एकता के अभाव में किसी भी समाज या राष्ट्र का उत्थान संदिग्ध
बता दें कि दुनिया में जहां कहीं भी जो लोग विकास की दौड़ में पीछे छूट गए हैं अथवा पीडि़त, शोषित, दुखी और परंशान हैं या कहा जाए कि व्यवस्था में जिन लोगों तक अब तक मदद सबसे कम या नहीं पहुंच पाई है, उन व्यक्तियों, समुदायों तक आज सहायता पहुंचाने की आवश्यकता है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह जन्म, रिश्ते और रोजगार के अतिरिक्त भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य कारणों से चाहे दुनिया के किसी भी कोने में, किसी भी देश का निवासी बनकर क्यों न रहता हो, उसका अपना एक समाज, अपनी एक अलग दुनिया होती है। इसी प्रकार, अलग−अलग जगहों पर रहते हुए मनुष्य की समस्याएं, दुविधाएं, आवश्यकताएं, आकांक्षाएं और उसके पास उपलब्ध सुविधाएं भले ही अलग−अलग प्रकार की हों, परंतु एक बात सभी मनुष्यों के जीवन पर लागू होती है और वह है मानव एकता तथा एकजुटता के साथ उसका आगे बढ़ना। दरअसल, मानव जाति की एकता की जरूरत दुनिया को आरंभिक काल से ही रही है। हालांकि, मनुष्य जाति के लिए अपेक्षित एकता और एकजुटता कभी कायम नहीं हो पाई, जबकि यह सच है कि एकता और एकजुटता के अभाव में किसी भी समाज या राष्ट्र का उत्थान संदिग्ध होता है। जाहिर है कि मानव जाति की एकता और एकजुटता के साथ उसके आगे बढ़ने की इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपने−अपने स्तर पर दुनिया के तमाम देशों को गंभीर प्रयास करने ही होंगे। हालांकि, यह उतना भी आसान कार्य नहीं है कि सारे देश एक दूसरे के निकट आ जाएं और दुनिया में एकता एवं एकजुटता कायम करने के लिए अपनी−अपनी नीतियों में बदलाव कर लें, लेकिन समय की मांग यही है कि गुटबाजियों को छोड़ और खेमेबंदियों को तोड़ कर हर हाल में दुनिया के सभी देश एक दूसरे के निकट आएं और साथ−साथ चलने के लिए संकल्पबद्ध हों।
यह तभी संभव होगा, जब सभी छोटे−बड़े देश अपनी जिद्द, लिप्सा, अपने मोह, लालच और संकुचित सोच को परे रख कर विश्वहित एवं मानवहित में सोचेंगे। देखा जाए तो क्षुद्र विचारों और संकुचित सोच में सिमटकर दुनिया और मानवता ने अपना बहुत नाश कराया है। इसलिए अब जरूरी है कि एकता और एकजुटता को 21वीं सदी के लिए एक आधार और प्रोत्साहन के रूप में स्वीकार करते हुए आगे बढ़ा जाए। हालांकि यह सच है कि वैश्वीकरण ने दुनिया भर के लोगों को आगे बढ़ने और विकास करने के अनेक अवसर प्रदान किए हैं, लेकिन इस वैश्वीकरण ने दो दुनियाओं के निर्माण की पटकथा लिखी। इनमें एक दुनिया ऐसी बनी, जिसमें केवल गरीब लोग रहते हैं, जहां दुरूख, संकट, परेशानियां, समस्याएं, शोषण और उत्पीड़न का साम्राज्य खूब फलता−फूलता है। वहीं, वैश्वीकरण ने इसके बिल्कुल पास ही में एक अलग दुनिया भी बनाई, जिसमें कदम−कदम पर अमीरी की दास्तानें लिखी होती है। जाहिर है कि वैश्वीकरण के कारण होने वाले विकास के लाभों और भारों का वितरण दुनिया भर के मानव समुदायों के बीच असमान रूप से हुआ। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि दुनिया भर में मनुष्यों की एक बड़ी संख्या विकास के मामले में अन्य लोगों से काफी पीछे रह गई। यह विडंबना नहीं तो और क्या है। बहरहाल, 21वीं सदी में मनुष्य की वास्तविक उन्नति और उत्थान को लेकर वैश्विक एकता और एकजुटता के लिए एक संयुक्त वैश्विक प्रयास करने की नितांत आवश्यकता है।
