भगवान धन्वंतरि की पूजा से मिलता है बेहतर स्वास्थ्य

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धन्वंतरि को देवताओं का वैद्य या आरोग्य का देवता भी कहा जाता है। इन्हें पीतल धातु बहुत प्रिय होता है। इन्होंने बहुत से औषधियों को खोजा। इनकी इस परम्परा को इनके वंशजों ने भी आगे बढ़ाया। इनके वंशजों में एक दिवोदास थे जिन्होंने शल्य चिकित्सा का दुनिया का पहला विद्यालय बनारस में बनाया।

आरोग्य के देवता धन्वंतरि जी धनतेरस के दिन समुद्र मंथन से धरती पर अवतरित हुए थे। धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। धनतेरस के दिन धन्वंतरि जयंती भी मनायी जाती है तो आइए हम आपको धन्वंतरि जयंती के बारे में कुछ रोचक बातें बताते हैं।

जानें धन्वंतरि के बारे में

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं में धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। धन्वंतरि पृथ्वी पर समुद्र मंथन के जरिए आए थे। समुद्र मंथन में त्रयोदशी के दिन धन्वंतरि जी अवतरित हुए थे। इसलिए दीपावली से पहले धनतरेस के दिन धन्वंतरि जयंती मनाने का रिवाज है। इसी दिन आयुर्वेद का भी जन्म हुआ था। धन्वंतरि को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है इनकी चार भुजाएं हैं जिनमें दो में शंख और चक्र धारण किए गए हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे में अमृत कलश मौजूद है। 

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धन्वंतरि को देवताओं का वैद्य या आरोग्य का देवता भी कहा जाता है। इन्हें पीतल धातु बहुत प्रिय होता है। इन्होंने बहुत से औषधियों को खोजा। इनकी इस परम्परा को इनके वंशजों ने भी आगे बढ़ाया। इनके वंशजों में एक दिवोदास थे जिन्होंने 'शल्य चिकित्सा' का दुनिया का पहला विद्यालय बनारस में बनाया। सुश्रुत को इसका प्रधानाचार्य बनाया गया था। सुश्रुत दुनिया के पहले सर्जन थे और इन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। ऐसी मान्यता है कि शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत दिया इस तरह से काशी कालजयी नगरी बन गयी।

धन्वंतरि और आर्युवेद 

धनतरेस को आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की याद में मनाया जाता है। इस पर्व पर कुछ लोग नए बर्तन खरीदकर उनमें पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को चढ़ाते हैं। धनतरेस पर धनवंतरी की पूजा स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के कारण होती है। धन्वंतरि ईसा से लगभग दस हज़ार साल पूर्व हुए थे। वह काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र भी थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर कई जरूरी खोज की थी। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत से सम्बन्धित है। उनके जीवन के साथ अमृत का सोने का कलश जुड़ा है। अमृत बनाने के लिए धन्वंतरि ने जो प्रयोग किए थे वह स्वर्ण पात्र में बनाए गए थे। उन्होंने बताया कि मृत्यु के नाश हेतु ब्रह्मा सहित सभी देवताओं ने सोम नाम के अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत ने उनके रासायनिक प्रयोग का उल्लेख किया है। धन्वंतरि के संप्रदाय में लगभग सौ प्रकार की मृत्यु का वर्णन किया गया है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, बाकी सभी प्रकार की अकाल मृत्यु को रोकने का प्रयास ही निदान और चिकित्सा है।

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सुश्रुत ने न केवल चिकित्सा का बल्कि फसलों का भी गहन अध्ययन किया है। उन्हें पशु-पक्षियों के स्वभाव, उनके मांस के गुण-अवगुण और उनके भेद की भी जानकारी थी। मानव के भोजन का जो वैज्ञानिक वर्णन सुश्रुत तथा धन्वंतरि ने किया वह आज के समय में बहुत प्रासंगिक है।

धनतेरस के दिन मनाई जाता है धन्वंतरि जयंती

धनतेरस के दिन एक तरफ जहां लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है वहीं आरोग्य के देवता धन्वंतरि भी पूजे जाते हैं। स्वास्थ्य ही सब कुछ है सेहत के बिना धन व्यर्थ को चरित्रार्थ करने के लिए धनतेरस के दिन परम वैद्य धन्वंतरि की जयंती मनाकर उनकी पूजा-अर्चना होती है।

प्रज्ञा पाण्डेय

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