Gyan Ganga: वानर सेना ने जब असंभव कार्य को संभव कर दिखाया, तब रावण क्या सोच रहा था?

vaner sena
Prabhasakshi
सुखी भारती । Mar 9 2023 6:23PM

रावण अपने महलों में जा पहुँचा। कारण कि रावण स्वयं को अपने कक्ष की गूँगी दीवारों के समक्ष तो अकड़ कर खड़ा हो सकता था, लेकिन अपने सभासदों की घूरती व ताड़ती नज़रों के समक्ष खड़े होना, उसके लिए असहज था।

यह भगवान श्रीराम जी की असीम कृपा का ही परिणाम था कि जिस वानर सेना के लिए सिंधु पार जाना पूर्णतः असंभव था, उस सागर को सबने मानों हँसते-हँसते ही पार कर लिया। वर्तमान संदर्भ में ऐसे समीकरण किसी सेना के साथ घटित हों, तो निश्चित ही वह सेना इतनी मस्त तो कतई नहीं हो सकती, जितनी कि प्रभु श्रीराम जी की वानर सेना है। कारण कि वानर सेना इस समय सागर के इस पार नहीं, अपितु सागर के उस पार वहाँ है, जहाँ चप्पे-चप्पे पर रावण के प्रभाव का अस्तित्व है। ऐसे में किसी सैनिक के मन में भय व सतर्कता का भाव न हो, ऐसा हो नहीं सकता। लेकिन वानर सेना के एक भी सदस्य में ढूँढ़ने से भी कोई ऐसा भाव प्रतीत नहीं हो रहा था। अगर होता, तो क्या वे वहाँ जाते ही, फलों के बागों पर अपनी भूख मिटाने थोड़ी न टूट पड़ते? वानरों की मस्ती व साहस का स्तर, केवल इतने पर ही नहीं रुका था। अपितु उन वानरों को घूमते-घूमते अगर कोई राक्षस भी मिल जाते, तो वे उन राक्षसों की खबर लेते। उनसे ‘जय श्रीराम’ के नारे लगवाते, उन्हें प्रभु श्रीराम जी की कथा सुनने पर विवश करते और अगर वे राक्षस कहीं तीन-पाँच करते, तो वे उनके नाक-कान काट देते। फिर वे नाक-कान कटे राक्षस, रावण के समक्ष जाकर अपनी समस्त व्यथा सुनाते। ऐसे ही कुछ नाक-कान कटे राक्षस अपनी रोनी सूरत लेकर रावण के समक्ष पहुँचे-

‘जिन्ह कर नासा कान निपाता।

तिन्ह रावनहि कही सब बाता।।’

रावण ने जब सुना कि वानर सेना उसके राक्षसों के नाक-कान काट रहे हैं, एवं श्रीराम जी सचमुच सेना सहित सागर के इस पार उतर आये हैं, तो वह एक बार तो आश्चर्य के साथ-साथ, भय से काँप गया। उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि तपस्वियों सहित इन वानरों को भी भला क्या धुन, कि वे मेरे परिवार एवं मेरे राक्षसों के नाक-कान के ही पीछे पड़े रहते हैं। पहले मेरी बहन सूर्पनखा के नाक-कान काटे, ओर अब ये लोग, इन बेचारे राक्षसों के पीछे हो लिए।

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रावण तो इस कल्पना को भी अपनी कल्पना में नहीं आने देना चाहता था, कि वानरों की सेना ऐसा असंभव कार्य भी कर सकती है। लेकिन पूरी सभा में, वह अपने इन अस्थिर हो चुके मनोभावों को, अपने चेहरे पर भला क्यों प्रकट होने देता? लिहाजा पहले तो वह खूब ठहाके लगा कर हँसा, ताकि सबको ऐसा प्रतीत हो, कि उसे श्रीराम जी के इस पराक्रम से बिल्कुल कोई हैरानी नहीं हुई। क्योंकि उसके मतानुसार इसमें हैरान होने जैसा कुछ भी नहीं था। लेकिन भीतर तो, उसे भी यह ज्ञान था, कि श्रीराम जी ने कुछ ऐसा तो कर ही दिया है, कि यह उसकी रातों की नींद उड़ाने के लिए प्रर्याप्त था। लेकिन लज्जा से हीन रावण के रक्त में यह संस्कार ही नहीं था, कि वह यह स्वीकार कर सके, कि उससे हट कर भी, संसार में कोई, कैसा भी असाध्य कार्य कर सकता है। अपनी विवशता को वह कैसे करके भी नहीं छुपा पा रहा था। उसे लग रहा था, कि उसके समस्त सभासद उस पर हँस रहे हैं। सभासदों के चेहरों पर तो कैसा भी भाव टिक ही नहीं पा रहा था। उनसे न हँसते बन पा रहा था, और न ही रोते। रावण ने सोचा, कि हो सकता है, कि सभी भीतर ही भीतर मुझपे हँस तो नहीं रहे। इससे बचने के लिए रावण स्वयं ही जोर से हँस पड़ा-


‘निज बिकलता बिचारि बहोरी।

बिहँसि गयउ गृह करि भय भोरी।।’

रावण अपने महलों में जा पहुँचा। कारण कि रावण स्वयं को अपने कक्ष की गूँगी दीवारों के समक्ष तो अकड़ कर खड़ा हो सकता था, लेकिन अपने सभासदों की घूरती व ताड़ती नज़रों के समक्ष खड़े होना, उसके लिए असहज था। ऐसा उसी व्यक्ति के साथ होता है, जो अपनी विफलता व अहँकार को स्वीकार न करे, व हर हाल में यह सिद्ध करे, उससे बढ़कर तो कोई हो ही नहीं सकता। अब सभासद तो उसके कक्ष में आकर झाँकने से रहे। ऐसे में रावण के साथ केवल उसकी तन्हाई ही थी, जो उससे प्रश्न कर सकती थी। लेकिन तन्हाई भी शायद भय से काँप-सी गई। क्योंकि रावण के अंतःकरण में जो सन्नाटा व खालीपन था, वह तो उसने पहले कभी कल्पना में भी नहीं देखा था। रावण के कानों में यह वाक्य बादलों की भाँति गड़गड़ा रहे थे, कि कैसे श्रीराम समस्त वानर सेना सहित सागर को खेल ही खेल में पार कर, लंका के बाहर डेरा डाले बैठे हैं। रावण अपने भीतर के इसी सूने शोर में पलटनियां खा रहा था, कि उसी समय उसकी पत्नि मंदोदरी वहाँ आन पहुँची। उसने जैसे ही यह समाचार पाया, कि श्रीराम जी ने खेल ही खेल में सागर को पार कर लिया है, तो वह समझ गई, कि पति रावण के हृदय को गहन अशांति ने आन घेरा है। ऐसे में मेरा परम कर्तव्य है, कि रावण के अस्थिर मन को शाँत करूँ, और उन्हें धर्म मार्ग की ओर प्रेरित करूँ।

मंदोदरी रावण से क्या वार्ता करती है, एवं क्या रावण पर मंदोदरी की सीख का प्रभाव पड़ता है, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।

-सुखी भारती

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