सर्वसमावेशी बजट में सप्तऋर्षि के मायने को ऐसे समझिए
आम तौर पर अमृत काल के बजटीय प्रावधान जैसे-जैसे अपना असर दिखाना शुरू करेंगे, उससे और अधिक मजबूती इसे मिलती जाएगी। निःसंदेह यह बजट अमृत काल में लंबी छलांग के संकल्प की तस्वीर पेश करता है, जिसमें सरकार ने लोक लुभावन ऐलान से बचते हुए अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने को प्राथमिकता दी है।
अमृतकाल का पहला आम बजट 2023-24 संसद में पेश हो चुका है। इसको आप सर्वसमावेशी बजट भी समझ सकते हैं, जिससे समावेशी विकास को पंख लगेंगे। इससे सबको थोड़ा-बहुत लाभ मिलेगा। वहीं, देश में कामकाज को एक नया माहौल मिलेगा, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्था बनने में मदद मिलेगी।
देखा जाए तो अपने दिलचस्प बजटीय प्रावधानों के माध्यम से केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आमलोगों से लेकर खासलोगों तक को यह एहसास दिला चुकी हैं कि उनकी सरकार को सबकी चिंता है और उससे भी बढ़कर पूरे देश की आर्थिक सेहत की फिक्र भी है। इसलिए उन्होंने मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के बजाय देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने हेतु विभिन्न तर्कसंगत उपायों को तरजीह देने की कोशिशें की हैं, जिसमें को सफल दिखाई दे रही हैं।
कहने का तात्पर्य यह कि आम बजट 2023-24 के माध्यम से उन्होंने विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने का बिल्कुल एक नया आधार दिया है। वहीं, जिस तरह से उन्होंने आम बजट को सात प्राथमिकताओं में बांटकर उन्हें सप्तऋषि (सप्तर्षि) बताया है, उसके विशेष आर्थिक और सियासी मायने हैं, जिसे समझने की जरूरत है।
देखा जाए तो नए बजट प्रावधानों के तहत पूंजीगत व्यय में 33 फीसदी की वृद्धि किये जाने और राजकोषीय घाटे को 5.9 प्रतिशत रखे जाने के लक्ष्य से सरकार की मंशा स्पष्ट है। इससे यह तय हो जाता है कि केंद्र सरकार सशक्त बुनियादी ढांचा वाला और मजबूत अर्थव्यवस्था वाला नया भारत बनाने के लिए दूरदर्शितापूर्ण निर्णय ले रही है, जो सराहनीय कहा जा सकता है।
आपको पता है कि अगले साल 2024 में आम चुनाव होने हैं। इसलिए यदि इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बीते दो आम चुनावों यानी 2014 और 2019 की तरह व्यापक जनसमर्थन मिलता है तो एक प्रधानमंत्री के रूप में विभिन्न प्रधानमंत्रियों द्वारा स्थापित रिकॉर्ड को तोड़ने का मौका उन्हें मिलेगा, जिससे उनकी यशकीर्ति पताका और अधिक लहराएगी। इसलिए आम बजट 2023-24 को अमृतकाल के बहाने वह तेवर और कलेवर देने की कोशिश की गई है, जिससे देश की जनता तीसरी बार भी उन पर ही फिदा रहे और बजट प्रतिक्रिया में यह बात दिख भी रही है।
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इस बात में कोई दो राय नहीं कि नए बजटीय प्रावधानों से देश में विकास का नया माहौल बनेगा, जिससे सभी लोग अपने-अपने सुमधुर भविष्य के प्रति आश्वस्त दिखेंगे। फिर यही लोग मिल-जुलकर पीएम मोदी के मिशन 2024 को पूरा कर देंगे। हालांकि, इसका टेलर इस साल होने वाले लगभग 9 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी दिख जाने की उम्मीद है।
इसलिए सबसे पहले बजटीय सप्तर्षियों की स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं, क्योंकि पहली बार इनका प्रयोग आर्थिक उपमा देने के लिए किया गया है, जबकि आध्यात्मिक उपमा तो अक्सर दी जाती रही है। यहां बजट सप्तर्षि का मतलब समावेशी विकास, अंतिम छोर-अंतिम व्यक्ति तक पहुंच, बुनियादी ढांचा और निवेश, क्षमताओं का विस्तार, हरित विकास, युवा शक्ति और वित्तीय क्षेत्र जैसे सर्वाधिक महत्व वाले मुद्दों से है।
