को एक सीमा के भीतर रखने पर भी ध्यान देना होता है। यही वजह है कि कोई भी व्यक्ति अपने वित्तीय लक्ष्य को ही ध्यान में रखकर टैक्स सेविंग की अपनी योजना बनाता है। यह टैक्स पेयर की उम्र, उसकी जरूरत और जोखिम लेने की उनकी क्षमता पर निर्भर होता है। आइए जानते हैं कि एक्सपर्ट्स की राय में आपको किन-किन टैक्स सेविंग स्कीम्स को वरीयता देनी चाहिए।
पहला सवाल सबके जेहन में यही होता है कि एनपीएस और पीपीएफ में से किसे चुनें? इसलिये यहां पर यह स्पष्ट कर दें कि टैक्स एवं निवेश मामलों के एक विशेषज्ञ के मुताबिक, नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) और पब्लिक प्रोविडेंट फण्ड (पीपीएफ) दोनों ही लंबी अवधि के निवेश उत्पाद हैं। हालांकि, इन दोनों योजनाओं से निवेशकों को अलग-अलग तरह के लाभ मिलते हैं। एक तरफ एनपीएस विशुद्ध रूप से रिटायरमेंट से जुड़ी स्कीम है, जिसमें निवेशक के अवकाश प्राप्त करने के साथ ही एनपीएस फंड मेच्योर होता है। जिसकी 60 फीसद राशि पर किसी तरह का कोई टैक्स नहीं लगता है।
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वहीं, शेष 40 फीसद राशि को किसी एन्युटी प्लान में निवेश करना होता है, जिससे प्राप्त आय पर बाद में स्लैब रेट के आधार पर टैक्स देना होता है। इस तरह एनपीएस से प्राप्त आय पूरी तरह से टैक्स फ्री नहीं होती है। दूसरी तरफ, एनपीएस पर सेक्शन 80 सीसीडी के तहत 50,000 रुपये तक का अतिरिक्त कर लाभ मिलता है। यदि आप 80 सी के अतिरिक्त भी टैक्स में छूट चाहते हैं तो इस विकल्प को चुन सकते हैं। दरअसल, पीपीएफ में निवेश करने पर आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत छूट मिलती है। जिससे होने वाली आय पर पूरी तरह टैक्स में छूट मिलती है। पीपीएफ निवेश पर हर तिमाही में ब्याज संशोधन होता है। इस फंड में न्यूनतम 15 साल तक निवेश करना होता है।
दूसरा सवाल सबके दिलोदिमाग में यही होता है कि यूएलआईपी या ईएलएसएस में कौन-सा बेहतर है। इसका सीधा जवाब है कि आयकर की मौजूदा व्यवस्था के तहत इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80 सी के अंतर्गत प्रति वर्ष 1.5 लाख रुपये तक के निवेश पर टैक्स में छूट मिलती है। यूनिट लिंक्ड इन्सुरेंस पालिसी (यूएलआईपी) और इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम्स (ईएलएसएस) में निवेश करने पर ये कर में छूट मिलती है। हालांकि, कई टैक्सपेयर इन दोनों योजनाओं में निवेश को लेकर भ्रमित रहते हैं। दोनों स्कीम्स में से किसी एक को चुनने में उन्हें समय लगता है। ऐसे में करदाताओं को यह समझना जरूरी है कि इन दोनों स्कीम्स में बुनियादी भेद क्या है और कैसे इससे अपना आर्थिक मकसद साधा जा सकता है।
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हालांकि विशेषज्ञ के मुताबिक, यूएलआईपी जहां इंवेस्टमेंट के साथ-साथ निवेश से जुड़ा हुआ उत्पाद है, वहीं ईएलएसएस पूरी तरह से निवेश से जुड़ा उत्पाद है। यूएलआईपी का लॉकिन पीरियड जहां पांच साल होता हैं। वहीं, ईएलएसएस में न्यूनतम तीन साल तक निवेश करना होता है। एक्सपर्ट का कहना है कि यूएलआईपी पर ईएलएसएस के मुकाबले ज्यादा शुल्क लगता है। उनके अनुसार, ईएलएसएस में आप एकमुश्त या एसआईपी के जरिए निवेश कर सकते हैं। जबकि, यूएलआईपी में सालाना निवेश करना होता है। यूएलआईपी में आप डेब्ट और इक्विटी दोनों तरह के एसेट में निवेश कर सकते हैं। वहीं, ईएलएसएस में केवल इक्विटी श्रेणी में निवेश किया जा सकता है। इसलिए आप अपनी वित्तीय योजना बनाते वक्त उपर्युक्त सभी बातों पर गौर कीजिए, अन्यथा बेहतर रिटर्न की गारंटी नहीं मिल सकती है।
-कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
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