पसमांदा मुस्लिमों से मोदी का प्रेम देखकर मुहब्बत की दुकान वालों को गुस्सा क्यों आता है?
अब प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश में दिये अपने संबोधन में पसमांदा मुस्लिमों की बात की तो मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति करने वालों ने यह कहने में जरा भी देर नहीं लगायी कि चुनावी चिंता के चक्कर में भाजपा मुस्लिमों को रिझा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका गये तो उनसे एक पत्रकार ने भारतीय मुसलमानों की स्थिति को लेकर सवाल कर दिया। प्रधानमंत्री अमेरिका के राजकीय दौरे पर थे तभी पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सीएनएन को दिये साक्षात्कार के माध्यम से भारत में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले व्यवहार पर सवाल उठा दिया। प्रधानमंत्री मिस्र दौरे के दौरान वहां ऐतिहासिक मस्जिद गये तब भी तमाम तरह के सवाल उठाये गये। दरअसल अल्पसंख्यकों के नाम पर देश-विदेश में जो राजनीति होती है उसमें मोदी और भाजपा का भय दिखा कर वोटों और नोटों का बिजनेस किया जाता है। यह बिजनेस करने वाले तो मालामाल हो जाते हैं लेकिन गरीब मुसलमान वहीं का वहीं रह जाता है।
मुस्लिमों के प्रति भाजपा का रवैया
अब प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश में दिये अपने संबोधन में पसमांदा मुस्लिमों की बात की तो मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति करने वालों ने यह कहने में जरा भी देर नहीं लगायी कि चुनावी चिंता के चक्कर में भाजपा मुस्लिमों को रिझा रही है। ऐसे लोगों का इस बात पर ध्यान ही नहीं जाता कि प्रधानमंत्री मोदी अपने संबोधनों में एकता और सामाजिक सौहार्द्र पर हमेशा जोर देते हैं। अभी इसी साल जनवरी में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए भी प्रधानमंत्री ने भाजपा कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया था कि वह अल्पसंख्यकों तक पहुँचें और उनका दिल जीतें। मोदी विरोधियों का ध्यान इस बात पर भी नहीं जाता कि देश को पहली बार ऐसा प्रधानमंत्री मिला जिसने संविधान की मूल भावना से प्रेरित 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा देते हुए अपना कामकाज संभाला। प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी ने अपनी सरकार की नीतियों का लाभ पारदर्शिता के साथ समाज के हर वर्ग तक पहुँचाया है जिसका पूरा-पूरा लाभ अल्पसंख्यक समाज को मिला है। साथ ही मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से मुक्ति भी मोदी ने ही दिलाई।
मुस्लिमों का बदल रहा है मन
अब मोदी सरकार सरकार ने पसमांदा समाज के उत्थान का जो संकल्प लेकर उसे सिद्ध करने की दिशा में कदम बढ़ाया है उससे मुस्लिम समाज के बीच मोदी और भाजपा का डर दिखा कर राजनीति करने वालों को परेशानी हो रही है। ऐसे लोगों को यह कतई नहीं पच रहा कि मदरसों में योग हो रहा है, पसमांदा समाज ध्यान लगाकर मोदी के रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' को सुन रहा है। यही नहीं, हाल ही में उत्तर प्रदेश में देखने को मिला कि मुस्लिम समाज 'मन की बात' कार्यक्रम में दिये प्रधानमंत्री के संबोधनों के संकलन को उर्दू किताब की शक्ल देकर उसे मदरसों, उलमा और अन्य इस्लामी विद्वानों के बीच तोहफे के तौर पर बंटवा रहा था। इसके अलावा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्रों में 'स्नेह मिलन— एक देश, एक डीएनए' सम्मेलन में बड़ी संख्या में मुस्लिम शामिल हुए। योगी सरकार में अल्पसंख्यक समाज से जिन दानिश आजाद अंसारी को मंत्री बनाया गया है वह पसमांदा समाज से ही हैं। हम आपको बता दें कि पसमांदा समुदाय में 41 जातियां आती हैं, जिनमें अंसारी, कुरैशी, मंसूरी, सलमानी आदि शामिल हैं और ये बूचड़खाने और बुनाई जैसे पेशे में लगे हैं। इन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लिहाज से अति पिछड़ा समझा जाता है।
