बुलंदशहर के बहाने योगी को घेरने वाले अखिलेश का जंगलराज भूल गये
एक गांव में गोवंश काटे जाने से उपजे आक्रोश ने ऐसी भयावह अराजकता का रूप धारण किया कि एक पुलिस इंस्पेक्टर सहित दो लोगों की जान चली गई। इस घटना को मॉब लिंचिंग से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
देश का यह दुर्भाग्य है कि पढ़ा−लिखा तबका और बुद्धिजीवी समाज राजनीति पर चर्चा तो खूब करता है, लेकिन राजनीति के मैदान में कदम रखने का साहस नहीं जुटा पाता है। यही वजह है कि राजनीति में अधकचरा ज्ञान रखने वालों और स्वार्थी लोगों की भरमार है। राजनीति के लिये योग्यता का कोई पैमाना नहीं होने की वजह से इसके दरवाजे सबके लिये खुले हुए हैं। यह एक अच्छी बात है, लेकिन इसमें बुराई ज्यादा नजर आती है। संभवतः पूरी दुनिया में हमारे देश की सियासत का स्तर सबसे निचले क्रम पर होगा। कुछ अपवाद को छोड़ दें तो हमारे देश के तमाम नेता बिना काम धंधा किए करोड़ों की संपत्ति के मालिक बन जाते हैं। ऐसा लगता है कि कुछ परिवारों ने तो अपने नाम सियासत का पेटेंट ही करा लिया हो, सियासत में इनकी पीढ़ी−दर−पीढ़ी आगे बढ़ती रहती है। यहां किसी परिवार का नाम लेना जरूरी नहीं है।
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सियासत का स्तर गिरने का खामियाजा देश को भी तमाम तरीकों से भुगतना पड़ रहा है। आज स्थिति यह है कि विचारधारा की जगह व्यक्तिगत मसलों को ज्यादा तरजीह दी जा रही है। कोई जनेऊ दिखा रहा है तो कोई अपने आप को सबसे बड़ा हिन्दू साबित करने में लगा है। हर बात पर सरकार को कोसना विपक्ष का एकमात्र एजेंडा रह गया है। जनता के बीच तनाव बढ़ाना, भ्रम, मतभेद पैदा करना ही सियासत का मूलमंत्र बन जाये तो इससे कई गंभीर मसले नेपथ्य में चले जाते हैं। तमाम मुद्दों पर तार्किक बहस नहीं हो पाती है। अनर्गल आरोप−प्रत्यारोपों की सियासत के चलते कई समस्याएं सुलझने की बजाए और भी ज्यादा उलझ जाती हैं। जिन मुद्दों से सरकार का कोई लेना−देना भी नहीं होता है उसे बेवजह सरकार के खिलाफ हथकंडे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिसके चलते अक्सर असली गुनाहगार बच निकलते हैं। ऐसा ही उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में भी हो रहा है। जहां के एक गांव में गोवंश काटे जाने से उपजे आक्रोश ने ऐसी भयावह अराजकता का रूप धारण किया कि एक पुलिस इंस्पेक्टर सहित दो लोगों की जान चली गई। इस घटना को मॉब लिंचिंग से भी जोड़कर देखा जा रहा है। योगी सरकार ने तत्परता के साथ कदम उठाये, जिसके चलते हत्या के आरोपी गिरफ्तार भी हो गये, लेकिन विपक्ष योगी सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी काफी हो−हल्ला मचा रहे हैं। शायद वह अपने शासनकाल को भूल गये हैं, जब जंगलराज जैसा माहौल हो गया था। योगी ने पुलिस इंस्पेक्टर के परिवार से मुलाकात कर उन्हें हर तरह की मदद का ऐलान कर दिया है।
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इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि गोवंश काटे जाने की घटनाएं कानून के लिए हमेशा चुनौती रही हैं। ऐसी किसी घटना के बाद लोगों का आक्रोशित होना समझ आता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसकी अभिव्यक्ति के नाम पर सब कुछ तहस−नहस कर दिया जाए और यहां तक कि गोहत्या की घटना का संज्ञान ले रहे पुलिस कर्मियों की जान के पीछे पड़ जाया जाए ? आखिर पुलिस वाले तो अपनी जिम्मेदारी का ही निर्वाहन कर रहे थे। बुलंदशहर में पुलिसकर्मियों पर जानलेवा हमले और पुलिस चौकी फूंकने के कृत्य को सभ्य समाज के अनुरूप नहीं कहा जा सकता है। आज गाय के प्रति आस्था का प्रदर्शन इस तरह हो रहा है मानो उसके सामने इंसान की जान की कोई कीमत ही नहीं रह गई है।
बहरहाल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ देश के अन्य अनेक हिस्सों में यह पहली बार नहीं हुआ है, जब गोहत्या अथवा गोवंश की तस्करी के खिलाफ उग्र हुई भीड़ ने हिंसक व्यवहार किया हो और उसके चलते किसी की जान गई हो। इस तरह की घटनाएं रह−रहकर देश के कोने−कोने से सामने आ रही हैं। हालांकि हर ऐसी घटना गाय के प्रति आस्था रखने वालों की बदनामी का कारण बनती है, फिर भी कोई सबक नहीं सीखा जा रहा है। सबसे दुख की बात यह है कि गोवंश की हत्या के नाम पर वही लोग योगी सरकार के सामने मुश्किल हालात पैदा कर रहे हैं जो अपने आप को हिन्दुत्व का लंबरदार समझते हैं। हिन्दू सेना और बजरंग दल जैसे संगठनों को हिन्दुत्व के नाम पर हिंसा फैलाने का अधिकार नहीं है।
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कहा यह भी जा रहा है कि मारा गया इंस्पेक्टर अखलाक हत्याकांड की जांच कर रहा था। इसलिये पुलिस इस एंगल को भी तलाश रही है। एसआईटी बैठा दी गई है। 'दूध का दूध पानी का पानी' हो जायेगा। यहां इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि जो लोग गोवध निषेध कानून को धता बताते हुए गोहत्या से बाज नही आ रहे हैं, उनके खिलाफ किस तरह की कार्रवाई होगी। पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने के क्रम में ऐसा कुछ हर्गिज नहीं किया जाना चाहिए जो कानून एवं व्यवस्था के साथ सामाजिक सद्भाव के लिए खतरा बन जाए। गोहत्या का विरोध किया ही जाना चाहिए लेकिन ऐसा करते हुए अराजकता फैलाने अथवा कानून हाथ में लेने की इजाजत किसी को कतई नहीं मिल सकती। इसके साथ ही ऐसे लोगों से भी सावधान रहना होगा, जो इस तरह की हरकत के जरिये अपने निजी हित पूरे करते हैं। इसमें राजनेता और आपराधिक प्रवृति वाले दोनों तरह के लोग शामिल हैं। सभ्य समाज को नीचा दिखाने वाली बुलंदशहर जिले की घटना की उच्च स्तरीय जांच के साथ−साथ अराजकता फैलाने वालों पर शिकंजा कसा जाना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी उन काराणों का पता लगाना भी है जिनके चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस तरह की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं।
-अजय कुमार
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