International Human Solidarity Day 2023: भारत ही दुनिया में मानव-एकता को बल देने में सक्षम
भारत की संस्कृति एवं दर्शन मानव एकता से प्रेरित रहा है, उसके अनुसार सामाजिक मूल्य-परिवर्तन और मानदंडों की प्रस्थापना से लोकचेतना में परिष्कार हो सकता है। इस दृष्टि से विश्व मानव एकता दिवस की उपयोगिता बढ़-चढ़ कर सामने आ रही है।
विविधता में एकता दर्शाने, मानवीय मूल्यों को बल देने, विभिन्न सरकारों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए समझौतों को याद दिलाने, लोगों के बीच एकजुटता के महत्व को बताने, सतत विकास के लिए लोगों, सरकारों को प्रेरित करने, गरीबी को मिटाने के नए रास्ते खोजने एवं लोगों को गरीबी, भुखमरी, बीमारियों से बाहर निकालने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानव एकता दिवस हर साल 20 दिसंबर को मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों के बीच मानवीय एकता के महत्व को बताने के लिए, गरीबी पर अंकुश लगाना और विकासशील देशों में मानव और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है। संयुक्त राष्ट्र ने 22 दिसंबर 2005 को यह दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस को विश्व एकजुटता कोष और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा बढ़ावा दिया जाता है, जो दुनियाभर में गरीबी उन्मूलन के लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने पर केंद्रित हैं। यह दिवस एक बेहतर दुनिया के निर्माण में साझा जिम्मेदारी की एक शक्तिशाली अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है। एकता, समानता और करुणा को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों के माध्यम से, यह दिन भविष्य के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में कार्य करता है जहां एकजुटता गरीबी उन्मूलन और वैश्विक कल्याण को बढ़ावा देने के पीछे प्रेरक शक्ति बन जाती है।
2023 की थीम है ‘परिवर्तन की वकालत’। इस दिवस को मनाते हुए हर व्यक्ति शिक्षा में योगदान देकर, गरीबों या शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम लोगों की मदद करके अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस दिवस के माध्यम से सरकारों को सतत विकास लक्ष्य के गरीबी और अन्य सामाजिक बाधाओं का जवाब देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसमें भारत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है, हाल ही में जी-20 देशों के समूह की अध्यक्षता का दायित्व भारत ने निभाते हुए ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के उद्घोष के साथ दुनिया को प्रभावी मानव एकता का सन्देश दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को सशक्त करने के साथ-साथ दुनिया को मानव एकता की दृष्टि से एक नया चिन्तन, नया आर्थिक धरातल, शांति एवं सह-जीवन की संभावनाओं को बलशाली बनाने का प्रेरक धरातल दे रहे हैं।
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संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, “संयुक्त राष्ट्र के निर्माण ने विश्व के लोगों और राष्ट्रों को एक साथ शांति, मानवाधिकारों और सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आकर्षित किया। संगठन की स्थापना अपने सदस्यों के बीच एकता और सद्भाव के मूल आधार पर की गई थी, जो सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा में व्यक्त की गई थी, जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए अपने सदस्यों की एकजुटता पर निर्भर करती है।” अंतरराष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस सतत विकास एवं समतामूलक विकास के एजेंडा पर आधारित है, जो अपने आप में गरीबी, भूख और बीमारी जैसे कई दुर्बल पहलुओं से लोगों को बाहर निकालने के लिए केंद्रित है। ‘मिलेनियम डिक्लेरेशन’ को ध्यान में रखते हुए, एकजुटता को 21वीं सदी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मूलभूत मूल्यों में से एक माना जाता है, जिसके तहत कम से कम लाभ उठाने वाले और सबसे अधिक मुश्किलों का सामना करने वाले लोग उन लोगों की मदद के योग्य होते हैं जिन्हें सबसे अधिक लाभ मिलता है।
