यदि आपने हेल्थ इंश्योरेंस कम्पनी से डायबिटीज-बीपी-थायराइड आदि की बात छिपायी तो फिर नहीं मिलेगा इलाज खर्च, आपका मेडिक्लेम होगा निरस्त
अमूमन, स्वास्थ्य बीमा कम्पनियों को इन बीमारियों के बारे में बताना जरूरी होता है। क्योंकि ऐसी बीमारी आम तौर पर तभी कवर होगी, जब 1 से 4 साल का वेटिंग पीरियड खत्म हो जाएगा। इसलिए पॉलिसी खरीदने वाले को अपनी हेल्थ कंडीशन के बारे में हरेक जानकारी बीमा कंपनी को जरूर बताना चाहिए।
यदि आपको डायबिटीज, बीपी और थायराइड जैसी पुरानी बीमारी (प्री-एग्जिस्टिंग डीजीज) है तो आपको इस बारे में स्वास्थ्य बीमा कंपनी को स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए, अन्यथा बाद में आपका क्लेम खारिज हो जाएगा। बता दें कि जब भी आप कोई नया हेल्थ इंश्योरेंस लेते हैं तो उससे 48 महीने पहले तक यदि कोई चोट या बीमारी रही है और आप उसका इलाज भी करा रहे हैं तो उसे ही प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज कहा जाता है।
अमूमन, स्वास्थ्य बीमा कम्पनियों को इन बीमारियों के बारे में बताना जरूरी होता है। क्योंकि ऐसी बीमारी आम तौर पर तभी कवर होगी, जब 1 से 4 साल का वेटिंग पीरियड खत्म हो जाएगा। इसलिए पॉलिसी खरीदने वाले को अपनी हेल्थ कंडीशन के बारे में हरेक जानकारी बीमा कंपनी को जरूर बताना चाहिए। क्योंकि यदि आपको टाइप-1 या टाइप-2 डायबिटीज, हाइपरटेंशन, दिल से जुड़ी बीमारियां या दूसरी गंभीर बीमारियां हैं, तो इसके बारे में उन्हें साफ-साफ बताना चाहिए। ताकि इसके लिए ज्यादा प्रीमियम वो आपसे ले सकें।
# मेडिक्लेम एजेंट को यदि नहीं बताई पुरानी बीमारी तो आपका क्लेम हो जाएगा निरस्त
उल्लेखनीय है कि यदि किसी मरीज को पहले से ही डायबीटीज, अस्थमा, थॉयराइड जैसी कोई भी पुरानी बीमारी हो और उसके बारे में उसने मेडिक्लेम एजेंट को नहीं बताया हो, तो उसका क्लेम रिजेक्ट हो जाएगा। ततपश्चात इलाज का पूरा बिल भी उसे अपनी जेब से ही भरना पड़ेगा। साथ ही, यदि कोई व्यक्ति पुरानी बीमारी यानी प्री-एग्जिस्टिंग डीजीज के कारण अस्पताल में भर्ती होता है तो कम से कम तीन वर्ष तक उसे क्लेम नहीं मिलता है। वैसे भी यह स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के हिसाब से तय होता है। भले ही उस व्यक्ति ने अपनी पुरानी बीमारी के बारे में मेडिक्लेम एजेंट को पहले से ही क्यों न बता दिया हो। आपको पता होना चाहिए कि मौजूदा वक्त में हेल्थ इंश्योरेंस देने वाली कंपनियां ज्यादा से ज्यादा प्रीमियम लेकर हर तरह की बीमारियों पर क्लेम दे रही हैं, जिससे विशेष परिस्थितियों में लोगों को काफी राहत मिल जाती है।
इसे भी पढ़ें: Gold Loan: हर तबके के लोगों को गोल्ड लोन देता है वित्तीय सुरक्षा
# स्मोकिंग और शराब से जुड़ी बुरी आदतों के बारे में भी दें पूरी जानकारी, क्योंकि ये भी रोग की गंगोत्री समझी जाती हैं
आपको हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय स्वास्थ्य बीमा कंपनी के एजेंट को अपनी पुरानी बीमारियों के अलावा तम्बाकू स्मोकिंग, शराब या ड्रग्स से जुड़ी प्रत्येक आदतों के बारे में भी बताना जरूरी होता है। वहीं, पहले कोई सर्जरी हुई है या कोई दवाई खाते हैं तो यह भी अपने मेडिक्लेम एजेंट को बताएं। इतना ही नहीं, यदि इंश्योरेंस लेने के बाद मधुमेह (डायबीटीज), रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) जैसी कोई बीमारी हो गई है तो भी इसके बारे में इंश्योरेंस कंपनी को ई-मेल से बताएं। अन्यथा भविष्य में क्लेम लेने के वक्त आपको परेशानी हो सकती है।
