Lockdown के 62वें दिन विदेशों में फँसे लोगों के लिए SOP जारी, घरेलू उड़ानें सुबह से होंगी शुरू
मध्य प्रदेश में रविवार को कोरोना वायरस संक्रमण के 294 नए मामले सामने आए और इस तरह प्रदेश में कोविड-19 से संक्रमितों का आंकड़ा 6,665 तक पहुंच गया। वहीं, राज्य में पिछले 24 घंटों में इस बीमारी से नौ और व्यक्तियों की मौत हुई है जिससे मरने वालों का आंकड़ा 290 तक पहुंच गया है।
सरकार ने कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन के कारण विदेश में फंसे भारतीयों की वापसी के लिए रविवार को मानक संचालन प्रोटोकॉल (एसओपी) जारी किया और कहा कि इस सेवा के लिए उन्हें भुगतान करना होगा और गर्भवती महिलाओं के साथ ही उन लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी, जो परेशानी में हों या जिनकी नौकरी छूट गई हो। ऐसा ही एसओपी सरकार ने उन लोगों के लिए भी जारी किया है जो भारत में फंसे हैं और विदेश यात्रा की इच्छा रखते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम एसओपी के मुताबिक जो लोग विदेश से भारत आना चाहते हैं उन्हें विदेश मंत्रालय द्वारा बताए गए आवश्यक विवरण के साथ उस देश में भारतीय मिशन में पंजीकरण कराना होगा। एसओपी में कहा गया कि प्राथमिकता बेहद परेशानी झेल रहे लोगों, प्रवासी कामगारों, मजदूरों जिनकी छंटनी कर दी गई हो, वीजा अवधि के समाप्त होने का सामना कर रहे अल्पकालिक वीजा धारकों, चिकित्सा आपातस्थिति का सामना कर रहे लोगों, गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों, जिन्हें परिवार के किसी सदस्य की मौत की वजह से भारत आना हो और छात्रों को दी जाएगी। इसमें कहा गया कि यात्रा का खर्च यात्री को खुद उठाना होगा। एसओपी में कहा गया कि विदेश से आने वाले सभी लोगों को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी पृथक-वास के दिशानिर्देश का पालन करना होगा।
योगी का पलटवार
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को महाराष्ट्र की शिवसेना-कांग्रेस सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि अपने खून पसीने से महाराष्ट्र को सींचने वाले कामगारों को महाराष्ट्र सरकार से सिर्फ छलावा ही मिला है और लॉकडाउन में उनके साथ धोखा हुआ है। मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकृत ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया, "अपने खून पसीने से महाराष्ट्र को सींचने वाले कामगारों को शिवसेना-कांग्रेस की सरकार से सिर्फ छलावा ही मिला। लॉकडाउन में उनसे धोखा किया गया। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया और घर जाने को मजबूर किया गया।" ट्वीट में कहा गया, "इस अमानवीय व्यवहार के लिए मानवता श्री उद्धव ठाकरे जी को कभी माफ नहीं करेगी।" योगी ने एक अन्य ट्वीट में कहा कि अपने घर पहुंच रहे सभी बहनों-भाइयों का प्रदेश में पूरा ख्याल रखा जाएगा। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि अपनी कर्मभूमि को छोड़ने के लिए मजबूर करने के बाद उनकी चिंता का नाटक मत कीजिए। सभी श्रमिक कामगार बंधु आश्वस्त हैं और अब उनकी जन्मभूमि उनका हमेशा ख्याल रखेगी। शिवसेना और कांग्रेश आश्वस्त रहें। योगी ने कहा, "श्री संजय राउत जी एक भूखा बच्चा ही अपनी मां को ढूंढ़ता है। यदि महाराष्ट्र सरकार ने सौतेली मां बनकर भी सहारा दिया होता तो महाराष्ट्र को गढ़ने वाले हमारे उत्तर प्रदेश के निवासियों को प्रदेश वापस न आना पड़ता।" मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी गैर मराठियों को लेकर शिवसेना नेता संजय राउत द्वारा लिखे गए एक कथित आपत्तिजनक लेख के बाद आई।
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सोमवार से फिर शुरू होंगी घरेलू यात्री उड़ानें
