उत्तर भारतीयों को लेकर फिर गरमा गयी है महाराष्ट्र की राजनीति
महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय हमेशा सियासी मुददा बनता रहा है। जैसे आज शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे उत्तर भारतीयों के खिलाफ बोल रहे हैं, वैसे ही कभी शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे उत्तर भारतीयों के खिलाफ बोला करते थे।
प्रवासी मजदूरों को लेकर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बीच जो जंग छिड़ी हुई है, उसमें सियासत के अलावा और कोई ‘रंग’ नहीं दिखाई दे रहा है। एक ओर जहां कोरोना वायरस से देश जूझ रहा है, वहीं दोनों राज्यों की सरकारें प्रवासी मजदूरों की तमाम समस्यों का समाधान करने की बजाए उसे अलग-अलग ढंग से आगे करके अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगी हैं। पहले जहां लड़ाई दोनों राज्यों की सरकारों के बीच चल रही थी, वहीं अब यह राज्य बनाम राज्य की ओर बढ़ती दिख रही है। प्रवासी मजदूरों के साथ-साथ अब महाराष्ट्र के कुछ सियासतदार और वहां की सरकार के कुछ नुमांइदे मुम्बई में रहने वाले उत्तर भारतीयों को लेकर भी अनाप-शनाप बोलने लगे हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे जो अक्सर महाराष्ट्र और उसकी राजधानी मुम्बई में रहने वाले उत्तर भारतीयों को धमकाने का काम करते रहते हैं, वे भी योगी-ठाकरे की जंग में तीसरा एंगल तलाशने में लग गए हैं। योगी के कुछ बयानों को आधार बनाकर राज ठाकरे फरमा रहे हैं कि भविष्य में उत्तर भारतीयों को महाराष्ट्र में एंट्री के लिए कुछ नियम-शर्तें लागू हो सकती हैं।
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प्रवासी मजदूरों की आड़ में उत्तर भारतीयों को अपमानित किये जाने का सिलसिला आज का नहीं है। महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय हमेशा सियासी मुददा बनता रहा है। जैसे आज शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे उत्तर भारतीयों के खिलाफ बोल रहे हैं, वैसे ही कभी शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे उत्तर भारतीयों के खिलाफ बोला करते थे। उत्तर भारतीयों के खिलाफ बोल-बोलकर ही शिवसेना ने महारष्ट्र की राजनीति में अपनी जगह बनाई थी, लेकिन जब शिवसेना नेताओं को लगने लगा कि उत्तर भारतीयों के बिना वह महाराष्ट्र की सत्ता हासिल नहीं कर सकते हैं तो शिवसेना ने पैंतरा बदल दिया। उसके बाद शिवसेना हिन्दुत्व की बात करने लगी और मुसलमानों को कोसना शुरू कर दिया। कभी उत्तर भारतीयों की पार्टी समझी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी से शिवसेना ने सत्ता के लिए हाथ भी मिलाने से भी गुरेज नहीं किया। भाजपा और शिवसेना के बीच लम्बे समय तक गठबंधन चला, लेकिन उद्धव ठाकरे की सीएम बनने की महत्वाकांक्षा के चलते यह गठबंधन टूट गया तो उद्धव ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ अपनी सोच फिर से उजागर करने में देरी नहीं की। योगी ने जब महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे का मुम्बई में रह रहे उत्तर प्रदेश के मजदूरों की दुर्दशा की तरफ ध्यान दिलाया तो शिवसेना ने अपने मुख पत्र ‘सामना’ के माध्यम से योगी पर तंज कसना शुरू कर दिया। ‘सामना’ में राज्यसभा सांसद संजय राउत ने संपादकीय लिखकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की तुलना हिटलर से कर डाली। उन्होंने लिखा कि यूपी में प्रवासियों के साथ हो रहे अत्याचार और जर्मनी में यहूदियों के साथ हुए अत्याचार एक समान हैं। वहीं इसके जवाब में उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की ओर से लिखा गया, ‘एक भूखा बच्चा ही अपनी मां को ढूंढ़ता है। यदि महाराष्ट्र सरकार ने ‘सौतेली मां’ बन कर भी सहारा दिया होता तो महाराष्ट्र को गढ़ने वाले हमारे उत्तर प्रदेश के निवासियों को प्रदेश वापस न आना पड़ता। इससे शिवसेना आग-बबूला हो गई।
उधर, देश में यूपी के मजदूरों की घर वापसी और लॉकडाउन में हुई दुर्दशा को देखते हुए योगी सरकार ने घोषणा कर दी कि किसी भी राज्य को अब यूपी के मजदूरों की सेवा लेने से पहले यूपी सरकार से इसकी इजाजत लेनी होगी। यूपी सरकार के इस निर्णय के बाद महाराष्ट्र में एक बार फिर मराठी और गैर मराठी राजनीति का दौर शुरू होता दिख रहा है। योगी के बयान के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने कहा कि अगर योगी आदित्यनाथ ने ऐसा नियम बनाया है तो अब हम भी यह कहना चाहते हैं कि किसी भी मजदूर को महाराष्ट्र आने से पहले अब हमारी सरकार, पुलिस और प्रशासन से अनुमति लेना अनिवार्य होगा। ऐसा ना करने पर किसी को महाराष्ट्र में एंट्री नहीं मिलेगी। योगी आदित्यनाथ को इसका ध्यान रखना चाहिए।
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वहीं शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि यदि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि राज्यों को उनके प्रदेश के लोगों को रोजगार देने के लिए उनकी अनुमति लेनी चाहिए तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रवासी मजदूर काम की तलाश में महाराष्ट्र आए थे। उन्होंने कहा, 'हमने उन्हें स्वीकार किया और उन्हें यहां काम करने दिया। हमने इन लोगों का ध्यान पिछले एक-डेढ़ महीने में ही नहीं रखा...बल्कि वे वर्षों से यहां काम करते रहे हैं। हम सब सौहार्द के साथ मिलकर रह रहे थे।
-अजय कुमार
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