# हेल्थ इंश्योरेंस के वेटिंग पीरियड में भी रिजेक्ट हो जाता है बीमित व्यक्ति का क्लेम
यूँ तो हेल्थ इंश्योरेंस लेने पर स्वास्थ्य बीमा कंपनियां 15 या 30 दिन का वेटिंग पीरियड देती हैं, ताकि इंश्योरेंस लेने वाला व्यक्ति अपनी मेडिक्लेम पॉलिसी को अच्छी तरह से पढ़ ले। ततपश्चात यदि स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी पसंद न आए तो उसे वेटिंग पीरियड में वापस भी किया जा सकता है। खास बात यह है कि वेटिंग पीरियड में एक्सिडेंट के अलावा सभी बीमारियों के इलाज का क्लेम रिजेक्ट कर दिया जाता है।
# एक महीना के ग्रेस पीरियड में यदि रिन्यू नहीं कराया तो बीमित व्यक्ति के क्लेम में आएगी मुश्किल
आम तौर पर हेल्थ इंश्योरेंस की आखिरी तारीख के बाद स्वास्थ्य बीमा कंपनी रिन्यू के लिए एक माह का ग्रेस पीरियड देती है। कहने का तातपर्य यह कि यदि इन 30 दिनों में प्रीमियम भरकर कोई व्यक्ति अपने हेल्थ इंश्योरेंस को रिन्यू करा सकते हैं। हालांकि, इस दौरान भी मेडिकल इमरजेंसी पर क्लेम नहीं मिलता। इसलिए आपकी कोशिश ये होनी चाहिए कि समय से 1 या 2 दिन पहले ही अपने हेल्थ इंश्योरेंस को रिन्यू करवा लें, ताकि समय पर उसका लाभ लेने के वक्त किसी भी स्वास्थ्य बीमा कम्पनी को इफ एन्ड बट करने/कहने का मौका नहीं मिले।
# मेडिक्लेम के लिए मान्यता प्राप्त अस्पताल में 24 घंटे भर्ती रहना है बेहद जरूरी
किसी भी मेडिक्लेम के लिए रोगी व्यक्ति को अस्पताल में कम से कम 24 घंटे भर्ती रहना निहायत जरूरी है। क्योंकि कई बीमारियां ऐसी होती हैं जिनमें मरीज को 24 घंटे के अंदर ही अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है। जिससे ऐसे मामले में भी रोगी व्यक्ति का क्लेम रिजेक्ट हो जाता है। इसलिए इस मामले में भी सतर्क रहें।
# किसी भी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में अपने नॉमिनी का नाम भी अवश्य जरूर जुड़वाएं, ताकि क्लेम पाने में हो सुविधा
आप अपने हेल्थ इंश्योरेंस में अपने नॉमिनी का नाम अवश्य जुड़वाएं और अपने नॉमिनी को भी इसके बारे में जरूर बताएं। क्योंकि जब अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी किसी व्यक्ति का इलाज चल रहा है तो दवाई समेत इलाज से जुड़े सभी खर्च हेल्थ इंश्योरेंस में कवर होते हैं। वहीं, इस दौरान दुर्भाग्यवश यदि उस शख्स की मृत्यु हो जाए तो नियमानुसार उसका बैंक अकाउंट भी तुरंत बंद हो जाता है यानी उसमें लेन-देन नहीं हो सकता। ऐसे में नॉमिनी उस शख्स के इलाज में खर्च हुई रकम को उसकी मृत्यु के 45 दिनों बाद तक क्लेम कर सकता है। इसलिए इस मामले में भी पहले से ही सचेष्ट रहें।
# कोई भी हेल्थ पॉलिसी लेने से पहले मेडिक्लेम एजेंट से अवश्य पूछें ये सवाल
आप अपना हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय स्वास्थ्य बीमा कंपनी के मेडिक्लेम एजेंट से यह अवश्य पूछें कि इंश्योरेंस में क्या-क्या चीजें कवर नहीं होती है। साथ ही यह भी पूछें कि कौन-कौन सी बीमारियां हैं जो एक खास समय सीमा के बाद कवर होती हैं। इसके अलावा, वे कौन-कौन सी बीमारियां हैं, जो कभी कवर नहीं होंगी। जब यह बात स्पष्ट रहेगी तो आपको क्लेम लेने में सुविधा होगी।
