जो काम भारत में सबसे पहले होना चाहिए था, वह संयुक्त अरब अमीरात ने कर दिया
जो काम भारत में सबसे पहले होना चाहिए था, वह काम संयुक्त अरब अमीरात कर रहा है। अबू धाबी के शेख मंसूर अल नाह्यान को मेरी ओर से हार्दिक बधाई ! हिंदी को मान्यता मिलने का मतलब उर्दू को भी मान्यता मिलना है।
संयुक्त अरब अमारात याने दुबई और अबूधाबी ने अब अपनी अदालतों में हिंदी को भी मान्यता दे दी है। अरबी और अंग्रेजी तो वहां पहले से ही चलती हैं। हिंदी को मान्यता मिलने का मतलब उर्दू को भी मान्यता मिलना है। हिंदी और उर्दू में फर्क कितना है ? सिर्फ लिपि का ही तो फर्क है। इसका अर्थ यह हुआ कि इस अरब देश ने वहां रहने वाले सारे भारतीय और पाकिस्तानी नागरिकों के लिए अपने इंसाफ के दरवाजे खोल दिए हैं। अमारात की जनसंख्या 90 लाख है। उसमें 26 लाख तो भारतीय हैं और 12 लाख पाकिस्तानी हैं। इन भारतीयों और पाकिस्तानियों में कई पढ़े-लिखे और मालदार लोग भी हैं लेकिन ज्यादातर मजदूर और कम पढ़े-लिखे लोग हैं। इन लोगों के लिए अरबी और अंग्रेजी के सहारे न्याय पाना बड़ा मुश्किल होता है।
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इन्हें पता ही नहीं चलता कि अदालत में वकील क्या बहस कर रहे हैं और जजों ने जो फैसला दिया है, उसके तथ्य और तर्क क्या हैं ? उन्हें जो वकील समझा दे, वही ब्रह्मवाक्य हो जाता है। ऐसी स्थिति में कई बेकसूर लोगों को सजा भुगतनी होती है, जुर्माना देना पड़ता है और कभी-कभी उन्हें देश-निकाला भी दे दिया जाता है। उनकी आर्थिक मुंडाई भी जमकर होती है। ऐसे में यह जो नई व्यवस्था वहां कायम हुई है, उसका भारत और पाकिस्तान, दोनों को स्वागत करना चाहिए। स्वागत ही नहीं करना चाहिए, उससे कुछ सीख भी लेनी चाहिए।
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भारत की अदालतों में आजादी के 70 साल बाद भी भारतीय भाषाओं का इस्तेमाल नहीं होता। सर्वोच्च न्यायालय तो अभी भी अपनी भेड़चाल पर अड़ा हुआ है। वहां मुकदमों की बहस अंग्रेजी में ही होती है। जहां बहस ‘अंग्रेजी’ में होती है, वहां फैसले भी अंग्रेजी में ही आते हैं। अभी सुना है कि उनके हिंदी अनुवाद की बात चल रही है। सच्चाई तो यह है कि देश में कानून की पढ़ाई हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में होनी चाहिए। अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं की सहायता जरूर ली जाए लेकिन कानून की पढ़ाई के माध्यम के तौर पर अंग्रेजी को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। यह काम हमारे नेता कैसे करेंगे ? वे या तो अधपढ़ हैं या अनपढ़ हैं। इन बेचारे नेताओं से आप ज्यादा उम्मीद न करें। यह काम तो देश के विद्वान वकील, जजों और कानून के प्रोफेसरों को करना होगा। जो काम भारत में सबसे पहले होना चाहिए था, वह काम संयुक्त अरब अमीरात कर रहा है। अबू धाबी के शेख मंसूर अल नाह्यान को मेरी ओर से हार्दिक बधाई !
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
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