अमेरिका की आतंकी घटनाएं लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता दोनों के लिए गम्भीर खतरा
देखा जाए तो आतंकवादी निरोधी उपाय करने में पूरी दुनिया कई हिस्सों में बंट चुकी है और सभी गुट प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से एक-दूसरे के खिलाफ आतंकियों को शह दे रहे हैं, जिससे उनकी नृशंस करतूतें बेरोकटोक जारी हैं।
दुनिया का थानेदार बन चुके अमेरिका में नए वर्ष पर एक के बाद एक हुए तीन आतंकी हमलों से न केवल अमेरिकी नागरिक बल्कि पूरी दुनिया में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की चाह रखने वाले लोग भी स्तब्ध हैं! क्योंकि ये घटनाएं लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता दोनों के लिए गम्भीर खतरा बन चुकी हैं। कहना न होगा कि ब्रेक के बाद हुईं इन जघन्य आतंकी घटनाओं की पुनरावृत्ति से यह साफ हो चुका है कि आतंकवाद एक लाइलाज मर्ज बन चुका है। इसका माकूल इलाज करने में दुनियावी लोकतांत्रिक सरकारें व उनके मातहत प्रशासन अब तक इसलिए विफल है कि आतंकवाद उन्मूलन को लेकर उसके दोहरे मानदंड हैं।
बता दें कि नए साल के जश्न के दौरान न्यू ऑरलियन्स में एक ड्राइवर ने अपना पिकअप ट्रक भीड़ पर चढ़ा दिया और उन पर गोलीबारी भी की। इस प्रकार अमेरिका में नए वर्ष का आरंभ तीन हिंसक हमलों से हुआ। पहला आंतकी हमला न्यू ऑरलियंस में बुधवार तड़के हुआ जिसमें अमेरिका के ही एक भूतपूर्व सैनिक ने जश्न मना रहे लोगों पर तेज रफ्तार पिकअप ट्रक चढ़ा दिया जिसमें मरने वालों की संख्या बढ़कर 15 हो गई है।
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वहीं, दूसरी आतंकी वारदात इसके कुछ ही घंटों बाद हुई, जब लास वेगास में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के होटल के बाहर एक टेस्ला साइबर ट्रक में विस्फोट हुआ जिसमें ट्रक में मौजूद व्यक्ति की मौत हो गई और सात घायल हो गए। जांचकर्ता इस विस्फोट की जांच आतंकी घटना के तौर पर ही कर रहे हैं और उन्हें इस घटना एवं न्यू आरलियंस की घटना के बीच लिंक भी मिला है।
वहीं, तीसरी आतंकी घटना बुधवार को रात 11.20 बजे घटी। जिसमें न्यूयार्क में क्वीन्स के अमाजुरा नाइटक्लब के बाहर तीन से चार लोगों के समूह ने कम से कम 30 राउंड फायरिंग की। इसमें 16 से 20 आयुवर्ग के लड़के-लड़कियां घायल हुए हैं। किसी की भी हालत गंभीर नहीं है। इस नाइटक्लब में हुई लक्षित फायरिंग में 11 लोग घायल हो गए।
उल्लेखनीय है कि न्यू ऑरलियंस में हमले को अंजाम देने वाला 42 वर्षीय शमशुद्दीन जब्बार टेक्सास निवासी अमेरिकी नागरिक है, जो अमेरिका सेना में काम कर चुका है। वह साल 2007 में सेना में शामिल हुआ था। वर्ष 2009 से 2010 तक वह अफगानिस्तान में तैनात रहा था। जबकि वर्ष 2020 में उसने स्टाफ सार्जेंट की रैंक पर रहते हुए सेना छोड़ दी थी। उसके ट्रक के पिछले हिस्से से इस्लामिक स्टेट (आईएस) का झंडा मिला है। शुक्र है कि अमेरिकी पुलिस ने तत्काल ही मुठभेड़ में उसे मार गिराया था। अन्यथा वह और कई लोगों की जान ले लेता।
