गीत-नगरी ग्वालियर को यूनेस्को से मिली विश्व मान्यता ने इस शहर की जिम्मेदारियों को और बढ़ा दिया है
ग्वालियर की संगीत परंपरा ग्वालियर का ख्याल, ध्रुपद तो गत पांच शताब्दी से संगीत परिवेश को अनुनादित कर रहा था। राजा मानसिंह की द्वारा ध्रुपद को संस्कृत से लोक-भाषा ब्रज-भाषा के रूप में रूपांतरित कर जन-जन तक स्वीकार करा दिया गया।
नए भारत के हुँकार के रूप में साहित्य संगीत की नगरी ग्वालियर को यूनेस्को द्वारा "सिटी आफ म्यूजिक" के रूप में स्वीकारना भारत की महान सांस्कृतिक परंपराओं की गालव तपोस्थली की भी स्वीकारोक्ति है। ग्वालियर संगीत की 500 वर्षों की विरासत को समेटे अपने संगीतमय स्वरूप को आधिकारिक रूप से मान्य किए जाने से प्रफुल्लित है। तथ्यात्मक रूप से ग्वालियर अपनी संगीत परंपरा के लिए मध्यकाल से ही विख्यात रहा है। यूनेस्को द्वारा इसको सिटी आफ जॉय सिटी आफ म्यूजिक के रूप में स्वीकारने के लिए पूर्व से ही पर्याप्त आधार थे लेकिन विलंब से ही से ही विश्व पटल पर सत्य की स्वीकारोक्ति हुई है। मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग ने इसका प्रस्ताव यूनेस्को को भेजा था और इस प्रस्ताव को स्वीकारने का आधार ग्वालियर की संगीत परंपरा, स्मारक समूह, विश्वविद्यालय, संस्थान, संगीत के राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय आयोजन जैसे मजबूत आधार रहे हैं। यही कारण है ग्वालियर के दावे को नकारना संभव नहीं हो सका।
ग्वालियर की संगीत परंपरा ग्वालियर का ख्याल, ध्रुपद तो गत पांच शताब्दी से संगीत परिवेश को अनुनादित कर रहा था। राजा मानसिंह की द्वारा ध्रुपद को संस्कृत से लोक-भाषा ब्रज-भाषा के रूप में रूपांतरित कर जन-जन तक स्वीकार करा दिया गया। बैजू बावरा, जो विख्यात संगीतज्ञ तानसेन के समकालीन थे, उन्होंने बिना दरबारी हुए भी ख्याति प्राप्त की। राजा मानसिंह, बैजू बावरा के अतिरिक्त संगीत सम्राट तानसेन उस्ताद हरसू हद्दू खान जिन्होंने ग्वालियर घराने के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। उस्ताद हाफिज अली खान जिन्होंने प्रसिद्ध बंगश घराने के सरोद वादक, कृष्ण राव शंकर पंडित, राजा भैया पूछ वाले जैसी विभूतियों की परंपरा ग्वालियर में अनवरत देखने को मिलती है, वैसी अन्य जगह कम ही मिलती है।
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ग्वालियर का संगीत विश्वविद्यालय, ग्वालियर का संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर ग्वालियर का तानसेन संगीत-समारोह, ग्वालियर का सरोद-घर, ग्वालियर का बैजा-ताल का रंगमंच ग्वालियर का मोहम्मद गौस का मकबरा, मान-मंदिर, गूजरी महल, ग्वालियर को संगीत नगरी का ताज पहनाने के लिए समर्थ है। अकबर दरबार के प्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन जिनके गाये दीपक राग से दीपक जल जाते थे, राग मल्हार से वर्षा होने लगती थी।
ग्वालियर कला का वह मकरंद है जिसकी सुगंध रूपी विभूतियाँ कला क्षेत्र को सुरभित करती ही रहती हैं। ग्वालियर का संगीत अपने मानकों के साथ-साथ अपनी विरासत के लिए भी प्रसिद्ध है। भारत अपने गौरव के स्थान को प्राप्त कर रहा है। 21वीं शताब्दी विश्व में मानव मूल्यों की स्थापना करते हुए भारत की है। जिसमें कला और मानवता के मूल्य विश्व पटल पर भारत का विश्व-दर्शन करने वाले हैं। 1000 साल के संघर्ष-काल के बाद जगा हुआ भारत तब और अधिक प्रफुल्लित होता है जब एक नवंबर को मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस पर ग्वालियर को विश्व संस्था द्वारा सिटी आफ म्यूजिक के रूप में स्वीकार किया जाता है। अब ग्वालियर की जिम्मेदारी और महत्व दोनों बढ़ गए हैं। हमें अपनी विश्व-व्यापी ख्याति को न केवल सहेजना है गौरवान्वित करना है, बल्कि उसको और समृद्धि करना है। आने वाले समय में विश्व पर्यटन के केंद्र के रूप में ग्वालियर विश्व मानचित्र पर और अधिक सम्मोहन के साथ में अपने स्वरूप को प्रस्तुत करेगा। यह अवसर हम सब की प्रसन्नता के साथ-साथ जिम्मेदारियों का भी है। हम अपने गौरव के साथ-साथ भारत उदय साधनाष-यज्ञ में अपने आप को सचेष्ट रखें। यही समय की मांग है और यही हमारी प्रसन्नता का विजयी उद्घोष भी। स्वर्णिम-भविष्य हमारी प्रतीक्षा कर रहा है।
-राज किशोर वाजपेयी "अभय"
विश्व संवाद केंद्र, भोपाल
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