आप ने दिल्ली का चुनाव तो जीत लिया मगर प्रदूषण और कचरे से निजात कैसे दिलायेगी?
दिल्ली में नगर निगम में भाजपा का शासन होने के बावजूद भाजपा निगम के कामकाज को उपलब्धि के तौर पर भुनाने में नाकामयाब रही। इसके विपरीत मुख्यमंत्री केजरीवाल के पुराने कामकाज के मद्देनजर मतदाताओं ने उनके वादों पर भरोसा जताया।
चुनाव बाद हुए एक्जिट पोल में जैसी की संभावना व्यक्त की जा रही थी, उसके मुताबिक दिल्ली नगर निगम के चुनाव में आम आदमी पार्टी आसानी से बहुमत का आंकड़ा पाने में सफल रही। आप ने 134 वार्डों में जीत दर्ज कर बोर्ड पर अपना परचम फहरा दिया। भाजपा की भ्रष्टाचार सहित दूसरे मुद्दों पर आप को घेरे में लेने की कोशिश विफल रही। भाजपा 104 वार्डों में चुनाव जीतने के साथ दूसरे स्थान पर रही। कांग्रेस इस चुनाव में भी फिसड्डी साबित हुई। कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी हासिल नहीं कर सकी और 9 वार्डों में जीत कर तीसरे स्थान पर सिमट गई।
कॉर्पोरेशन के चुनाव को लोकसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट भी कह सकते हैं। इस चुनाव ने साबित कर दिया है कि अब वो दिन लद गए जब सिर्फ नारों और पुरातन विचारधारा के दम पर मतदाताओं को बरगलाया जा सकता है। एमसीडी के चुनाव ने जन अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरने पर भाजपा का 15 साल पुराना मजबूत राजनीतिक किला ढहा दिया। इसका व्यापक संदेश है कि मतदाताओं की परवाह नहीं करने वाले राजनीतिक दलों की खैर नहीं है। मतदाताओं को फिजूल के मुद्दों की चर्चा कर गुमराह नहीं किया जा सकता। महंगाई और बेरोजगारी जैसी राष्ट्रीय समस्याओं को छोड़ दें तो, स्थानीय स्तर पर हर रोज होने वाली समस्याओं के समाधान का ठोस आश्वासन और कार्रवाई के बगैर किसी भी राजनीतिक दल के लिए चुनावी मैदान में टिकना आसान नहीं है।
इतना ही नहीं विशेषकर शहरी मतदाताओं और आम नागरिकों को सुविधाओं के साथ गुणवत्ता की भी दरकार है। सिर्फ बुनियादी सुविधाएं मुहैया करा कर ही मतदाताओं का भरोसा नहीं जीता जा सकता है, बल्कि सुविधाओं के साथ गुणवत्ता भी होना जरूरी है। मुख्यमंत्री केजरीवाल न सिर्फ बुनियादी सुविधाओं का विस्तार करने में बल्कि उन्हें गुणवत्तायुक्त बनाने में भी कामयाब रहे हैं। मोहल्ला क्लिनिक और स्कूलों में अंग्रेजी के माध्यम से स्तरीय शिक्षा इसका उदाहरण हैं। इन चुनावों से यह भी साफ हो गया कि भ्रष्टाचार मतदाताओं के लिए तभी बड़ा मुद्दा बन सकता है, जब बुनियादी सुविधाओं के विस्तार का अभाव हो। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में की गई कार्रवाई और भाजपा द्वारा उन्हें प्रचारित किए जाना चुनावी दृष्टि से फायदेमंद नहीं साबित नहीं हुआ।
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दिल्ली में नगर निगम में भाजपा का शासन होने के बावजूद भाजपा निगम के कामकाज को उपलब्धि के तौर पर भुनाने में नाकामयाब रही। इसके विपरीत मुख्यमंत्री केजरीवाल के पुराने कामकाज के मद्देनजर मतदाताओं ने उनके वादों पर भरोसा जताया। भाजपा ने बोर्ड पर लगातार 15 साल तक राज किया। इसके बावजूद दिल्ली में भारी प्रदूषण, यमुना नदी का प्रदूषण, यातायात की सुगम व्यवस्था जैसी समस्याओं का ठोस निराकरण नहीं कर सकी। जबकि केजरीवाल ने लगभग सभी जनसभाओं में दिल्ली को कचरे से मुक्त कराने की बात कही। केंद्र में और दिल्ली नगर निगम में भाजपा का बोर्ड प्रदूषण की समस्या से निपटने में विफल रहा। हालांकि भाजपा ने इसका ठीकरा आप पर फोड़ने की कोशिश की, किन्तु मतदाताओं ने इसे नकार दिया।
चुनाव जीत कर निगम पर काबिज होने के बाद आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली में प्रदूषण और कचरे की समस्या से निपटना आसान नहीं है। दिल्ली गैस चैम्बर में तब्दील हो चुकी है। गाजीपुर लैंडफिल स्टेशन पर कचरे के पहाड़ की ऊंचाई कुतुब मीनार से ऊंची हो चुकी है। दिल्ली वायु प्रदूषण के साथ स्थायी कचरे की दोहरी समस्या से जूझ रही है। देश की राजधानी विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शुमार है। इस समस्या के ठोस और स्थायी दीर्घकालिन समाधान की जरूरत है। दिल्ली का वायुमंडल विषैला हो चुका है। श्वांस संबंधी और प्रदूषण से होने वाली दूसरी बीमारियों से दिल्लीवासी त्रस्त हैं। दिल्ली से बहने वाली यमुना नदी भी विश्व की चुनिंदा प्रदूषित नदियों की सूची में मौजूद है। इसके भी स्थायी हल की जरूरत है।
प्रदूषण हो या दूसरी समस्याएं, इसके लिए वित्तीय जरूरतों को पूरा करना आम आदमी पार्टी के राज वाले दिल्ली नगर निगम के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। राजधानी के तीनों नगर निगम (उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी) का विलय होने के बाद सबसे बड़ी चुनौती खराब आर्थिक स्थिति से उबारना है। तीनों निगमों में राजस्व के मुकाबले खर्च अधिक हैं। सालाना नौ हजार करोड़ रुपये तो निगमकर्मियों के वेतन पर ही खर्च हो जाते हैं, जबकि निगम का पूरा राजस्व महज नौ हजार करोड़ है। इतना ही नहीं, ठेकेदारों की भी 1,600 करोड़ की देनदारी है। डेढ़ लाख कर्मचारियों को समय पर वेतन देना और विकास कार्यों को फिर से शुरू करना अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती होगी। केंद्र की भाजपा सरकार से मुख्यमंत्री केजरीवाल का पहले से ही छत्तीस का आंकड़ा है। ऐसे में आप के दिल्ली नगर निगम को अपने बूते ही वित्तीय मुश्किलों का हल ढूंढ़ना होगा।
-योगेन्द्र योगी
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