हज पूरा होने की खुशी में मनाई जाती है बकरीद
हिंदुओं में जो महत्व तीर्थयात्रा का है, मुस्लिमों में वही हज का है और अपने जीवनकाल में हर मुस्लमान को एक बार हज ज़रूर करना चाहिए ऐसा इस्लाम में कहा गया है। इस्लाम के पांच फर्ज़ में से हज को आखिरी फर्ज माना गया है और जब यह पूरा होता है तो इसकी खुशी बकरीद के रूप में मनाई जाती है।
पूरे साल में मुस्लमानों के लिए दो ईद बहुत महत्वपूर्ण होती है एक ईद-उल-फितर जिसे मीठी ईद कहते हैं, और दूसरा बकरीद जिसे बड़ी ईद या ईद-उल-जुहा भी कहते हैं। इस त्योहार को कुर्बानी से जोड़कर देखा जाता है, मगर एक सच यह भी है कि यह त्योहार हज के पूरा होने की खुशी में मनाया जाता है। इस बार बकरीद 12 अगस्त को मनाई जाएगी।
हज का बहुत महत्व है
हिंदुओं में जो महत्व तीर्थयात्रा का है, मुस्लिमों में वही हज का है और अपने जीवनकाल में हर मुस्लमान को एक बार हज ज़रूर करना चाहिए ऐसा इस्लाम में कहा गया है। इस्लाम के पांच फर्ज़ में से हज को आखिरी फर्ज माना गया है और जब यह पूरा होता है तो इसकी खुशी बकरीद के रूप में मनाई जाती है। इस दिन विशेष रूप से बकरे की कुर्बानी दी जाती है और उसके मांस को खास रस्म के तहत तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा गरीबों को दान दिया जाता है, एक रिश्तेदारों को और तीसरा हिस्सा खुद रखना होता है।
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तो इसलिए दी जाती है बकरे की कुर्बानी...
बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। कहते हैं इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में से एक हजरत इब्राहिम बहुत नेकदिल इंसान थे और लोगों की सेवा करते थे, मगर वह बेऔलाद थे। बहुत सालों बाद उन्हें एक बेटा हुआ जिसका नाम स्माइल रखा गया। इब्राहिम अपने बेटे स्माइल से बहुत प्यार करते थे। लेकिन एक दिन अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज़ कुर्बान करने को कहा। खुदा के आदेश को हजरत इब्राहिम ने मान लिया और बेटे को कुर्बानी के लिए ले जाने लगे। मगर बेटे को कुर्बान करने की हिम्मत न हुई, तो इब्राहिम ने बे कुर्बानी देने के समय अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। कुर्बानी के बाद जैसे ही उन्होंने पट्टी खोली तो देखा की बेटा सही सलामत है, दरअसल अल्लाह उनकी परीक्षा ले रहे थे और बेटे की जगह बकरे की कुर्बानी दी जा चुकी थी। उसी समय से बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी की परंपरा शुरू हो गई।
इन शहरों में रहती है ईद की धूम
वैसे तो बकरीद का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन कुछ शहरों में इसकी धूम बहुत ज़्यादा रहती है। श्रीनगर के हजरतबल दरगाह में नमाज अदा की जाती है और एतिहासिक ईदगाह, रीगल चौक, लाल चौक, गोनी बाजार में इस दिन बहुत चहल-पहल रहती है। दिल्ली क्योंकि मुगलों की राजधानी रह चुकी है, इसलिए यहां ईद की रौनक अलग ही होती है। निजामों की नगरी हैदराबाद में भी ईद बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। सिकंदराबाद, मसाब टैंक, मदन्नापेट और चारमीनार मस्जिद में बहुत रौनक रहती है। नवाबों की नगरी लखनऊ में भी ईद की अलग छंटा दिखती है।
- कंचन सिंह
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