औपचारिक और बेहतर कर्ज से किसानों की बढ़ती उत्पादकता

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भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, देश की कुल जनसंख्या का 46.1 प्रतिशत हिस्सा खेती-किसानी और उससे जुड़े कार्यों से अपनी रोजी-रोटी चलाता है। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि यह संख्या और भी ज्यादा हो सकती है।

साल 2025-26 के बजट में किसान क्रेडिट कार्ड पर किसानों को मिलने वाले तीन लाख रूपए के कर्ज को बढ़ाकर पांच लाख कर दी गई है। इसका जिक्र करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में एक्स पर लिखा है कि इससे सब्जी-फल, हॉर्टिकल्चर की खेती करने वाले किसानों को विशेष रूप से लाभ होगा। अब वे खेती में ज्यादा पैसे लगा सकते हैं, ये उत्पादन की लागत घटाने के उपाय हैं। हालांकि किसान संगठनों को लगता है कि इसका जितना फायदा सोचा जा रहा है, उतना नहीं होने वाला है। किसान संगठनों की मांग है कि किसान क्रेडिट की सीमा बढ़ाने के साथ ही किसानों पर बकाया कर्जों को अगर माफ कर दिया जाए तो किसान जहां ज्यादा खुशहाल होंगे। 

भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, देश की कुल जनसंख्या का 46.1 प्रतिशत हिस्सा खेती-किसानी और उससे जुड़े कार्यों से अपनी रोजी-रोटी चलाता है। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि यह संख्या और भी ज्यादा हो सकती है। सरकार के ही आंकड़ों के अनुसार देश के 12 करोड़ किसान परिवार सीमांत हैं। इनमें करीब 35 प्रतिशत की जोत 0.4 हेक्टेयर से कम है, जबकि 69 प्रतिशत किसानों के पास एक हेक्टेयर से कम जमीन है। आंकड़ों के अनुसार देश के 82 प्रतिशत किसान छोटे या सीमांत हैं। जिनकी जोत 0.4 हेक्टेयर से कम है, उनकी खेती से सालाना आमदनी आठ हजार रूपए के आसपास है। जाहिर है कि देश के किसानों के बड़े हिस्से के पास बिक्री के लिए उपज ही नहीं होती। खेती के जरिए वे जो अन्न या सब्जी उपजाते हैं, उनका इस्तेमाल अपने खाने-पीने में ही करते हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता संभालते ही किसानों की आय 2022 तक दोगुना करने का वादा किया था। उसके लिए जो कदम उठाए गए, उसी कड़ी में किसान क्रेडिट कार्ड की शुरूआत भी थी। इसके फायदे हुए भी हैं। लेकिन जो लक्ष्य रखा गया था, उसे पाना अब भी कठिन चुनौती बना हुआ है। 

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शिवराज सिंह चौहान का कहना ठीक है कि किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा बढ़ाने का फायदा किसानों को होगा। इसकी तस्दीक हाल ही में राष्ट्रीय स्तर पर हुए कृषि सर्वेक्षण से जुड़े घरेलू स्तर के आंकड़ों का आकलन भी बताता है। घरेलू स्तर के आंकड़ों के जरिए कृषि में उत्पादकता और उसके जोखिम के साथ ही कृषि ऋण के प्रभाव का आकलन भी किया गया था। इस आकलन के नतीजे बताते हैं कि अगर किसानों को समय पर उचित कर्ज मिलता है तो उससे उसकी उत्पादकता में 24 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दिखने लगती है। इससे किसानों को होने वाले नुकसान का जोखिम 16 फीसद तक कम हो जाता है।