बता दें कि सप्तर्षि तारामंडल पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध के आकाश में रात्रि में दिखने वाला एक तारामंडल है, जिसे फाल्गुन-चैत महीने से श्रावण-भाद्रपद महीने तक आकाश में सात तारों के समूह के रूप में देखा जा सकता है। इसमें चार तारे चौकोर तथा तीन तिरछी रेखा में रहते हैं। अमूमन कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज को यानी इन सात ऋषियों को सप्तर्षि कहा जाता है।
खास बात यह कि हर काल में अलग-अलग सप्तर्षि होते हैं। इसलिए ये सप्तर्षि मौजूदा काल के हैं। इसी तरह से केंद्रीय वित्तमंत्री श्रीमती सीतारमण ने समावेशी विकास, अंतिम छोर-अंतिम व्यक्ति तक पहुंच, बुनियादी ढांचा और निवेश, क्षमताओं का विस्तार, हरित विकास, युवा शक्ति और वित्तीय क्षेत्र को जिस अंदाज में अमृत काल के पहले आम बजट का सप्तर्षि बताया है, उससे देश का आर्थिक और कारोबारी माहौल अवश्य बदलेगा। यदि किसी अन्य कारण वश नहीं बदला तो शाश्वत देश-काल-पात्र के सिद्धांत के अनुरूप जरूरत के मुताबिक इन सप्तर्षि मुद्दों को बदला भी जा सकता है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि यह बजट आकांक्षाओं से भरे समाज यानी किसानों, मजदूरों, कारीगरों, गरीबों, मध्यम वर्ग के लोगों, युवाओं-युवतियों, पुरुषों-महिलाओं, बुजुर्गों, उद्यमियों-कारोबारियों, धनाढ्य तबकों यानी सबके सपनों को पूरा करेगा। प्रधानमंत्री के सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास जैसे आह्वान का आशय भी यही है, जिससे भारतीय लोकतंत्र और अर्थतंत्र को विश्वव्यापी मजबूती मिल रही है।
आम तौर पर अमृत काल के बजटीय प्रावधान जैसे-जैसे अपना असर दिखाना शुरू करेंगे, उससे और अधिक मजबूती इसे मिलती जाएगी। निःसंदेह यह बजट अमृत काल में लंबी छलांग के संकल्प की तस्वीर पेश करता है, जिसमें सरकार ने लोक लुभावन ऐलान से बचते हुए अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने को प्राथमिकता दी है। सरकार की कोशिश है कि वह लोगों के हाथ में खर्च करने योग्य धनराशि अधिक से अधिक दे सके।
वहीं, आर्थिक गतिविधियों को तेज गति देने के लिए पूंजीगत खर्च बढ़ाया गया है। बजट में विभिन्न योजनाओं का जिस तरह से खाका खींचा गया है, उससे सबको लाभ मिलना तय है। ऐसा इसलिए कि वर्षों बाद देश को सियासी स्थायित्व देने वाली मोदी सरकार के खिलाफ जिस तरह के जातीय, सांप्रदायिक और उन्मादी षड्यंत्र रचे जा रहे हैं, उसके मुकाबले राजनीतिक मैदान में टिके रहने के लिए विकास, तीव्र विकास, समावेशी विकास को गति दिया जाना बेहद जरूरी है। शायद सरकार ने यही किया भी है, ताकि प्रतिपक्ष की बोलती बंद हो जाए। हालांकि वह अपनी थेथरई से बाज नहीं आएगा।
इस बजट में कृषि क्षेत्र में नई तकनीकों को प्रोत्साहन, हरित विकास पर जोर, रेलवे बजट में बढ़ोतरी, रक्षा क्षेत्र के लिए सबसे अधिक आवंटन, तकनीकी विकास पर बल, रोजगार सृजन पर ध्यान, आयकर में छूट, शैक्षणिक उन्न्यन जैसे नानाविध उपाय किये गए हैं। जिससे यह प्रतीत होता है कि यह बजट सर्वसमावेशी और दूरदर्शी है, जो आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को और अधिक गति देगा। इससे दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्था बनने में भी मदद मिलेगी।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
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