सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं सालासर बालाजी, पूरे साल भक्तों का लगा रहता है तांता
सालासर के बालाजी का महत्व इस बात से है कि यहां जिस रूप में बालाजी की मूर्ति है वैसी देश में अन्यत्र कहीं भी नहीं हैं। यहां बालाजी को मूंछ और दाढ़ी में दिखाया गया है जो हनुमान जी के व्यस्क रूप को प्रदर्शित करती है।
हजारों लोगों की आस्था, श्रद्धा और विश्वास का धार्मिक स्थल सालासर बालाजी धाम भगवान हनुमानजी को समर्पित हैं। यह पवित्र धाम राजस्थान के राष्ट्रीय राजमार्ग 65 पर चुरू जिले में सुजानगढ़ के समीप सालासर नामक स्थान पर स्थित है। सालासर धाम सालासर कस्बें के मध्य में स्थित है। यहां प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु देश कोने-कोने से प्रतिदिन मनोकामना लेकर बालाजी के दर्शनार्थ आते हैं। चैत्र पूर्णिमा एवं आश्विन पूर्णिमा के अवसर पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है तथा यहां भव्य मेले भरते है जिसमें लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं।
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सालासर में स्थित हनुमानजी को भक्तगण भक्तिभाव से बालाजी के नाम से पुकारते हैं। मंदिर के संदर्भ में प्रचलित कथानक के अनुसार माना जाता है कि बहुत समय पूर्व असोता गांव में एक खेती करते हुए एक किसान का हल किसी वस्तु से टकरा गया। वह वहीं पर रूक गया और जब किसान ने देखा तो उसे शिला दिखाई दी। उसने वहां खुदाई की तो पाया कि वह मिट्टी से सनी हुई हनुमानजी की मूर्ति थी। वह दिन श्रावण शुक्ल की नवमी का दिन और उस दिन शनिवार था। किसान इस घटना के बारे में लोगों को बताया। जब वहां के जमींदार को भी उसी दिन सपना आया कि भगवान हनुमान उसे आदेश देते है कि उन्हें सालसर में इस मूर्ति को स्थापित किया जाए। कहा जाता है कि एक निवासी मोहनदास को भी हनुमान जी ने सपने में दर्शन देकर आदेश दिया कि मुझे असोता से सालासर में ले जाकर स्थापित करें। अगले दिन मोहनदास ने इस सपने के बारे में जमींदार को बताया तो जमींदार उसे अपने सपने के बारे बताया। इस पर दोनों ही आश्चर्यचकित हो जाते है तथा भगवान के आदेशानुसार मूर्ति को सालासर में स्थापित कर दिया जाता है।
देश-विदेश में विख्यात यह मंदिर करीब 260 वर्ष से अधिक प्राचीन हो गया है। मंदिर प्रबन्धन की हनुमान सेवा समिति के मुताबित विक्रम संवत् 1811 को सावन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को शनिवार के दिन मंदिर की स्थापना की गई थी। मंदिर में हनुमान जी को असोता गांव से रथ में विराजित कर ग्रामीण जन कीर्तन करते हुए लेकर आये। समय के साथ-साथ यह स्थल पूरे देश में विख्यात हो गया। मंदिर में बालाजी के परमभक्त मोहनदास जी की समाधि स्थित है तथा मोहनदास द्वारा प्रज्जवलित अग्नि कुण्ड धूनी भी स्थित है। मान्यता है कि इस अग्नि कुण्ड की विभूति से समस्त दुख व कष्ट नष्ट हो जाते हैं।
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सालासर के बालाजी का महत्व इस बात से है कि यहां जिस रूप में बालाजी की मूर्ति है वैसी देश में अन्यत्र कहीं भी नहीं हैं। यहां बालाजी को मूंछ और दाढ़ी में दिखाया गया है जो हनुमान जी के व्यस्क रूप को प्रदर्शित करती है। मंदिर परिसर में स्थित एक प्राचीन वृक्ष पर भक्तगण नारियल बांधकर मनोकामानाओं की पूर्ति की अभिलाषा करते हैं।
सालासर बालाजी मंदिर में हनुमान जयंती, रामनवमी के अवसर पर भण्डारे और कीर्तन को विशेष आयोजन किया जाता है। प्रत्येक मंगलवार एवं शनिवार के दिन मंदिर में कीर्तन आदि आयोजन होते हैं और बडी संख्या में इन दिनों में श्रद्धालु दर्शन करते हैं। लगभग 25 वर्षों से यहां रामायण का अखण्ड पाठ चल रहा है। साथ ही प्रत्येक वर्ष चैत्र पूर्णिमा एवं आश्विन पूर्णिमा को भव्य मेले लगते हैं। इन मेलों में बड़ी संख्या विदेशी सैलानी भी मौजूद रहते हैं।
- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार
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