Gyan Ganga: अथ श्री महाभारत कथा- जानिये भाग-8 में क्या क्या हुआ
पांडव अपने वनवास के दौरान एक जंगल में कुटिया बनाकर रहने लगते हैं। वहाँ वे जंगल की लकड़ियां, नदियों का पानी और पेड़ों के फल खाकर अपना गुजारा करने लगते हैं। एक बार तालाब में पानी पीने के दौरान पांडवों की मुलाकात यक्ष के भेष में यमराज से होती है।
ॐ नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॐ
अथ श्री महाभारत कथा अथ श्री महाभारत कथा
कथा है पुरुषार्थ की ये स्वार्थ की परमार्थ की
सारथि जिसके बने श्री कृष्ण भारत पार्थ की
शब्द दिग्घोषित हुआ जब सत्य सार्थक सर्वथा
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमअधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
भारत की है कहानी सदियो से भी पुरानी
है ज्ञान की ये गंगाऋषियो की अमर वाणी
ये विश्व भारती है वीरो की आरती है
है नित नयी पुरानी भारत की ये कहानी
महाभारत महाभारत महाभारत महाभारत।।
पिछले अंक में हम सबने पढ़ा कि पांडवों का 12 वर्ष का वनवास होता है।
पांडव अपने वनवास के दौरान एक जंगल में कुटिया बनाकर रहने लगते हैं। वहाँ वे जंगल की लकड़ियां, नदियों का पानी और पेड़ों के फल खाकर अपना गुजारा करने लगते हैं। एक बार तालाब में पानी पीने के दौरान पांडवों की मुलाकात यक्ष के भेष में यमराज से होती है।
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यक्ष उनसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता है लेकिन युधिष्ठिर को छोड़कर सारे पांडव भाई यक्ष की बात को अनसुनी कर देते हैं और मूर्छित हो जाते हैं। ऐसे में युधिष्ठिर द्वारा सारे प्रश्नों का ठीक उत्तर देने पर यमराज खुश होकर युधिष्ठिर के समस्त भाइयों को जीवित कर देते हैं। इस घटना के बाद ही युधिष्ठिर को धर्मराज के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त होती है।
आइए ! कथा के अगले प्रसंग में चलते हैं ....
जयद्रथ के द्वारा द्रौपदी का हरण
बारह वर्ष के वनवास के दौरान ही एक बार जब द्रौपदी अकेली कुटिया में रह रही थी। तब दुर्योधन की बहन का पति जयद्रथ द्रौपदी की परिस्थिति का फायदा उठाकर उन्हें हरण करके अपने साथ ले जाता है जब पांडवों को यह बात पता लगती है, तब अर्जुन और भीम मिलकर जयद्रथ को युद्ध करके बंदी बना लेते हैं और युधिष्ठिर के सामने प्रस्तुत करते हैं। तब समस्त पांडव भाई मिलकर जयद्रथ को इसलिए माफ कर देते हैं क्योंकि वह उनकी बहन का पति था। और इस प्रकार जयद्रथ मुक्त हो जाता है।
दुर्वासा का आगमन
पांडवों के वनवास के समय ही ऋषि दुर्वासा ब्राह्मणों के समेत पांडवों की कुटिया में पधारते हैं और ब्राह्मणों को भोजन कराने के लिए कहते हैं, लेकिन उस दौरान पांडवों के पास ब्राह्मणों को खिलाने के लिए भोजन नहीं था। ऐसे में भगवान श्री कृष्ण वहां पांडवों की सहायता के लिए आते हैं और पांडवों की कुटिया में चावल का एक दाना खाकर अपनी चमत्कारी शक्तियों से सभी ब्राह्मणों का पेट भर देते हैं। ऐसे में भगवान श्री कृष्ण के कारण ही पांडव ऋषि दुर्वासा के श्राप से बच जाते हैं।