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बता दें कि दुनिया में जहां कहीं भी जो लोग विकास की दौड़ में पीछे छूट गए हैं अथवा पीडि़त, शोषित, दुखी और परंशान हैं या कहा जाए कि व्यवस्था में जिन लोगों तक अब तक मदद सबसे कम या नहीं पहुंच पाई है, उन व्यक्तियों, समुदायों तक आज सहायता पहुंचाने की आवश्यकता है। वैसे, बेहतर तो यह होगा कि जिन्हें व्यवस्था से सबसे अधिक लाभ प्राप्त होता रहा है, वे ही उन तक सहयोग के अपने हाथ लेकर जाएं। जाहिर है कि यदि समर्थ लोग निर्धन और लाचार लोगों तक स्वयं अहयोग का हाथ लेकर जाएंगे तो इससे दोनों ही दुनियाओं के बीच आपसी प्रेम और सद्भाव तो बढ़ेगा ही, साथ ही, इससे साझी जिम्मेदारी की संस्कृति भी विकसित होगी और दुनिया में एकता और एकजुटता के कायम होने में आसानी भी होगी। देखा जाए तो एकता और एकजुटता के विराट महत्व को आत्मसात करते हुए हमारे पूर्वज ऋषि−मुनियों ने इसे बहुत महत्व दिया था। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में आरंभ से ही एकता और एकजुटता महान मानवीय गुण माने जाते रहे हैं। हालांकि, इसके लिए प्रमाण की जरूरत नहीं, फिर भी यदि दुनिया के इतिहास को उठाकर देखा जाए तो पता चलता है कि दुनिया में आज तक सभी महान कार्य मानव जाति की एकता एवं सहयोग से ही संभव हो पाए हैं। तात्पर्य यह कि महान एवं बड़े कार्यो को पूरा करने हेतु दुनिया में मानवीय एकता का होना परम आवश्यक है।
साथ ही, विभिन्न समस्याओं यथा− भुखमरी, निर्धनता, अशिक्षा, आतंकवाद, उग्रवाद, हिंसा, लूट, भ्रष्टाचार एवं अन्य तमाम समस्याओ का निराकरण भी एकल नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयासों से ही सफलतापूर्वक किया जा सकता है। इतना ही नहीं, विश्व भर में समावेशी विकास को अंजाम तक पहुंचाने, अनेकता में एकता के जीवन मूल्य को चरितार्थ करने, सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने एवं एकता के महत्व को प्राप्त करने हेतु भी अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में भी एकता को महत्वपूर्ण मूल्य के रूप में परिभाषित किया जा चुका है। जाहिर है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवीय एकजुटता के आयोजन और प्रदर्शन से विविधता में एकता को बढ़ावा और इसकी उपयोगिता को सम्मान होगा। वैसे, देखा जाए तो एकजुटता का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना भी है कि न्याय के लिए परस्पर एक दूसरे की देखभाल और चिंता की जाए। मनुष्य के लिए आपस में एकजुटता प्रदर्शित करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि परस्पर एक दूसरे का सम्मान किया जाए और एक दूसरे की जरूरतों और परिस्थितियों से संबंधित बेहतर समझ पैदा की जाए। गौरतलब है कि परस्पर एक दूसरे से जुड़ी हमारी यह विस्तृत दुनिया एकत्व के भाव के साथ एक−दूसरे को ऊपर उठाने एवं मनुष्य की व्यक्तिगत सफलता को प्रोत्साहित करने के साथ−साथ पूरे मानव समाज की समृद्धि के लिए समग्र रूप से प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है। तात्पर्य यह कि जब हम एक−दूसरे के लिए सहयोग का हाथ बढ़ाते हैं अथवा दुरूख−दर्द और लाचारी में एक−दूसरे का हाथ थामते हैं, तो ऐसा करके केवल एक−दूसरे के प्रति सहयोग का भाव ही नहीं प्रकट कर रहे होते, बल्कि एकता और एकजुटता को कायम करने के संकल्प की सिद्धि भी कर रहे होते हैं। इतना ही नहीं, एक−दूसरे के लिए सहयोग का हाथ बढ़ाकर या आवश्यकता पड़ने पर एक−दूसरे का हाथ थामकर हम एकत्व की पवित्र और विराट भावना को सम्मानित भी कर रहे होते हैं तथा मनुष्य जाति के लिए अधिक बेहतर और निष्पक्ष भविष्य की दिशा में प्रगति भी कर रहे होते हैं।
−चेतनादित्य आलोक
वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार एवं राजनीतिक विश्लेषक, रांची, झारखंड
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