वहीं, एफबीआई का मानना है कि वह अकेला नहीं था बल्कि उसके साथ और भी लोग शामिल थे, जिनकी खोज में पुलिस जुटी हुई है। हैरत की बात है कि जांचकर्ताओं को जब्बार के वाहन से दो पाइप बमों समेत कई आइईडी भी मिली हैं। वहीं, सर्विलांस फुटेज से पता चला है कि तीन पुरुष एवं एक महिला इनमें से एक उपकरण को लगा रहे थे, लेकिन एफबीआई ने इसकी पुष्टि नहीं की। इस हमले के बाद नववर्ष के पहले दिन होने वाला शुगर बाउल गेम स्थगित कर दिया गया।
उधर, लास वेगास में ट्रंप होटल के बाहर विस्फोट करने वाले टेस्ला के साइबर ट्रक के पिछले हिस्से में फायरवर्क मोर्टार और गैसोलीन के कनस्तर लदे थे। ब्राजील से लास वेगास आई एक प्रत्यक्षदर्शी अना ब्रूस ने बताया कि उसने तीन विस्फोटों की आवाज सुनी थी।
राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां न्यू ऑरलियंस के आतंकी हमले और लास वेगास में ट्रंप इंटरनेशनल होटल के बाहर टेस्ला साइबर ट्रक विस्फोट के बीच किसी भी संभावित कनेक्शन की जांच कर रही हैं। दोनों घटनाओं में इस्तेमाल किए गए वाहन एक कार रेंटल साइट 'टुरो' से किराये पर लिए गए थे, जिससे अधिकारियों को दोनों घटनाओं के बीच संबंधों की तलाश करने के लिए प्रेरित किया गया। हम लास वेगास में ट्रंप होटल के बाहर साइबर ट्रक के विस्फोट को ट्रैक कर रहे हैं।
सोचने वाली बात तो यह है कि जब अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ ने बातों ही बातों में दो टूक कह दिया कि उनके देश में आने वाले अपराधी देश में मौजूद अपराधियों से ज्यादा बुरे हैं, तो उनकी बातों को गम्भीरता से लिए बिना उनका मजाक उड़ाया गया। यदि समय रहते ही अमेरिकी प्रशासन संभल गया होता तो इन घटनाओं को टाला जा सकता था। नववर्ष 2025 जैसे मौके पर वहां ताबड़तोड़ हुईं अकल्पनीय हिंसक वारदातें यह जाहिर कर चुकी हैं कि ट्रंफ गलत नहीं थे। वहीं, टेस्ला के मालिक इलॉन मस्क ने कहा कि ऐसा लगता है कि यह आतंकवादी कृत्य है। फिर वह विश्वास पूर्वक कहते हैं कि यह आतंकवादी कृत्य है।
देखा जाए तो आतंकवादी निरोधी उपाय करने में पूरी दुनिया कई हिस्सों में बंट चुकी है और सभी गुट प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से एक-दूसरे के खिलाफ आतंकियों को शह दे रहे हैं, जिससे उनकी नृशंस करतूतें बेरोकटोक जारी हैं। चाहे अमेरिका हो या इजरायल, फ्रांस हो या जर्मनी, इंग्लैड हो या भारत, सभी देश किसी न किसी रूप में आतंकवादियों/अतिवादियों से जूझ रहे हैं। फिर भी खुले दिल से एक दूसरे का सहयोग नहीं कर पा रहे हैं और सवाल उठने पर अपनी-अपनी राजनयिक मजबूरियों का हवाला देते हैं।
वहीं, दूसरी ओर चाहे चीन हो या रूस, तुर्किये हो या ईरान, पाकिस्तान हो या अफगानिस्तान, बंगलादेश हो या सीरिया, ऑस्ट्रेलिया हो या जापान, दक्षिण अफ्रीकी देश हों या दक्षिण अमेरिकी मुल्क, आतंकवाद निरोधी सबकी प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिकियों की देखा-देखी सबने अपने-अपने आतंकियों की फौज पाल ली है, ताकि वो अपना-अपना कारोबारी और राष्ट्रीय हित साध सकें। इसी का फायदा अरब देशों के शांतिप्रिय समुदाय को मिल रहा है। इस स्थिति ने दुनिया में इस्लामिक शासन और सरिया कानून को लागू करने के उनके मंसूबे को साकार कर दिया है।
