सफल आर्थिक नीतियों से देश के नागरिकों में प्रसन्नता का संचार संभव
भारतवर्ष की स्वतंत्रता प्राप्ति के 74 वर्षों के बाद भी, भारतीय नागरिकों को आज अपनी आवश्यक जरूरतों की पूर्ति हेतु अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार तो कुछ परिवारों के लिए इस संघर्ष के बाद दो जून की रोटी जुटाना भी अत्यंत कठिन कार्य हो जाता है।
किसी भी देश की आर्थिक नीतियों की सफलता का पैमाना, वहां के समस्त नागरिकों में प्रसन्नता का संचार, ही होना चाहिए। कोई भी नागरिक सामान्यतः प्रसन्न तभी रह सकता है जब उसकी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से हो जाती हो। आजकल शुरुआती दौर में तो रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की आसानी से प्राप्ति ही सामान्य जन को प्रसन्न रख सकती है। परंतु, यह अंतिम ध्येय नहीं हो सकता है। राष्ट्र तेजी से विकास करे, सम्पूर्ण विश्व में एक आर्थिक ताकत बन कर उभरे एवं भारत के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय में तीव्र गति से वृद्धि हो। साथ ही, भौतिकवाद एवं आध्यात्मवाद दोनों में समन्वय स्थापित हो तथा राष्ट्रवाद का विकास हो, भारत को अपने नागरिकों को प्रसन्न रखने के लिए इन लक्ष्यों को भी प्राप्त करना आवश्यक होगा।
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भारतवर्ष की स्वतंत्रता प्राप्ति के 74 वर्षों के बाद भी, भारतीय नागरिकों को आज अपनी आवश्यक जरूरतों की पूर्ति हेतु अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार तो कुछ परिवारों के लिए इस संघर्ष के बाद दो जून की रोटी जुटाना भी अत्यंत कठिन कार्य हो जाता है। अतः देश एवं राज्यों पर शासन करने वाले सत्ताधारी दलों का यह दायित्व होना चाहिए कि देश में रह रहे नागरिकों को रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराएं जायें जिससे उनके द्वारा उनके परिवार के समस्त सदस्यों का पालन पोषण आसानी से किया जा सके। भारतीय समाज में एक कहावत भी कही जाती है कि “भूखे पेट भजन ना हो गोपाला”। जब देश के नागरिकों की भौतिक आवश्यकताएं ही पूरी नहीं होंगी तो वे अध्यात्मवाद की और कैसे मुड़ेंगे? आचार्य चाणक्य जी ने तो यहां तक कहा है कि अर्थ के बिना धर्म नहीं टिकता।
आज जब हम भारतवर्ष में देखते हैं कि देश की लगभग एक चौथाई आबादी, आज भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर है, तब यह अनायास ही आभास होने लगता है कि क्या देश में आर्थिक नीतियों का क्रियान्वयन पूर्णतह सफल नहीं रहा है। श्रम करना नागरिकों का मूलभूत कर्तव्य है अतः देश में निवास कर रहे समस्त नागरिकों के लिए, सरकार की ओर से रोजगार के अधिकार की गारंटी होनी चाहिए।
देश की कुल आबादी का एक बहुत बड़ा भाग आज भी गांवों में निवास करता है। गांवों में निवास कर रहे नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर वहीं पर प्रतिपादित किए जाने की आज बहुत आवश्यकता है जिससे ये नागरिक अपने परिवार का लालन पोषण गांव में ही कर सकें एवं इन नागरिकों का शहर की ओर पलायन रोका जा सके।
भारतवर्ष की आर्थिक प्रगति में कृषि क्षेत्र के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। प्रायः यह पाया गया है कि जिस किसी वर्ष में कृषि क्षेत्र में विकास की दर अच्छी रही है तो उसी वर्ष देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भी अच्छी रही है। ठीक इसके विपरीत, जिस किसी वर्ष में कृषि क्षेत्र में विकास की गति कम हुई है तो देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भी कम ही रही है। इसका सीधा सा कारण यह है कि कृषि क्षेत्र पर निर्भर जनसंख्या के अधिक होने के कारण, एवं इस क्षेत्र पर निर्भर लोगों की आय में कमी होने से अन्य क्षेत्रों, यथा उद्योग एवं सेवा, द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग में भी कमी हो जाती है। अतः इन क्षेत्रों की विकास दर पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए भारतवर्ष की आर्थिक नीतियां कृषि एवं ग्रामीण विकास केंद्रित रखे जाने की आवश्यकता है एवं रोजगार के अधिक से अधिक अवसर भी कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में ही उत्पन्न किए जाने की आज आवश्यकता है। कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों के सम्पन्न होने पर उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों में भी आर्थिक विकास दर में तेजी आने लगेगी।
