आखिर अडानी के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़े हुए हैं 'अमेरिकी'? इसे ऐसे समझिए
ऐसे में यह स्वाभाविक सवाल है कि जब भारत में रिश्वत देने के आरोप लगाए गए हैं तो फिर केस यूएस यानी अमेरिका में क्यों? इसका जवाब यही है कि अमेरिकी कानून अपने निवेशकों या बाजारों से जुड़े विदेशों में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को आगे बढ़ाने की अनुमति देता है।
जिस तरह से दुनिया के थानेदार अमेरिका में अदाणी ग्रुप के चेयरमैन उद्योगपति गौतम अदाणी समेत 8 लोगों पर अरबों रुपए की धोखाधड़ी के आरोप लगे हैं, उसके दृष्टिगत यह सवाल मौजूं है कि जब रिश्वत का आरोप भारत में लगाया गया है तो फिर अमेरिका में जांच कैसे शुरू हो गई? उससे भी बड़ा सवाल यह है कि आखिर अमेरिका और उसके लोग, भारत के पीएम नरेंद्र मोदी के चहेते उद्योगपति अडानी के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़े हुए हैं? क्या किसी भारतीय उद्योगपति या राजनीतिक दल के शह पर ऐसा किया जा रहा है या फिर कोई अन्य कूटनीतिक वजह है?
क्योंकि यह महज इत्तेफाक नहीं समझा जा सकता है कि पिछले साल 2023 में अमेरिकी हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट से शुरू हुए विवाद के बाद अब वर्ष 2024 में अदाणी समूह पर सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने का उछला ताजा मामला एक अदद मामला भर है? वजह यह कि इससे अडानी समूह के शेयरों के भाव गिरते हैं और कम्पनी को काफी क्षति उठानी पड़ती है! इसलिए हमें यह जानना चाहिए कि आखिर में यह मामला क्या है, क्यों है, कैसे है, किसके लिए है? और अंत में, इसका समुचित हल क्या है? आइए इस पूरी बात को क्रमबद्ध तरीके से समझने की कोशिश करते हैं।
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बता दें कि यूनाइटेड स्टेट्स अटॉर्नी ऑफिस ने अदाणी पर भारत में सोलर एनर्जी से जुड़ा कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को 265 मिलियन डॉलर (2200 करोड़ रुपए से ज्यादा) की रिश्वत देने का आरोप लगाया है, जो एक गम्भीर बात है। क्योंकि यूएस अटॉर्नी ऑफिस ने आरोप में कहा है कि अदाणी ने अपनी कंपनी अदाणी ग्रीन एनर्जी को सोलर एनर्जी से जुड़े प्रोजेक्ट्स और कॉन्ट्रैक्ट दिलाने के लिए भारतीय अधिकायों को 2100 करोड़ रुपए से ज्यादा की रिश्वत दी है।
मसलन, अदाणी पर आरोप है कि उन्होंने 2021 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी। उसके बाद राज्य सरकार 7,000 मेगावाट बिजली खरीदने पर सहमत हुई थी। आंध्र के अधिकारियों को 25 लाख रुपये प्रति मेगावाट की दर से कथित रिश्वत दी गई। इसके अलावा, अमेरिकी सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन ने भी कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया। खास बात यह है कि उन्होंने इस बात को उन अमेरिकी बैंकों और इंवेस्टर्स से छिपाया है, जिनसे अदाणी ग्रुप ने इस प्रोजेक्ट के लिए अरबों डॉलर जुटाए थे।
लिहाजा, अमेरिकी प्रोसिक्यूटर्स का दावा है कि कंपनी के दूसरे सीनियर अधिकारियों ने कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को पैसा देने पर सहमति जताई थी। बता दें कि अडानी समूह ने साल 2021 में एक बॉन्ड ऑफर कर अमेरिका के अलावा दूसरे इंटरनैशनल इंवेस्टर्स और अमेरिका के बैंकों से फंड जुटाया है। अमेरिकी प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग (एसईसी) ने बयान में कहा है कि कथित साजिश के तहत अदाणी ग्रीन ने अमेरिकी निवेशकों से 17.5 करोड़ डॉलर से अधिक जुटाए और एज्यूर पावर का शेयर न्यूयॉर्क शेयर बाजार में लिस्टेड किया। साथ ही, न्यूयॉर्क के पूर्वी जिले के अमेरिकी अटॉर्नी कार्यालय ने अदाणी, सागर अदाणी, सिरिल कैबनेस और अदाणी ग्रीन और एज्यूर पावर से जुड़े अन्य लोगों के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाए हैं।
