बकरीद भारत में कब है? क्या है महत्व कुर्बानी के इस पर्व का?
इस्लाम के पांच फर्जों में हज भी शामिल है। हज यात्रा पूरी होने की खुशी में ईद-उल-जुहा (बकरीद) का त्योहार मनाया जाता है। इस्लामिक नियम कहता है कि पहले अपना कर्ज उतारें, फिर हज पर जाएं और उसके बाद बकरीद मनाएं। बकरीद से पहले मुस्लिम बहुल इलाकों में तंदुरूस्त बकरों की बिक्री शुरू हो जाती है और कई बार तो बकरों की कीमत लाखों रुपए तक पहुंच जाती है।
बकरीद को बड़ी ईद भी कहा जाता है। मुसलमानों के इस पर्व को हज यात्रा की समाप्ति पर मनाया जाता है। मान्यता है कि बकरीद इस्लामिक कैलेंडर की तारीख को देखे जाने वाले चांद के मुताबिक होती है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 12वां महीना ज़ु-अल-हज्जा होता है और इसी महीने की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाती है। कैलेंडर के मुताबिक यह तारीख ईद-उल-फितर (ईद) के 70 दिनों बाद आती है। ज़ु-अल-हज्जा माह की 1 तारीख को चांद नजर आ जाता है इसलिए इसके ठीक 10 दिन बाद बकरीद मनायी जाती है। इस बार 12 अगस्त को बकरीद है जोकि इस्लामिक कैलेंडर में ज़ु-अल-हज्जा माह की 10वीं तारीख है।
बलिदान का त्योहार
इस्लाम में बलिदान का बहुत अधिक महत्व है। इस्लाम धर्म में मान्यता है कि अपनी सबसे प्यारी चीज रब की राह में खर्च करो। रब की राह में खर्च करने का अर्थ नेकी और भलाई के कामों में खर्च करने से है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने पुत्र हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा कि राह में कुर्बान करने जा रहे थे, तो अल्लाह ने उनके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में भी यह पर्व मनाया जाता है।
पर्व की रहती है बड़ी धूम
देश-विदेश में इस पर्व पर बड़ी रौनक रहती है। कुर्बानी के इस त्योहार पर ईद की नमाज अता करने के लिए मस्जिदों में भारी भीड़ होती है। इस त्योहार पर नमाज के बाद लोग बकरे, भैंस, भेड़, ऊंट आदि की कुर्बानी देते हैं। इस पर्व को ईद अल अज़हा भी कहा जाता है।
कुर्बानी की कहानी
कुर्बानी कैसे शुरू हुई इसके बारे में एक प्रचलित कहानी है जिसके अनुसार- एक बार आकाशवाणी हुई कि अल्लाह की रजा के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करो, तो हजरत इब्राहिम ने सोचा कि मुझे तो अपनी औलाद ही सबसे प्रिय है। इसलिए उन्होंने बेटे की ही बलि देना स्वीकार किया। हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद उन्होंने पट्टी हटाई तो अपने पुत्र को अपने सामने जिंदा खड़े देखा जबकि बेदी पर कटा हुआ मेमना पड़ा था। माना जाता है कि तभी से बकरीद के मौके पर बकरे और मेमनों की बलि देने का प्रचलन शुरू हुआ।
कुर्बानी के सामान के तीन हिस्से किए जाते हैं
कुर्बानी में अल्लाह का नाम लेकर जिन बकरों की बलि दी जाती है वह तन्दुरुस्त होता है। कुर्बानी और गोश्त को हलाल कहा जाता है। इस गोश्त के तीन बराबर हिस्से किए जाते हैं, एक हिस्सा खुद के लिए, एक दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा गरीबों के लिए रखा जाता है और इसे तुरंत वितरित किया जाता है। जिस तरह ईद-उल-फितर को गरीबों में पैसा दान के रूप में बांटा जाता है उसी तरह बकरीद को गरीबों में मांस बांटा जाता है। बकरीद का संदेश है कि आपको सच्चाई की राह पर कुछ भी न्यौछावर करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
इस्लाम के पांच फर्ज
इस्लाम के पांच फर्जों में हज भी शामिल है। हज यात्रा पूरी होने की खुशी में ईद-उल-जुहा (बकरीद) का त्योहार मनाया जाता है। इस्लामिक नियम कहता है कि पहले अपना कर्ज उतारें, फिर हज पर जाएं और उसके बाद बकरीद मनाएं। बकरीद से पहले मुस्लिम बहुल इलाकों में तंदुरूस्त बकरों की बिक्री शुरू हो जाती है और कई बार तो बकरों की कीमत लाखों रुपए तक पहुंच जाती है। स्वस्थ और तंदुरूस्त बकरा कुर्बान करने की प्रथा के चलते पैसे वाले लोग तगड़े से तगड़ा बकरा खरीद कर कुर्बान करना चाहते हैं भले इसके लिए कोई भी कीमत अदा करनी पड़े।
-शुभा दुबे
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