Quit India Movement: जब हिल गयी थी ब्रिटिश सरकार
अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होने के कुछ समय बाद ही गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ताओं ने हड़तालों और तोड़फोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन को जिंदा रखा।
8 अगस्त 1942 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। उस समय दूसरे विश्व युद्ध में उलझे इंग्लैंड को भारत में ऐसे आंदोलन की उम्मीद नहीं थी। पूरी ब्रिटिश हुकूमत इससे हिल गई थी। 1857 के बाद देश की आजादी के लिए चलाए जाने वाले सभी आंदोलनों में 1942 का ये आंदोलन सबसे विशाल और सबसे तीव्र आंदोलन साबित हुआ था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाने वाले इस आंदोलन में पूरे देश के लोगों की व्यापक भागीदारी रही थी।
अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होने के कुछ समय बाद ही गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ताओं ने हड़तालों और तोड़फोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन को जिंदा रखा। इस आंदोलन ने देखते ही देखते ऐसा रूप ले लिया था कि अंग्रेजी सत्ता को दमन के सभी उपाय नाकाफी साबित होने लगे थे।
1942 का अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन 1920, 1921, 1930, 1940-41 के आंदोलनों से काफी भिन्न था। इसी कारण सुभाष बाबू ने कहा था कि 1942 में पेसिव रजिस्टेन्स के युग का अंत होकर एक्टिव रजिस्टेन्स का सूत्रपात हुआ। राजनारायण मिश्र, महेंद्र चौधरी, लेना प्रसाद, मांतिगिनी हाजरा, चाफेकर बंधुओं, खुदीराम बोस, कन्हाई लाल, करतार सिंह, रामप्रसाद बिस्मित, अशफकाउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे वीरों के अविस्मरणीय योगदान ने आजादी की राह काफी सरल बना दी थी। गांधीजी का करो या मरो का नारा अत्यन्त ही शक्तिशाली मंत्र साबित हो रहा था। बापू के इस मंत्र का भी देशव्यापी असर पड़ा और यह नारा बाद में आजादी पाने का ध्येय मंत्र बन गया।
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इस आंदोलन को लालबहादुर शास्त्री ने एक बड़ा रूप दे दिया था। लालबहादुर शास्त्री ने 1942 में मरो नहीं मारो का नारा दिया। जिसने क्रान्ति की ज्वाला को पूरे देश में प्रचण्ड किया। 19 अगस्त 1942 को शास्त्री जी गिरफ्तार हो गए। इस आंदोलन की व्यूह रचना बेहद तरीके से बुनी गई थी। चूंकि अंग्रेजी हुकूमत दूसरे विश्व युद्ध में पहले ही पस्त हो चुकी थी और जनता भी आंदोलन की ओर झुक रही थी। लिहाजा 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई सत्र में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नाम दिया गया था। हालांकि गांधी जी को फौरन गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़ताल और तोड़फोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे।
9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। गांधी जी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में, डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबंद किया गया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 942 लोग मारे गये, 1630 घायल हुए, 18 हजार डीआईआर में नजरबंद हुए तथा 60 हजार 229 गिरफ्तार हुए। जयप्रकाश नारायण, अरूणा आसफ अली व मदनलाल बागड़ी का इस क्रांति में अविस्मरणीय योगदान रहा था।
6 अगस्त 1925 को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से बिस्मिल के नेतृत्व में हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ के दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी कांड किया था। जिसकी यादगार ताजा रखने के लिए पूरे देश में हर साल 9 अगस्त को काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस मनाया जाता था। इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे। गांधी जी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत 9 अगस्त 1942 का दिन चुना था। दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैंड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी सभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज को दिल्ली चलो का नारा दिया। गांधी जी ने मौके की नजाकत को भांप लिया और 8 अगस्त 1942 की रात में ही बम्बई से अग्रेजों को भारत छोड़ो व भारतीयों को करो या मरो का आदेश जारी किया।
अगस्त क्रांति आन्दोलन में महिलाओं के योगदान को कम तर नहीं आका जा सकता। अरूणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी ने आंदोलन में खूब साथ दिया। अच्युत पटवर्धन, रासबिहारी, मोहन सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने अमूल्य योगदान दिया। 8 अगस्त 1942 को जिस क्रांति का सूत्रपात हुआ उसने यह जाहिर कर दिया कि अब अंग्रेजी हुकूमत टिक नहीं सकती। दरअसल सन् 1942 की क्रांति पिछले सत्तावन वर्ष से राष्ट्रीय कांग्रेस जो आंदोलन चला रही थी उसका उफान था। इस आंदोलन के उफान ने अंग्रेजों की आंखें खोल दी थी। इस आंदोलन से सारा देश मानो हिल गया था। इस उफान की पृष्ठभूमि में लोकमान्य तिलक और उनके बाद महात्मा गांधी ने व्यापक जन-जागृति उत्पन्न की थी।
इस आंदोलन की सबसे बड़ी खासियत थी कि इसने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया था। नवयुवक कॉलेज छोड़कर जेल जा रहे थे। इस आंदोलन का प्रभाव इतना ज्यादा था कि अंग्रेज हुकूमत पूरी तरह हिल गई थी। अंग्रेजों को इस आंदोलन को दबाने के लिए ही साल भर से ज्यादा का समय लगा था। जून 1944 में जब विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था तो महात्मा गांधी को रिहा कर दिया गया। इस तरह आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत पर व्यापक प्रभाव डाला और इसके कुछ साल बाद ही 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ।
हमारे देश को अंग्रेजो की गुलामी से तो आजाद हुये काफी साल हो गये। मगर देश आज भी भ्रष्टाचार, भेदभाव, जातिवाद की गुलामी में जकड़ा हुआ है। देश में भ्रष्टाचार, जातिवाद का जहर लोगो की रग-रग में बस चुका है। भ्रष्टाचार के चलते देश के लोगों में अलगाववाद, आंतकवाद, साम्प्रदायिकता, विघटनकारी भावना घर कर गयी है। जो देश की तरक्की की राह में एक बड़ी रूकावट बन चुकी है। जब तक देश में भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लग पायेगी तब तक देश विकाश पथ पर समुचित गति से आगे नहीं बढ़ पायेगा।
भारत छोड़ो आंदोलन की ही तरह एक बार देश की जनता को नये सिरे से एकजुट होकर भ्रष्टाचार मिटाओ देश बचावो आन्दोलन चलाना होगा तभी देश सही मायने में आजाद हो पायेगा। भारत छोड़ो आंदोलन को 80 साल पूरे हो रहे हैं। ऐसे में भारत के हर नागरिक को देश के इस बड़े आंदोलन के बारे में अवश्य जानना चाहिये। देखा जाए तो यह सही मायने में एक जन आंदोलन था। जिसमें अमीर, गरीब, ग्रामीण, शहरी का भेद भुलाकर लाखों की संख्या में आम हिंदुस्तानी शामिल हुये थे।
रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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