अप्सरा उर्वशी द्वारा अर्जुन को शाप
इसके बाद समस्त पांडवों को श्री कृष्ण यह आदेश देते हैं कि वह अलग अलग होकर ब्रह्म शक्तियों को पाने के लिए तपस्या करें। ऐसे में नकुल और सहदेव ने जंगल में रहकर अश्विनी कुमारों, भीम ने पवन पुत्र हनुमान, अर्जुन ने भगवान शिव का आह्वान किया। वहीं युधिष्ठिर और द्रौपदी ने ऋषियों की सेवा करने का निश्चय किया।
इसी दौरान जब अर्जुन ने भगवान शिव की तपस्या की तब प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पाशुपतास्त्र दे दिया, हनुमान जी ने भीम को द्वंद युद्ध की नीति का ज्ञान कराया। साथ ही नकुल और सहदेव को भगवान अश्विनी कुमारों से औषिधियों का ज्ञान प्राप्त हुआ।
इसके अलावा जब अर्जुन नृत्य ज्ञान और दिव्य शस्त्रों की प्राप्ति के लिए इंद्रलोक पहुंचे। तब वहां चित्रसेन ने अर्जुन को नृत्य ज्ञान की शिक्षा दी। इस दौरान इंद्रलोक में उर्वशी नाम की एक अप्सरा थी। जो कि अर्जुन पर मोहित हो गई थी। ऐसे में जब उर्वशी नामक अप्सरा ने अर्जुन से अपने प्रेम का इजहार किया। तब अर्जुन ने उन्हें ठुकरा दिया। जिसपर क्रोधित होकर उर्वशी ने अर्जुन को एक वर्ष के लिए किन्नर होने का शाप दे दिया था ।
विराट नगरी और कीचक वध
पांडवों ने बारह साल का वनवास खत्म करने के बाद अज्ञातवास के लिए विराट नगरी को चुना। जहां युधिष्ठिर भेष बदलकर विराट राजा के राज्य में मंत्री कंक के नाम से रहने लगे, भीम रसोइया के भेष में और द्रौपदी सैरंध्री के भेष में रानी की सेवा में लग गई।
वहीं नकुल ग्रंथिक बनकर अस्तवल में काम करने लगे और सहदेव तांतिपाल नाम से गौ की सेवा में समर्पित हो गए। जबकि अर्जुन जिन्हें एक वर्ष का किन्नर बनने का श्राप मिला था, उन्हें राजा विराट की पुत्री उत्तरा का नृत्य और गायन शिक्षक घोषित कर दिया गया। जिनका नाम बृहंडला था।
विराट नगरी में एक बार द्रौपदी (सैरंध्री) का आमना सामना वहां के सेनापति कीचक से हुआ। जो कि उसको बुरी नजरों से देखा करता था। एक बार जब कीचक ने सैरंध्री को अपनी दासी बनाने की बात कही, तब द्रौपदी ने यह बात जाकर भीम को बताई। तब भीम ने द्रौपदी के अपमान का बदला लेते हुए कीचक को अर्जुन की सहायता से मार दिया।
दुर्योधन द्वारा विराट नगरी पर आक्रमण
उधर, दुर्योधन ने अपने गुप्तचरों के माध्यम से यह पता लगा लिया था कि पांडव अज्ञातवास के दौरान आखिर कहां ठहरे हुए थे? जिसके चलते उसने अपनी कौरव सेना के साथ विराट नगरी पर आक्रमण कर दिया। और जवाब में अर्जुन ने बृहंड के भेष में ही अपने गांडीव के द्वारा कौरव सेना को विराट नगर के बाहर ही रोक दिया। साथ ही जब तक दुर्योधन पांडवों के अज्ञातवास का भेद खोल पाता, तब तक पांडवों का अज्ञातवास सफलतापूर्वक पूर्ण हो चुका था।
शेष अगले प्रसंग में ------
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
- आरएन तिवारी
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