वहीं, अदाणी ग्रुप ने रिश्वतखोरी के आरोपों को खारिज करते हुए इन्हें बेबुनियाद बताया है। उसने कहा है कि ग्रुप सभी कानूनों का पालन करता रहा है। वह इस मामले में सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल करेगा। ग्रुप के प्रवक्ता ने अमेरिकी न्याय विभाग के बयान का हवाला दिया, जिसमें कहा गया जिसका अडानी पर यह केवल आरोप है और जब तक दोष साबित न हो जाए तब तक प्रतिवादियों को निर्दोष माना जाएगा। लिहाजा, बयान में कहा गया कि हम आश्वस्त करते हैं कि हम एक कानून का पालन करने वाले संगठन है। अदाणी ग्रुप ने अदाणी ग्रीन एनर्जी लि. के 60 करोड़ डॉलर के बॉण्ड को रद्द कर दिया है। उल्लेखनीय है कि अदाणी ग्रीन एनर्जी को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में ठेका मिला है।
ऐसे में यह स्वाभाविक सवाल है कि जब भारत में रिश्वत देने के आरोप लगाए गए हैं तो फिर केस यूएस यानी अमेरिका में क्यों? इसका जवाब यही है कि अमेरिकी कानून अपने निवेशकों या बाजारों से जुड़े विदेशों में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को आगे बढ़ाने की अनुमति देता है। चूंकि, प्रोजेक्ट में अमेरिका के इन्वेस्टर्स का पैसा लगा था और अमेरिकी कानून के तहत उस पैसे को रिश्वत के रूप में देना अपराध है, इसलिए अमेरिका में मामला इसलिए दर्ज हुआ।
चूंकि अमेरिका भारत का मित्र देश भी है, इसलिए ये आरोप अहम हैं। हालांकि, जिस तरह से अमेरिकी चुनावों में परास्त राष्ट्रपति जो बाइडेन के मातहत प्रशासन ने रूस के खिलाफ यूक्रेन को भड़काने और भारत के उद्योगपति को भ्रष्टाचार के मामले में उलझाने की पहल जाते-जाते की है, इसके अंतर्राष्ट्रीय सियासी मायने को भी समझने की जरूरत है। शायद वह भावी ट्रंफ प्रशासन के लिए मुश्किलें पैदा करना चाहता हो।
सवाल यह है कि आखिर यह हंगामा किन-किन प्रोजेक्ट्स को लेकर मचा है? तो जवाब यही होगा कि अमेरिकी प्रोसिक्यूटर्स के अनुसार, एनर्जी कंपनी के संस्थापक और अध्यक्ष गौतम अदाणी है। अदाणी ग्रीन एनर्जी के कार्यकारी निदेशक सागर अदाणी है, जो उनके भतीजे हैं। इसके अलावा, एज्योर पावर के सीईओ रहे रंजीत गुप्ता, एज्योर पावर में सलाहकार रूपेश अग्रवाल अमेरिकी इश्यूअर हैं।
हुआ यह है कि अदाणी ग्रीन एनर्जी और अमेरिकी इश्यूअर ने सरकारी स्वामित्व वाली सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) को 12 गीगावाट सोलर एनर्जी उपलब्ध कराने का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया था।
हालांकि, एसईसीआई को सौर ऊर्जा खरीदने के लिए भारत में खरीदार नहीं मिल पाए। लिहाजा खरीदारों के बिना सौदा आगे नहीं बढ़ सकता था और दोनों कंपनियों के सामने बड़े नुकसान का जोखिम था। इसलिए अदाणी ग्रुप और एज्योर पावर ने भारतीय सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने की योजना बनाई। तो फिर यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर में रिश्वत का हिस्सा किनको किनको मिला? उसमें भी सबसे बड़ा हिस्सा किनको मिला? इसके जवाब भी अमेरिकी प्रशासन के आरोपों से मिलते हैं।
अमेरिकी प्रशासन के आरोपों के मुताबिक, इन लोगों ने तय किया कि सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि वो राज्य बिजली वितरण कंपनियों को एसईसीआई के साथ बिजली आपूर्ति समझौते में शामिल होने के लिए तैयार करेंगे। शायद इसलिए उन्होंने भारतीय अफसरों को करीब 265 मिलियन डॉलर की रिश्वत देने का वादा किया, जिसका एक बड़ा हिस्सा आंध्र प्रदेश के अधिकारियों को दिया गया। फलाफल यह निकला कि इसके बाद कुछ राज्य बिजली कंपनियां सहमत हुईं और दोनों कंपनियों से सौर ऊर्जा खरीदने के लिए एसईसीआई के साथ समझौता किया।
इससे साफ है कि भारतीय ऊर्जा कंपनी और अमेरिकी इश्यूअर ने मिलकर रिश्वत का भुगतान किया। इतना ही नहीं, अपनी संलिप्तता छिपाने के लिए कोड नामों का भी इस्तेमाल किया गया। अमेरिकी अटॉर्नी कार्यालय (न्यू यॉर्क) के अनुसार, रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के मामले में जिन्हें आरोपी बनाया गया है उनमें गौतम एस. अदाणी, सागर एस. अदाणी, विनीत एस. जैन, रंजीत गुप्ता, सिरिल कैबनेस, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा, रुपेश अग्रवाल के नाम प्रमुख हैं।