महाजनी सभ्यता और अनौपचारिक कर्ज व्यवस्था के जोखिम और उससे उपजे खराब हालात से जूझते किसानों की दयनीय और मार्मिक कहानियों से भारतीय साहित्य भरा पड़ा है। हिंदी कथा सम्राट प्रेमचंद का मशहूर उपन्यास गोदान ऐसी ही कथाभूमि पर रचा गया गया है। उसे कृषक के दारूण जीवन की महागाथा कहा जाता ही है। बहरहाल यह अध्ययन मानता है कि किसानों को अगर औपचारिक क्षेत्र का ऋण मिलता है तो उसकी उपज और उसकी जिंदगी पर उस कर्ज का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, जबकि अनौपचारिक यानी महाजनी कर्ज व्यवस्था का किसानों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव अधिक होता है। साफ है कि किसानों को अगर सही तरीके से औपचारिक कर्ज सही वक्त पर दीर्घकालिक अवधि के लिए मिले तो उसकी जिंदगी में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकता है। कुछ अन्य अध्ययन भी बताते हैं कि अगर किसानों को समय पर दीर्घकालिक और औपचारिक कर्ज मिलता है तो उसकी खेती को जरूरतों को पूरा करने में उसे मदद मिलती है। इससे उसकी उत्पादकता बढ़ने की गुंजाइश बढ़ जाती है। किसान की उपज बढ़ जाती है, फसल तैयार भी हो जाती है, लेकिन उसे बेचने के लिए सही बाजार तक पहुंच के लिए रकम नहीं होती तो उसे अपनी फसल और उपज औने-पौने दामों में बेचनी पड़ती है। लेकिन अगर किसान को सही तरीके से औपचारिक कर्ज मिलता है तो उस पर तात्कालिक आर्थिक दबाव नहीं रहता और फ़सल के बाद के खर्चों को पूरा करने में उसे मदद मिलती है। अगर किसानों के पास कुछ पैसे रहते हैं तो उस पर घरेलू जरूरतों का दबाव नहीं झेलना पड़ता और उसे अपने घरेलू खर्चों को पूरा करने में जहां सहायता मिलती है, वहीं इसके लिए उसे अपनी उपज सेंतमेत में बेचने को मजबूर नहीं होना पड़ता। इस कर्ज से किसान अपने कृषि उपकरणों और दूसरी अवसंरचनाओं को आसानी से रखरखाव कर सकता है। अध्ययन बताते हैं कि समय बद्ध और सहूलियत भरे अधिक कर्ज के जरिए किसानों को पशुपालन, डेयरी, मत्स्य पालन जैसे कृषि आधारित और सहयोगी कामों को आगे बढ़ाने में मदद होती है। इस पूरी प्रक्रिया का असर यह होता है कि किसान की आर्थिक सुरक्षा मज़बूत हो जाती है। तब वह बाजार और अपने उपज की वाजिब कीमत का इंतजार भी कर सकता है। आर्थिक सहूलियत रहने से समय पर वह जरूरी खाद और दवाओं को खरीदकर उनका खेती में इस्तेमाल कर सकता है। इसके साथ ही वह दूसरे खर्चों का दबाव भी नहीं महसूस कर सकता है।

बीती 31 जनवरी को को संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार देश में मार्च 2024 तक 7.75 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जा चुके थे। इनके जरिए किसानों को 9.81 लाख करोड़ रुपये की राशि दी जा चुकी है। यह रिपोर्ट भी कहती है कि छोटे और सीमांत किसानों को लाभ देने के चलते खेती की उत्पादकता और किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिल रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश के 5.9 करोड़ किसानों को किसान क्रेडिट योजना का फायदा उठा रहे हैं। किसानों की उत्पादकता बढ़ाने को ही ध्यान में रखते हुए बैंकों को स्पष्ट निर्देश है कि अपने कर्ज का कम से कम 40 प्रतिशत हिस्सा कृषि और छोटे किसानों को दें। इसके जरिए कोशिश की जा रही है कि छोटे और सीमांत किसानों को आसानी से औपचारिक कर्ज तो मिल ही सके, उन्हें महंगी दर पर अवशोषक अंदाज में मिलने वाली निजी कर्ज राशि पर निर्भरता ना रहे। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, अब साहूकार जैसे गैर-बैंकिंग कर्जदाताओं पर किसानों की निर्भरता घटकर 1950 के 90 फीसद की तुलना में 2022 में सिर्फ 25 फीसद रह गई। साफ है कि अब ज्यादातर किसान बैंक और संस्थागत स्रोतों से कर्ज ले रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक ताकत और उत्पादकता बढ़ रही है। 

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2014-15 से 2024-25 तक कृषि क्षेत्र के कर्ज में 12.98 प्रतिशत की सालाना बढ़ोतरी हुई है। इसी सर्वेक्षण के मुताबिक, साल 2014-15 में जहां किसानों को 8.45 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया था, वहीं 2023-24 में यह रकम बढ़कर 25.48 लाख करोड़ रुपये हो गई। इसके अनुसार, छोटे और सीमांत किसानों को मिलने वाले कर्ज में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। साल 2014-15 में छोटे किसानों को जहां 3.46 लाख करोड़ रुपये मिले थे, वह 2023-24 में बढ़कर 14.39 लाख करोड़ रुपये हो गया।  सरकार का मानना है कि छोटे किसानों को बैंकों से ज्यादा कर्ज मिल रहा है और इससे वे अपनी खेती तो सुधार रहे ही हैं, अपनी आर्थिक स्थिति भी बेहतर कर रहे हैं। बहरहाल कृषि पर निगाह रखने वाले स्वतंत्र विचारक भी मानते हैं कि किसानों के लिए अल्पकालिक की तुलना में दीर्घकालिक ऋण अधिक प्रभावी है। इसीलिए जानकार मानते हैं कि मौजूदा जलवायु परिवर्तन से आसन्न संकट के दौर में किसानों को मौसम के साथ अनुकूलन और उस लिहाज से अपनी खेती को ढालने के लिए ऐसी कृषि केंद्रित वित्त योजनाओं की जरूरत ज्यादा है। हालांकि इसका एक दूसरा पहलू भी है। कुछ लोगों का मानना है कि किसान कर्ज के बोझ से दबा हुआ है। बजट पर चर्चा के दौरान संसद में राजस्थान के सांसद हनुमान बेनीवाल का यह कहना कि बकाया कृषि कर्ज की रकम अब 32 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई है। यह रकम 18.74 करोड़ से अधिक किसानों पर बोझ बन गई है। इसलिए सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए। 

- उमेश चतुर्वेदी

लेखक गंवई-गंध की रूचि वाले पत्रकार हैं

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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