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कई विकसित देशों में प्रायः यह देखा गया है कि कृषि क्षेत्र के विकसित हो जाने के बाद ही औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई है। इससे आर्थिक वृद्धि की दर में तेज गति आई है। क्योंकि, उद्योगों को कच्चा माल प्रायः कृषि क्षेत्र द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है। यदि कृषि क्षेत्र विकसित अवस्था प्राप्त नहीं कर पाता है तो कच्चे माल के अभाव में उस देश के उद्योगों को पनपने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। हां, उस कच्चे माल का आयात करके तो उस तात्कालिक कमी की पूर्ति सम्भव है परंतु लम्बे समय तक आयात पर निर्भर रहना स्वदेशी औद्योगिक क्रांति के लिए यह ठीक नीति नहीं कही जा सकती। अगर देश के उद्योग अपने कच्चे माल की पूर्ति के लिए अपने देश के कृषि क्षेत्र पर अपनी निर्भरता बढ़ाते हैं तो इससे देश के ही कृषि क्षेत्र का तेज गति से विकास होगा। कृषि क्षेत्र पर निर्भर जनसंख्या की आय में वृद्धि होगी और इन्हीं उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि होगी। परिणामतः देश के विकास में स्वदेशी योगदान को बढ़ाया जा सकेगा।
भारतवर्ष में आज भी कृषि क्षेत्र के विकास की असीमित संभावनाएं मौजूद हैं। किसानों की आय बहुत ही कम है, वे अपने परिवार के सदस्यों की आवश्यक जरूरतों की पूर्ति कर पाने में भी अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं। परिणामतः कुछ वर्ष पहिले तक कई जगह तो किसान आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने को मजबूर होते रहे हैं। हालांकि हाल ही के वर्षों में किसानों की आर्थिक परिस्थितियों में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है, परंतु अभी भी स्वाभाविक रूप से ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिकों के आर्थिक उत्थान पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है।
भारत में पिछले कुछ वर्षों से ग्राम विकास आधारित योजनाएं न केवल बनाई जा रही हैं बल्कि उन पर अमल भी बड़ी तेजी से किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर कुछ योजनाओं का उल्लेख यहां किया जा सकता है। किसानों की आय दुगनी करने के उद्देश्य से किसानों को अन्नदाता से ऊर्जादाता बनाने हेतु एक योजना लायी गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराने के लिए मच्छली पालन योजना को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा लागू की गई कुछ योजनाओं के चलते भारतीय किसानों ने दलहन की खेती के मामले में पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्रांतिकारी कार्य किए हैं, जिससे दलहन की उपज में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। अब भारतीय किसानों से तिलहन के क्षेत्र में भी इसी तरह के क्रांतिकारी कार्य किए जाने की उम्मीद की जा रही है ताकि तिलहन के आयात पर खर्च की जा रही बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को बचाया जा सके। वर्ष 2024 तक ग्रामीण इलाकों के हर घर में जल पहुंचाने की व्यवस्था भी केंद्र सरकार द्वारा की जा रही है। इसके लिए अलग से “जल शक्ति मंत्रालय” बनाया गया है। प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत देश के लगभग सभी गांवों को समस्त मौसम में उपलब्ध सड़कों के साथ जोड़ दिया गया है। अब इन सड़कों को अपग्रेड किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान भी चलाया जा रहा है, इस अभियान के अंतर्गत 2 करोड़ से अधिक ग्रामीणों को डिजिटल क्षेत्र में प्रशिक्षित किया जा चुका है। इस योजना को और अधिक जोश के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक ग्रामीणों को डिजिटल क्षेत्र में कार्य करने हेतु प्रशिक्षित किया जा सके। इससे ग्रामीणों की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज होगी।
मूल प्रश्न यह है कि केंद्र एवं राज्यों की विभिन सरकारों द्वारा तो गरीबों, किसानों, पिछड़ें वर्गों आदि के लिए कई योजनाएं बनाई जा रही हैं परंतु क्या देश का शिक्षित वर्ग एवं सामाजिक कार्यकर्ता भी इन योजनाओं को सफलता पूर्वक लागू कराने में अपना योगदान नहीं दे सकता है। जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा समाज के सभी वर्गों को आपस में जोड़ते हुए नागरिकों के स्वावलम्बन के लिए भी कार्य किया जा रहा है। उसी प्रकार देश की अन्य सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए एवं गरीब तबके को केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा चलायी जा रही योजनाओं की जानकारी देने एवं उनके द्वारा इन योजनाओं का लाभ उठाने हेतु मदद करनी चाहिए। देश के इस वर्ग को यदि हम आर्थिक रूप से ऊपर उठाने हेतु मदद करते हैं तो न केवल यह एक मानवीय कार्य होगा बल्कि इससे देश के कृषि क्षेत्र के साथ साथ औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्रों में भी विकास को गति मिलेगी क्योंकि यह वर्ग इन क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के लिए एक बाजार के रूप में भी विकसित होगा। साथ ही, इससे देश के गरीब एवं वंचित वर्ग में भी प्रसन्नता का संचार किया जा सकेगा, जो इनका हक है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
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