पसमांदा मुस्लिमों को वरीयता
इसके अलावा, मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति करने वाले हैरान-परेशान हैं कि पसमांदा मुस्लिमों को चुनावों में भाजपा की उम्मीदवारी कैसे मिल जा रही है? दिल्ली नगर निगम चुनाव हों या उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव, दोनों में ही भाजपा ने पसमांदा मुस्लिमों को टिकट दिया और कई लोग जीत कर भी आये। यही नहीं, अल्पसंख्यक मतदाताओं की बहुलता वाले उत्तर प्रदेश के रामपुर और आजमगढ़ में भाजपा ने लोकसभा और विधानसभा का उपचुनाव जीतकर यह भी दर्शाया कि मुस्लिमों का मन बदल रहा है।
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भारत में आगे बढ़ रहे अल्पसंख्यक
देखा जाये तो भाजपा और मोदी सरकार की छवि मुस्लिम विरोधी के रूप में दर्शाने के काफी प्रयास किये जाते हैं लेकिन यह पहली सरकार है जिसने अन्य दलों की तरह मुस्लिमों को सिर्फ वोट बैंक नहीं समझा बल्कि उनके समावेशी विकास के लिए तेजी से कदम उठाये। पहले की सरकारें जहां तुष्टिकरण की राजनीति करती थीं तो वहीं मोदी सरकार ने 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के सिद्धांत को केंद्र में रखते हुए काम किया और तुष्टिकरण की बजाय सबके संतुष्टिकरण पर जोर दिया। नौ साल पहले देश में मुस्लिम समाज से डॉक्टरों, इंजीनियरों और अन्य बड़े पदों पर काम कर रहे लोगों की संख्या की तुलना आज के आंकड़ों से कर लीजिये आपको साफ पता लग जायेगा कि मुस्लिम समाज से डॉक्टर, इंजीनियर भी बढ़े हैं, सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर मुस्लिम युवा उद्यमी भी बने हैं और भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या भी बढ़ी है जबकि पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या नाममात्र की रह गयी है। पाकिस्तान में मुहाजिर (शरणार्थियों), शियाओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा हुई है जबकि भारत में मुस्लिम समुदाय का हर वर्ग अपना काम कर रहा है और आगे बढ़ रहा है।
मुस्लिमों की जुबानी
हम आपको यह भी याद दिलाना चाहेंगे कि हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से पद्मश्री पुरस्कार ग्रहण करने वाले कर्नाटक के बीदरी शिल्प कलाकार शाह रशीद अहमद कादरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा था कि मेरा यह सोचना गलत था कि भाजपा सरकार उन्हें प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कार से सम्मानित नहीं करेगी। राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कार समारोह के समापन के बाद प्रधानमंत्री ने जब कादरी को बधाई दी और हाथ मिलाया, तो उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा, ''मैं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दौरान पद्म पुरस्कार की उम्मीद कर रहा था, लेकिन मुझे यह नहीं मिला। जब आपकी सरकार आई तो मैंने सोचा कि अब भाजपा सरकार मुझे कोई पुरस्कार नहीं देगी। लेकिन आपने मुझे गलत साबित किया। मैं आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं।’’
बहरहाल, भाजपा सिर्फ पिछड़े मुस्लिमों को ही अपना नहीं बना रही है बल्कि समाज के बुद्धिजीवियों को भी अपने साथ ले रही है। हाल ही में भाजपा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर को उत्तर प्रदेश विधान परिषद में मनोनीत कर इस दिशा में कदम बढ़ाया था। अब प्रधानमंत्री ने एक बार फिर पसमांदा मुस्लिमों की बात की है तो जाहिर है उस पर राजनीति शुरू होनी ही थी। तमाम विपक्षी नेताओं के जिस तरह के बयान आ रहे हैं वह दर्शा रहे हैं कि उन्हें यह कतई मंजूर नहीं है कि उनकी तुष्टिकरण की राजनीति पर आघात किया जाये।
-नीरज कुमार दुबे
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