जिस तरह से वे लोग तुर्किये, ईरान और पाकिस्तान आदि की अगुवाई में संगठित होकर कदमताल भरते हुए आगे बढ़ रहे हैं, उससे साफ है कि चरित्र विहीन धर्मनिरपेक्षता देर-सबेर उनकी सांप्रदायिक जिद्द के सामने घुटने टेक ही देगी। अफगानिस्तान उनके लिए रोल मॉडल बन चुका है। बंगलादेश उनके लिए नया प्रयोगशाला बन चुका है। इन जैसे विभिन्न मुल्क़ों में आतंकियों की सरकारों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अमेरिका और भारत जैसे आतंकवाद पीड़ित देशों का भी समर्थन प्राप्त है, चाहे इन देशों की लाचारी जो भी हो।
सच कहूं तो जिस तरीके से इस्लाम परस्त वीर बांकुड़े आतंकी रह-रह कर पूरी दुनिया में अपने नृशंस कारनामें दिखा रहे हैं, एक न एक दिन लोग भयजदा होकर उनकी अधीनता स्वीकार कर ही लें। जहां-तहां ऐसा हो भी रहा है।
यही वजह है कि कथित लोकतंत्र की डींगें हांकने वालों और ढपोरशंखी धर्मनिरपेक्षता की शोर मचाने वालों को अब यह समझ में नहीं आ रहा है कि आतंक प्रेमी 'शांतिप्रिय समुदाय' की बढ़ती नापाक वैश्विक आतंकी आकांक्षाओं यानी आतंकवाद के दबदबे वाले शासन-प्रशासन के स्वरूप को आखिर थामा कैसे जाए? क्योंकि आतंकवादियों के हौसले बुलंद हैं। चूंकि उनका शुभचिंतक देश पाकिस्तान, ईरान, तुर्किये, कनाडा आदि जैसे हैं। लिहाजा, अब ये भस्मासुर की तरह अमेरिका को ही भस्म करने पर उतारू हैं।
वैसे तो भारत और इजरायल जैसे देश उनके एजेंडे में बहुत पहले से हैं। चूंकि उनके मंसूबे अफगानिस्तान से लेकर बंगलादेश तक में सफल हो चुके हैं, इसलिए उन्हें अब रोक पाना संभव नहीं है। वो देर-सबेर पूरी दुनिया में इस्लामिक हुकूमत और सरिया कानून लागू करवा लेंगे, क्योंकि धर्मनिरपेक्ष लोग उद्देश्य विहीन उपभोग में मस्त हैं। उनका समाजवादी लोकतंत्र, पूंजीवादी चोला ओढ़ चुका है। वह अपने निहित लाभ के लिए तरह-तरह के "मानवताद्रोही अर्थव्यवस्था" को बढ़ावा दे रहा है। इससे परेशान लोगों द्वारा आतंकवादियों/अतिवादियों/नक्सलियों को मदद मिल रही है।
आलम यह है कि आजकल लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता दोनों परस्पर मिलकर हिंसा-प्रतिहिंसा का निर्यात कर रहे हैं और गैर जरूरतमंद देशों को भी इसके आयात के लिए बाध्य करते हैं। शांतिप्रिय समुदाय को यदि जियो और जीने दो का पाठ यह दुनिया नहीं पढ़ा पा रही है तो इसका सीधा मतलब है कि उसे सिर्फ कारोबारी लाभ से वास्ता है, भले ही वह बम-बारूद, कफ़न-ताबूत के कारोबार को ही बढ़ाकर क्यों नहीं हासिल की जाए। यह कड़वा सच है कि अबतक पिछले दरवाजे से दुनिया को आतंकवाद और सुरक्षा उपकरणों का निर्यात करने वाला अमेरिका अब खुद उनकी जद में आता जा रहा है, क्योंकि नाटो विरोधियों से उन्हें आर्थिक व नैतिक मदद मिल रही है।
हालांकि विश्वव्यापी मानवता के हित में सभी पक्षों द्वारा इस विकृत प्रशासनिक प्रवृत्ति को अविलम्ब बदलने की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के न्यू ऑरलियन्स में हुए आतंकी हमले की निंदा की और कहा कि हमारी संवेदनाएं पीड़ितों और उनके परिवार के साथ हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "हम न्यू आरलियंस में हुए कायरतापूर्ण आतंकी हमले की कड़ी निंदा करते हैं। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं पीडि़तों और उनके परिवारों के साथ हैं। उन्हें इस त्रासदी से उबरने के लिए शक्ति और सांत्वना मिले।"
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
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