हालांकि, अमेरिकी कानूनों के तहत ऐसे मामलों में आमतौर पर डेफर्ड प्रॉसिक्यूशन एग्रीमेंट्स या नॉन प्रॉसिक्यूशन एग्रीमेंट्स के जरिए सेटलमेंट की इजाजत है। जिसके मुताल्लिक कुछ गलतियां स्वीकार करने, नियमों का अनुपालन बेहतर करने के वादे और जुर्माना चुकाने के साथ ही यह मामला सुलझाया जा सकता है। इससे पहले भी सीमेंस ने 80 करोड़ डॉलर और एरिक्सन ने 1 बिलियन डॉलर का जुर्माना चुकाया था। लिहाजा, अदाणी ग्रुप भी चाहे तो ऐसा कुछ कर सकता है।
कहना न होगा कि हिंडनबर्ग मामले के चलते अमेरिका में अदाणी ग्रुप की कंपनियों का बाजार मूल्य जितना घटा था, उससे दोगुनी गिरावट अमेरिकी अदालत में ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी पर लगे आरोपों के चलते आई है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला ग्रुप की साख के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है, लेकिन अमेरिका में इस मामले के निपटारे के रास्ते भी की कंपनियों के शेयर इस गिरावट से जल्द उबर सकते हैं, हालांकि निवेशकों को फिलहाल सेटलमेंट की गुंजाइश चुनिंदा है।
सवाल है कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की संभावित नीतियों, चीन में राहत पैकेज और रूस-यूक्रेन संकट गहराने और इजरायल-फिलिस्तीन विवादों के बढ़ते चले जाने के चलते भारतीय शेयर बाजार में पहले से ही कमजोरी दिख रही थी। फिर, अडाणी मामले ने इसे और हिला दिया। अलबत्ता, ताजा मामले का इस ग्रुप पर जैसा भी असर पड़े, लेकिन इतना तय है कि देश की इकॉनमी पर आंच नहीं आने जा रही। भारत में लॉन्ग टर्म में अर्थव्यवस्था का दमखम, कंपनियों के मुनाफे में अच्छी बढ़त और रेगुलेटरी साख ही शेयर बाजार के लिए अहम है। ऐसे में भारत पर दांव लगाने वाले विदेशी निवेशक इन चीजों को नजरंदाज नहीं करने जा रहे।
इस पूरे मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि जब भी भारत में संसद सत्र शुरू होने वाला होता है तो भारत के प्रतिपक्ष को अमेरिका एक नया मुद्दा थमा देता है। अब जबकि सोमवार 25 नवम्बर से शीतकालीन सत्र शुरू होगा तो यह नया मामला सामने आ गया। लिहाजा, उद्योगपति गौतम अदाणी के खिलाफ भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने के आरोपों पर विपक्षी पार्टियों ने बीजेपी और केंद्र सरकार को घेरा है। उन्होंने इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच की मांग की। राहुल गांधी ने कहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में नेता प्रतिपक्ष के नाते वह और पूरा विपक्ष अदाणी से जुड़े मामले को उठाएगा।
बता दें कि राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अदाणी पर लगे आरोपों पर कहा कि उन्हें तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए। उन्होंने यह दावा भी किया कि गौतम अदाणी की गिरफ्तारी नहीं होगी क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी और वह एक हैं और इसीलिए दोनों सेफ हैं। यह राजनीतिक, वित्तीय और अफसरशाही से जुड़े लोगों का पूरा नेटवर्क है। एक तरफ ये नेटवर्क देश के राजनीतिक तंत्र को कब्जे में करता है, दूसरी तरफ मुनाफे का काम करता है। इसलिए सेबी चीफ माधवी पुरी बुच को पद से तुरंत हटाकर जांच हो।
वहीं, कांग्रेस के हमलों पर बीजेपी ने भी पलटवार किया है। बीजेपी सांसद व प्रवक्ता संबित पात्रा ने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस, राहुल गांधी और सोनिया गांधी 2002 से ही नरेन्द्र मोदी की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे सफल नहीं हुए है। राहुल गांधी ने आज जिस तरह का व्यवहार दिखाया है, यह कोई नई बात नहीं है। कंपनी के खिलाफ अमेरिका के आरोपों में जिन चार राज्यों का जिक्र है, उनमें से किसी में भी बीजेपी का मुख्यमंत्री नहीं था। गांधी परिवार और कांग्रेस ये सहन नहीं कर पा रहा है कि भारत लगातार दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है। यही कारण है कि ये भारत की मार्केट पर आक्रमण कर रहे हैं। आज सुबह चार बजे से इनका पूरा स्ट्रक्चर भारत के शेयर मार्केट को गिराने में लगा हुआ है। इससे करीब 2.5 करोड़ छोटे निवेशकों को नुकसान हुआ है।
कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के शासन वाले राज्यों में अदाणी ग्रुप के निवेश का हवाला देते हुए पात्रा ने कहा कि समूह ने छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार के दौरान 25 हजार करोड़ रुपये और 65 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया था। बीजेपी ने राहुल के आरोपों का जवाब देते हुए तंज कसते हुए कहा कि वह भले ही पीएम मोदी की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन उनकी विश्वसनीयता इतनी ही है कि हाल ही में विदेश में उन्हें सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सांसद संबित पात्रा ने कहा कि यह कंपनी का काम है कि वह स्पष्टीकरण दे। कानून अपना काम करेगा। आरोपों में जिन राज्यों का जिक्र है, उनमें उस समय विपक्षी दलों का ही शासन था।
वहीं, उद्योगपति गौतम अदाणी पर लगे आरोपों के बाद आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की है। पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के मित्र गौतम अदाणी ने भारत को शर्मसार किया है। अमेरिका में कोर्ट की जांच के बाद जो खुलासा हुआ है, उसने पूरे देश को हैरान कर दिया है। अदाणी ग्रीन एनर्जी को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में ठेका मिला। अदाणी ने दिल्ली के बिजली क्षेत्र में प्रवेश करने का भी प्रयास किया, लेकिन वे नाकाम रहे। उस समय के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उन्हें रोक दिया था। केजरीवाल ने उस कंपनी को दिल्ली में घुसने नहीं दिया। केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को महंगी बिजली नहीं बेचने दी। अगर गलती से बीजेपी वाले दिल्ली में आ गए तो दिल्ली की जनता को महंगी बिजली के नाम पर फिर से लूटेंगे। हम चुप नहीं बैठेंगे और आगामी सत्र में इस मामले को उठाएंगे।
वहीं, तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले ने इस मामले में पूछा है कि क्या नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इसमें शामिल है? उन्होंने कहा कि अभियोग की खबर पर जब बाजार प्रतिक्रिया कर रहे थे तब सरकार इस मुद्दे पर 'चुप' थी। उधर, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि 'आरोपों में सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देकर अदाणी रिन्यूएबल एनर्जी को लाभ पहुंचाने के लिए बाजार से अधिक दर पर बिजली खरीदना शामिल है। फिर भी अदाणी, बुच के खिलाफ कोई सबूत नहीं। रीढ़विहीन सेबी। यहां आपके भाई के लेन-देन का विवरण देने वाली एसईसी की प्रेस विज्ञप्ति है।
वहीं, आरजेडी सांसद व प्रवक्ता मनोज झा का कहना था कि मामला इतना गंभीर हो गया है कि देश की एजेंसियां और प्रभावशाली लोग पर्दा डालने की लाख कोशिशें कर लें, यह बेनकाब हो जाएगा। उधर, नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र को इस मामले की जेपीसी जांच करवानी चाहिए। क्योंकि यूएस में अदाणी पर धोखाधड़ी का केस व रिश्वत देने के आरोप लगे हैं। इससे पहले भी वह विवादों में रहे हैं।
बहरहाल, सोमवार (25 नवंबर) से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में अदाणी मुद्दे को लेकर टकराव देखने को मिल सकता है। क्योंकि कांग्रेस पहले से ही अदाणी को लेकर मोदी सरकार और पीएम को घेरती रही है। लिहाजा, अब अमेरिका द्वारा उठाए गए ताजा कदम के बाद विपक्ष इस मुद्दे को लेकर और भी हमलावर नजर आ रहा है। राहुल गांधी सहित कई विपक्षी दल यह मंशा जाहिर कर चुके है कि वे सत्र में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाएंगे। अदाणी के मुद्दे पर पहले भी एक सत्र प्रभावित हो चुका है। उधर, इन आरोपों के बीच केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो ने अदाणी ग्रुप के साथ एयरपोर्ट, ऊर्जा सौदों को रद्द कर दिया, जो गम्भीर बात है। यह महज शुरुआत है या अंत, वक्त बताएगा।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
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