Jammu and Kashmir Assembly Elections: नया परिदृश्य और नई आकांक्षाएं

Jammu and Kashmir Assembly Elections
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जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, देश और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें जम्मू और कश्मीर के इन चुनाओं पर केन्द्रित हो रही हैं राज्य गहन राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया है, जहां नेता और पार्टी कार्यकर्ता समर्थन जुटाने के लिए जोरदार प्रचार कर रहे हैं।

जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनावों की लंबे समय से प्रतीक्षित तिथियों की घोषणा कर दी गई है। चुनाव तीन चरणों में आयोजित किए जाएंगे। पहले चरण का मतदान, जिसमें 24 सीटें शामिल हैं, 18 सितंबर को होगा। दूसरे चरण में 26 सीटों पर 25 सितंबर को मतदान होगा, और तीसरे चरण में 40 सीटों पर 1 अक्टूबर को मतदान होगा। चुनाव परिणाम 4 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। यह उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर में 30 सितंबर, 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने के आदेश दिये थे। यह जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 के उन्मूलन/निरस्तीकरण के बाद पहला विधानसभा चुनाव होगा. निरस्तीकरण 5 अगस्त, 2019 को हुआ था।

पहले, जम्मू और कश्मीर में कुल 111 विधानसभा सीटें थीं, जिनमें जम्मू में 37, कश्मीर में 46, और लद्दाख में 4 सीटें थीं। इसके अलावा, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के लिए 24 सीटें निर्धारित थीं। हाल ही में हुई परिसीमन प्रक्रिया के फलस्वरूप सीटों की संख्या परिवर्धित हुयी हैं। अब जम्मू में 43 सीटें होंगी, जबकि कश्मीर में 47 सीटें होंगी। पीओके के लिए यथावत 24 सीटें आरक्षित रहेंगी। 

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कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें आरक्षित की गई हैं और उन्हें कश्मीरी प्रवासी/विस्थापित कहा जायगा। इसके अलावा, लेफ्टिनेंट गवर्नर को विधानसभा में तीन सदस्यों को नामित करने का अधिकार होगा, जिनमें से दो कश्मीरी प्रवासी/विस्थापित और एक पीओके से विस्थापित व्यक्ति होगा। दो कश्मीरी प्रवासी नामितों में से एक महिला होनी चाहिए। कश्मीरी विस्थापित को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो 1 नवंबर, 1989 के बाद घाटी या जम्मू और कश्मीर के किसी भी हिस्से से प्रवास कर गया हो और राहत आयुक्त के यहाँ पंजीकृत हो। जो लोग 1947-48, 1965, या 1971 की घटनाओं के बाद पीओके से प्रवास कर गए, उन्हें विस्थापित व्यक्ति माना जाएगा। प्रवासियों के लिए विशेष रूप से दो सीटों को आरक्षित या नामित करने की पहल के साथ, कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए नई आशा जगी है। इस निर्णय से उन्हें अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और अपनी लंबे समय से चली आ रही शिकायतों के निवारण की मांग करने के लिए एक मंच मिलने की उम्मीद है।

इसके अलावा, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 16 सीटें आरक्षित की गई हैं। इनमें से 7 सीटें एससी उम्मीदवारों के लिए आवंटित की गई हैं, जबकि 9 सीटें एसटी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं।

यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि जम्मू और कश्मीर में आगामी विधानसभा चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अनुच्छेद 370 के अवसान के बाद पहला चुनाव है और  यह चुनाव केंद्र-शासित प्रदेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। परिसीमन प्रक्रिया से भी, जिसने जम्मू में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ा दी है, क्षेत्र के राजनीतिक परिदृश्य पर काफी प्रभाव डालने की संभावना है।

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, देश और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें जम्मू और कश्मीर के इन चुनाओं पर केन्द्रित हो रही हैं राज्य गहन राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया है, जहां नेता और पार्टी कार्यकर्ता समर्थन जुटाने के लिए जोरदार प्रचार कर रहे हैं। चुनावी- वादे किए जा रहे हैं, और प्रतिस्पर्धी गुटों के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों का आदान-प्रदान जारी है। ऐसी स्थिति में, मीडिया की भूमिका न केवल महत्वपूर्ण बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अखंडता के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है।

मीडिया राजनेताओं और मतदाताओं के बीच प्राथमिक सेतु है, और इस अवधि के दौरान इसकी जिम्मेदारियां मात्र रिपोर्टिंग से कहीं अधिक हैं। यह आवश्यक है कि मीडिया पत्रकारिता के उच्चतम मानकों का पालन करें और अभियानों की वस्तुनिष्ठ और तथ्यात्मक कवरेज सुनिश्चित करें। सटीकता, निष्पक्षता और सूचना के नैतिक प्रसार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता जम्मू और कश्मीर में एक पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। 

- डॉ. शिबन कृष्ण रैणा

पूर्व सदस्य, हिंदी सलाहकार समिति, विधि एवं न्याय मंत्रालय(भारत सरकार)

2/537 अरावली विहार (अलवर)

राजस्थान 301001

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