पसमांदा मुस्लिमों का भाजपा के प्रति झुकाव बढ़ने से अखिलेश और मायावती परेशान
पहले कांग्रेस और उसके बाद सपा-बसपा ने इन लोगों का वोट तो खूब लिया, मगर इनके सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्तर में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। तमाम दल इन मुसलमानों को बीजेपी के खिलाफ उकसाते रहते थे।
उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मुस्लिम वोटों के लिए फिर से रार शुरू हो गई है। वैसे तो यह 'लड़ाई' कोई नई नहीं है, लेकिन फर्क बस इतना है, पहले मुस्लिम वोटों के लिए सपा, बसपा और कांग्रेस में मारामारी हुआ करती थी, लेकिन अब इस लड़ाई में भारतीय जनता पार्टी भी कूद पड़ी है। उसकी नजर पसमांदा समाज के वोटरों पर है जिनकी मुसलमानों में आबादी तो 80 प्रतिशत है, परंतु इनको मुस्लिम समाज में अधिकार या बराबरी का दर्जा नहीं मिला हुआ है बल्कि इन्हें सिर्फ इस्लाम के नाम पर बरगला कर उल्टे सीधे काम कराए जाते हैं। जबकि इन मुसलमानों ने काफी समय पहले अपना हिंदू धर्म त्याग कर मुस्लिम धर्म अपनाया था। तब इन लोगों को इस बात की उम्मीद थी उनका सामाजिक आर्थिक सुधार होगा और उनके साथ नाइंसाफी बंद हो जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
पहले कांग्रेस और उसके बाद सपा-बसपा ने इन लोगों का वोट तो खूब लिया, मगर इनके सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्तर में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। तमाम दल इन मुसलमानों को बीजेपी के खिलाफ उकसाते रहते थे। अब इन सब मुद्दों को बीजेपी हवा देकर पसमांदा समाज के मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में लाना चाहती है तो इससे अखिलेश और मायावती परेशान हैं। पहले अखिलेश ने बीजेपी और मोदी पर हमला बोला था और अब मायावती हमलावर हैं। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अपने आप को मुस्लिमों का बड़ा रहनुमा समझती हैं, इसलिए उन्हें अच्छा नहीं लगता है कि ओवैसी की एआईएमआईएम जैसी पार्टियां उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों की नई सौदागर बनें और ना ही उन्हें मोदी का मुस्लिम प्रेम रास आता है। इसीलिए मोदी-योगी जब भी मुस्लिमों के हितों की बात करते हैं तो यह दोनों दल छटपटाने लगते हैं। उन्हें अपना वोट बैंक के खिसकता हुआ नजर आता है। इसीलिए भोपाल में जब मोदी ने पसमांदा समाज की दुर्दशा की बात की तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती एकदम से मोदी के खिलाफ आक्रामक हो गये।
इसे भी पढ़ें: पसमांदा मुस्लिमों से मोदी का प्रेम देखकर मुहब्बत की दुकान वालों को गुस्सा क्यों आता है?
बहरहाल, बीजेपी आलाकमान अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले पसमांदा मुस्लिमों को साधने की कवायद में तेजी से लगा हुआ हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल के एक कार्यक्रम में पसमांदा मुस्लिमों का जिक्र करते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि कुछ राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए मुस्लिम भाई बहनों को भड़का रहे हैं। प्रधानमंत्री के इस बयान पर बीएसपी चीफ मायावती ने उन्हें सलाह दी है कि यदि वह ऐसा मानते हैं तो बीजेपी को इनको मिलने वाले आरक्षण का विरोध भी बंद कर देना चाहिए। मायावती ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर अपना बयान जारी करते हुए कहा कि पीएम मोदी द्वारा भोपाल में बीजेपी के कार्यक्रम में सार्वजनिक तौर पर यह कहना कि भारत में रहने वाले 80 प्रतिशत मुसलमान "पसमांदा, पिछड़े, शोषित" हैं, यह उस कड़वी जमीनी हकीकत को स्वीकार करना है जिससे उन मुस्लिमों के जीवन सुधार हेतु आरक्षण की जरूरत को समर्थन मिलता है। उन्होंने कहा कि अब ऐसे हालात में बीजेपी को पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण मिलने का विरोध भी बंद कर देने के साथ ही इनकी सभी सरकारों को भी अपने यहां आरक्षण को ईमानदारी से लागू करते हुए बैकलॉग की भर्ती को पूरी करके यह साबित करना चाहिए कि वे इन मामलों में अन्य पार्टियों से अलग हैं।
-अजय कुमार
अन्य न्यूज़