गरीबी का कारण हिंसा, आतंक, अप्रामाणिकता, संग्रह, स्वार्थ, शोषण और क्रूरता आदि हैं इनके दंश मानवता को मूर्च्छित कर रहे हैं एवं मानव एकता की सबसे बड़ी बाधाएं हैं। इस मूर्च्छा को तोड़ने के लिए अहिंसा और सह-अस्तित्व का मूल्य बढ़ाना होगा तथा सहयोग एवं संवेदना की पृष्ठभूमि पर स्वस्थ समाज-संरचना की परिकल्पना को आकार देना होगा। दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता मानव एकता का आधार तत्व है। जब तक व्यक्ति अपने अस्तित्व की तरह दूसरे के अस्तित्व को अपनी सहमति नहीं देगा, तब तक वह उसके प्रति संवेदनशील नहीं बन पाएगा। जिस देश और संस्कृति में संवेदनशीलता का स्रोत सूख जाता है, वहाँ मानवीय रिश्तों में लिजलिजापन आने लगता है। अपने अंग-प्रत्यंग पर कहीं प्रहार होता है तो आत्मा आहत होती है। किंतु दूसरों के साथ ऐसी घटना घटित होने पर मन का एक कोना भी प्रभावित नहीं होता। यह संवेदनहीनता की निष्पत्ति है। इस संवेदनहीन मन की एक वजह सह-अस्तित्व का अभाव भी है। आज हम इतने संवेदनशून्य हो गये हैं कि औरों का दुःख-दर्द, अभाव, पीड़ा, औरों की आहें हमें कहीं भी पिघलाती नहीं।
आज समूची दुनिया में मानवीय एकता एवं चेतना के साथ खिलवाड़ करने वाली त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण परिस्थितियां सर्वत्र परिव्याप्त हैं-जिनमें आतंकवाद सबसे प्रमुख है। जातिवाद, अस्पृश्यता, सांप्रदायिकता, महंगाई, गरीबी, भीखमंगी, विलासिता, अमीरी, अनुशासनहीनता, पदलिप्सा, महत्वाकांक्षा, उत्पीड़न और चरित्रहीनता आदि अनेक परिस्थितियों से मानवता पीड़ित एवं प्रभावित है। उक्त समस्याएं किसी युग में अलग-अलग समय में प्रभावशाली रहीं होंगी, इस युग में इनका आक्रमण समग्रता से हो रहा है। आक्रमण जब समग्रता से होता है तो उसका समाधान भी समग्रता से ही खोजना पड़ता है। हिंसक परिस्थितियां जिस समय प्रबल हों, अहिंसा का मूल्य स्वयं बढ़ जाता है। महात्मा गांधी ने कहा है कि आपको मानवता में विश्वास खोना नहीं चाहिए। मानवता एक महासागर है। यदि महासागर की कुछ बूंदें गंदी हैं, तो भी महासागर गंदा नहीं होता है।’ ऐसे ही विश्वास को जागृत करने के लिये ही विश्व मानव एकता दिवस की आयोजना की गई है।
देश और दुनिया में निर्दोष लोगों की हत्याएं, हिंसक वारदातें, आतंकी हमले, अपहरण, जिन्दा जला देने की रक्तरंजित सूचनाएं, महिलाओं के साथ व्यभिचार-बलात्कार की वारदातें पढ़ते-देखते हैं पर मन इतना आदती बन गया कि यूं लगता है कि यह सब तो रोजमर्रा का काम है। न आंखों में आंसू छलकते हैं, न पीड़ित मानवता के साथ सहानुभूति जुड़ती है। न सहयोग की भावना जागती है और न नृशंस क्रूरता पर खून खौलता हैं। हमें सिर्फ स्वयं को बचाने की चिन्ता है। तभी औरों का शोषण करते हुए नहीं सकुचाते। हमें संवेदना को जगाना होगा। तभी जे.के. राउलिंग ने कहा भी है कि हमें दुनिया को बदलने के लिये जादू की आवश्यकता नहीं है। हम बस मानव की सेवा करके ऐसा आसानी से कर सकते हैं।’ इसी मानव-सेवा की मूल भावना मानव एकता दिवस का हार्द है।
भारत की संस्कृति एवं दर्शन मानव एकता से प्रेरित रहा है, उसके अनुसार सामाजिक मूल्य-परिवर्तन और मानदंडों की प्रस्थापना से लोकचेतना में परिष्कार हो सकता है। इस दृष्टि से विश्व मानव एकता दिवस की उपयोगिता बढ़-चढ़ कर सामने आ रही है। इसलिये ऑड्रे हेपबर्न ने कहा था कि जब तक दुनिया अस्तित्व में है, अन्याय और अत्याचार होते रहेंगे। जो लोग सक्षम और समर्थ हैं, उनकी जिम्मेदारी अधिक है कि वे लोग अपने से निर्बल लोगों को भी स्नेह दें। विश्व मानव एकता दिवस दुनिया भर में मानवीय जरूरतों पर ध्यान आकर्षित करने की मांग करता है और इन जरूरतों को पूरा करने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व की आवश्यकता को व्यक्त करता है। हर साल, आपदाओं एवं मानव-भूलों से लाखों लोगों विशेषतः दुनिया के सबसे गरीब, सबसे हाशिए पर आ गये लोग और कमजोर व्यक्तियों को अपार दुःख का सामना करना पड़ता है। मानवतावादी सहायताकर्मी इन आपदा प्रभावित समुदायों एवं लोगों को राष्ट्रीयता, सामाजिक समूह, धर्म, लिंग, जाति या किसी अन्य कारक के आधार पर भेदभाव के बिना जीवन बचाने में सहायता और दीर्घकालिक पुनर्वास प्रदान करने का प्रयास करते हैं। वे सभी संस्कृतियों, विचारधाराओं और पृष्ठभूमि को प्रतिबिंबित करते हैं और मानवतावाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से वे एकजुट हो जाते हैं। इस तरह की मानवतावादी सहायता मानवता, निष्पक्षता, तटस्थता और स्वतंत्रता सहित कई संस्थापक सिद्धांतों पर आधारित है। मार्टिन लूथर किंग ने इसकी उपयोगिता को उजागर करते हुए कहा कि यह प्यार और स्नेह है, जो हमारी दुनिया और हमारी सभ्यता को बचाएगा।’ आज अनुभव किया जा रहा है कि देश एवं दुनिया विकृतियों की शूली पर चढ़ा है। नैतिक मूल्यों के आधार पर ही मनुष्य उच्चता का अनुभव कर सकता है और मानवीय प्रकाश पा सकता है। मानव एकता का प्रकाश सार्वकालिक, सार्वदेशिक, और सार्वजनिक है। इस प्रकाश का जितनी व्यापकता से विस्तार होगा, मानव समाज का उतना ही भला होगा। इसके लिए तात्कालिक और बहुकालिक योजनाओं का निर्माण कर उनकी क्रियान्विति से प्रतिबद्ध रहना जरूरी है। यही विश्व मानव एकता दिवस मनाने को सार्थक बना सकता है।
- ललित गर्ग
लेखक, पत्रकार एवं स्तंभकार
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