# मेडिक्लेम एजेंट से यह भी पूछिए कि क्या टॉप-अप प्लान है या नहीं
स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी के साथ हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां कुछ एडिशनल कवर भी ऑफर करती हैं। लिहाजा उनके बारे में भी जरूर पूछें। क्योंकि ऐसे मामलों में थोड़ा-सा प्रीमियम बढ़ाने पर कई प्रकार के रोग कवर आसानी से मिल जाते हैं। इसे ही टॉप-अप प्लान कहते हैं। उदाहरण स्वरूप, मान लीजिए कि आपके पास 8 लाख रुपए का हेल्थ इंश्योरेंस है। फिर आपको यदि लगता है कि यह काफी कम रह सकता है और आपको 10 लाख रुपये का हेल्थ इंश्योरेंस चाहिए तो आप 2 लाख रुपए का टॉप-अप प्लान ले सकते हैं। क्योंकि टॉप-अप प्लान लेने पर प्रीमियम भी बढ़ जाता है। वहीं, कुछ इलाज ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां एक खास लिमिट तय कर देती हैं। तातपर्य यह कि सम इंश्योर्ड कितना भी बड़ा क्यों न हो, आपको उस इलाज पर तय रकम से ज्यादा नहीं दी जाएगी। इसलिए इनके बारे में भी स्पष्ट रूप से पता करें।
# यदि आपका इलाज करने वाला अस्पताल टीपीए पैनल में रजिस्टर्ड न हो तो भी नहीं मिलेगा आपको क्लेम
हमारे देश-प्रदेश में कई अस्पताल ऐसे होते हैं जो टीपीए (TPA) पैनल में नहीं होते। वो लोकल सांठगांठ से ही चलते हैं, क्योंकि इनमें स्तरीय सुविधाएं नहीं मिलती हैं। ऐसे में अपने इलाज के दौरान आप इस बात का ध्यान रखें कि आपका इलाज करने वाला अस्पताल उस राज्य सरकार की तरफ से या स्थानीय निगम की ओर से रजिस्टर्ड होना चाहिए, खासकर जिस राज्य में यह है, उस राज्य से अथवा केंद्र से। वहीं, यदि रजिस्टर्ड नहीं हैं तो इलाज में खर्च हुए रकम का मेडिक्लेम भी आपको नहीं मिलेगा।
# कई प्रकार की बीमारियां नहीं होती हैं हेल्थ इंश्योरेंस के दायरे में
आपको पता होना चाहिए कि एड्स, दांतों का इलाज, मनोरोग संबंधी विसंगति, लिंग परिवर्तन सर्जरी, कास्मेटिक सर्जरी, खुद को नुकसान पहुंचाने से लगी चोट जैसे मामले किसी भी स्टैंडर्ड हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के दायरे में नहीं होते हैं। इसलिए इनसे जुड़ा क्लेम पाने के लिए कभी भी दावा नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे आपका कीमती वक्त भी जाया होगा और मिलेगा भी कुछ नहीं।
# हेल्थ बीमा कंपनी की गड़बड़ी के लिए बीमा नियामक प्राधिकरण या उपभोक्ता कोर्ट जाएं
यदि आपको लगता है कि हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी ने गलत वजह बताकर आपका मेडिक्लेम रिजेक्ट किया है तो आप स्वास्थ्य बीमा देने वाली हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी से शिकायत करें। वहीं, यदि बीमा कंपनी 15 दिनों में आपकी शिकायत का निपटरा न करे तो आप भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के पास अपनी शिकायत दर्ज कराएं। यदि वहां भी सुनवाई न हो या फिर उसके फैसले से आप संतुष्ट नहीं हैं तो उपभोक्ता अदालत का दरवाजा भी आप खटखटा सकते हैं। ताकि आपको वाजिब क्लेम मिल सके।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
अन्य न्यूज़