सिर्फ अपनी बादशाहत के लिए चीन ने पूरी दुनिया को मौत के मुँह में झोंक दिया है
चीन ने पिछले दशक से जैविक युद्ध की तैयारियां शुरू कर दी थीं और अपनी सेना में सूचना प्रौद्योगिकी के साथ जैव प्रौद्योगिकी का भी समावेश किया। चीन ने पिछले कुछ वर्षों में अपने लोगों को पश्चिम में बड़ी संख्या में भेजा ताकि वह आधुनिक तकनीक से वाकिफ हो सकें।
चीन के दो प्रांतों से शुरू हुआ कोरोना वायरस पूरे विश्व के सभी छोटे-बड़े देशों में कोहराम मचा चुका है लेकिन वुहान में सबसे ज्यादा कहर बरसाने वाला यह वायरस चीन के अन्य शहरों तक नहीं पहुँचा जोकि अपने आप में चौंकाने वाली बात है। सवाल उठता है कि 185 देशों के विभिन्न शहरों में कहर बरपाने वाला यह वायरस चीन के एक ही शहर में क्यों विकराल रूप दिखा पाया ? यह वाकई चौंकाता है कि वुहान से 1522 किलोमीटर दूर बीजिंग और वुहान से 840 किलोमीटर दूर शंघाई में जो कोरोना वायरस नहीं पहुंचा वह वुहान से 12 हजार किलोमीटर से ज्यादा दूर न्यूयॉर्क पहुँच गया और वहां सर्वाधिक तबाही जैसे हालात पैदा कर दिये। आज पूरी दुनिया की स्थिति यह है कि चीन से दोगुनी या तीन गुनी मौतें इस वायरस के चलते अलग-अलग देशों में हो चुकी हैं। विश्व अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर पहुँच गयी है तो चीन के उद्योगों में बहार आ गयी है। वहां पर्यटन के सभी केंद्र जिनमें द ग्रेट वाल ऑफ चाइना भी है, खुल गये हैं। सभी रेस्तरां खुले हैं, कार्यालय खुल गये हैं। एक ओर पूरी दुनिया में लॉकडाउन की स्थिति है तो दूसरी ओर चीन में आज स्थिति यह हो गयी है कि चीन दुनिया के विभिन्न देशों को मास्क, हैंड सेनेटाइजर और यहाँ तक कि वेंटीलेटर भी बनाकर भेज रहा है। पूरी दुनिया का उद्योग जगत आईसीयू में है लेकिन चीन के शेयर बाजार छलाँगे मार रहे हैं। दुनिया के समृद्ध देशों में शुमार इटली में तो स्थिति यहाँ तक आ गयी है कि लोगों की हालत इतनी खराब हो गयी है कि वह खाने-पीने का सामान नहीं खरीद पा रहे हैं इसलिए सुपर मार्केट में लूटपाट कर रहे हैं।
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आपकी आंखें पूरी तरह खुल सकें इसलिए आपको लिये चलते हैं चीन में दो दशक पहले आई एक किताब दिखाने। फरवरी 1999 में चीनी सेना के दो जनरलों क्यू लियांग और वांग शियांगसुई ने एक पुस्तक लिखी थी अनरेस्ट्रिक्टेड वारफेयर। इसमें यह कहा गया था कि अमेरिका से सैन्य शक्ति के मामले में चीन नहीं निबट सकता इसलिए दूसरा रास्ता चुना जाना चाहिए। यह दूसरा रास्ता था रसायनिक हथियारों का। शायद इसी पुस्तक के निर्देशों का पालन करते ही चीन ने पिछले दशक से जैविक युद्ध की तैयारियां शुरू कर दी थीं और अपनी सेना में सूचना प्रौद्योगिकी के साथ जैव प्रौद्योगिकी का भी समावेश किया। चीन ने पिछले कुछ वर्षों में अपने लोगों को पश्चिम में बड़ी संख्या में भेजा ताकि वह आधुनिक तकनीक से वाकिफ हो सकें वहीं दूसरी ओर चीन ने अपने देश में दुनिया की बड़ी आईटी कंपनियों को घुसने ही नहीं दिया। पिछले कुछ वर्षों में यह बात समय-समय पर सामने आती रही है कि चीन तरह-तरह के वायरसों का निर्माण कर रहा है। कोरोना वायरस के बारे में भी ऐसी ही खबर आई थी और जिन चीनी डॉक्टर ने इसका खुलासा किया था, पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे जनवरी में उन्हें खुद ही इस वायरस से पीड़ित बताकर मृत बता दिया गया था। कोरोना वायरस की प्रकृति से पूरी तरह वाकिफ चीन ने वो सभी एहतियाती उपाय अपनाये जिससे कि यह वायरस उसके दूसरे शहरों में नहीं फैल पाया। यही नहीं चीन ने दुनिया को इस वायरस के बारे में जानकारी भी बहुत देर से दी ताकि दुनिया की अर्थव्यवस्था तबाह हो जाये। चीन ने अपनी साजिश के तहत यूरोप के समृद्ध देशों- जर्मनी, स्पेन, इंग्लैंड, इटली और फ्रांस तथा अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी अमेरिका को चुना और देखिये उसका हर निशाना सही लगता जा रहा है।
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वैसे चीन में कोरोना वायरस से कितने लोग वास्तव में मारे गये इसको लेकर भी संदेह है क्योंकि एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीन में अस्थि कलश की मांग में बड़ी तेजी आई है। चीन का स्थानीय मीडिया भी बता रहा है कि बड़ी संख्या में लोग शवदाह गृहों में राख लेने के लिए पहुँच रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दो दिनों के अंदर पांच हजार अस्थि कलश के ऑर्डर मिले हैं ऐसे में सवाल उठता है कि यदि चीन 3300 लोगों की मौत की बात कह रहा है तो पांच हजार अस्थि कलश किसलिये मंगवाये गये हैं। यही नहीं एक और रिपोर्ट चौंकाने वाली है। वह यह कि चीनी मोबाइल कंपनियों का कहना है कि पिछले दो तीन महीनों के दौरान दो करोड़ से ज्यादा यूजर्स के फोन डिएक्टिवेट हो गये हैं। अब सवाल उठता है कि यह कौन लोग हैं जिनके फोन बंद हुए हैं? कहीं यह सभी कोरोना वायरस से मारे तो नहीं गये ? लेकिन इन सवालों के सही जवाब मिलेंगे कैसे जब चीन में मीडिया स्वतंत्र ही नहीं है। चीन का कहना है कि यह फोन नंबर इसलिए बंद हो गये होंगे क्योंकि अधिकांश लोग शहरों को छोड़कर गांवों में चले गये। लेकिन सवाल एक बार फिर उठता है कि अब जब सब सामान्य हो चुका है और लोग शहरों में लौट रहे हैं तो फोन नंबर क्यों नहीं बढ़ रहे ?
-नीरज कुमार दुबे
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