दो महीने के अंतराल के बाद घरेलू यात्री उड़ानें सोमवार से फिर शुरू होने जा रही हैं। लेकिन विभिन्न राज्यों के अपने-अपने नियम-शर्तें तय करने से असमंजस की स्थिति बन गयी है, क्योंकि यह आपस में विरोधाभासी हैं। कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने हवाई अड्डों को खोलने का विरोध किया है। ऐसे में विमानन कंपनियों और नागर विमानन अधिकारियों के लिए सेवाएं बहाल करना मुश्किल होता जा रहा है। यात्रियों की संख्या के हिसाब से उपरोक्त तीनों राज्य के हवाई अड्डे देश के व्यस्तम हवाई अड्डों में से एक हैं। महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने रविवार को ट्वीट किया कि रेड जोन इलाकों में हवाई अड्डों को फिर खोलना एक ‘बहुत गलत विचार है।’ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा कि वह केंद्र से कोलकाता और बागडोरा हवाईअड्डों को दोबारा शुरू करने का काम कुछ दिन टालने को कहेंगी। रविवार की दोपहर में एयरएशिया इंडिया ने ट्वीट किया कि सभी यात्री अपने गंतव्य राज्यों के स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी नियमों को पूरा पढ़ लें। वह किसी भी यात्री के पृथकवास (क्वारेंटाइन) या उससे जुड़े खर्चों के लिए जिम्मेदार नहीं होगी। ऐसे असमंजस और अनिश्चिताओं के बीच विभिन्न एयरलाइनों और राज्यों के प्रतिनिधियों ने नागर विमानन मंत्रालय के शीर्ष अधिकारयों के साथ रविवार को चर्चा की। बैठक के दौरान पायलटों और चालक दल के सदस्यों को पृथक रखने के नियम और मानक परिचालन प्रक्रियाओं को लेकर बातचीत हुई। अधिकारियों ने बताया कि सोमवार को पहली उड़ान मुंबई से पटना के लिए सुबह चार बजकर 20 मिनट पर है। जबकि दिल्ली से पहली उड़ान कोलकाता के लिए सवेरे साढ़े चार बजे है। दोनों उड़ानें इंडिगो की हैं। यदि पश्चिम बंगाल सरकार उड़ान परिचालन के लिए मंजूरी नहीं देती है तो कंपनी ने उसके लिए किसी वैकल्पिक समयसारिणी की व्यवस्था नहीं की है। विमान सेवाएं दोबारा चालू होने की तैयारियों के बारे में इंडिगो, विस्तार और स्पाइस जेट के कई पायलटों और सह-पायलटों (फर्स्ट ऑफिसर) से बात की गयी तो इनमें से अधिकतर की चिंता बाहर से आने वालों को पृथक रखे जाने के नियम, स्वयं एवं परिवार की सुरक्षा और कोविड-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में उनके उड़ान भरने को लेकर हैं। एक पायलट ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, ''इस बात को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है कि सोमवार को उन्हें उड़ान भरने के लिए अपने बेस स्टेशन पर रपट करना है या अपने गृह नगर से लौटकर बेस स्टेशन पर पहुंचने के बाद 14 दिन के लिए घर पर पृथक रहना है।’’ उन्होंने कहा कि उसकी तरह कई अन्य पायलट भी लॉकडाउन की वजह से अपने घरों को लौट गए थे। नागर विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने 20 मई को घरेलू यात्री उड़ाने 25 मई से सर्शत फिर चालू करने की घोषणा की थी। देश में करीब दो महीने बाद यात्री उड़ान सेवाएं शुरू होने जा रही है। कोविड-19 लॉकडाउन की वजह से देश में 25 मार्च से विमानन सेवाओं पर रोक थी। पिछले हफ्ते सरकार ने विशिष्ट नियमों के तहत उड़ाने शुरू करने की अनुमति दी है। इसमें उड़ान के लिए अधिकतम किराया, यात्रियों के लिए मास्क पहनने की अनिवार्यता, आरोग्य सेतु एप को डालने अनिवार्यता, यात्रा के दौरान खाने-पीने की चीजों के वितरण पर रोक और गंतव्य पर पहुंचकर 14 दिन पृथक रहने का स्वघोषणापत्र देना शामिल है। हालांकि कई राज्यों ने केंद्र सरकार के इस निर्णय पर गंभीर आपत्ति दर्ज करायी है। कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, बिहार, पंजाब, असम और आंध्र प्रदेश ने राज्यों के हवाई अड्डों पर आने वाले यात्रियों के लिए अपने-अपने पृथक रहने के नियम बनाए हैं। कुछ राज्यों का कहना है कि यात्रियों को अनिवार्य तौर पर प्रशासन की निगरानी में पृथक रखा जाए जबकि कुछ लोगों को घर पर पृथक रहना जरूरी करने के पक्ष में हैं। हालांकि पुरी ने शनिवार को राज्यों के इन नियमों पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि यदि कोई यात्री आरोग्य सेतु एप पर अपने आप के सही होने की रपट करता है तो इसका मतलब यात्री सुरक्षित है। राज्यों का रुख इस पर अड़ियल है और केंद्र सरकार पायलट और चालक दल के लिए एक समान पृथक रहने के नियम बनाने की कोशिश कर रही है। कंपनियों ने करीब 1,050 घरेलू उड़ानों के टिकटों की बुकिंग शुरू की है जिनका परिचालन सोमवार से शुरू होगा। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने शनिवार को कहा कि राज्य में आने वाले सभी यात्रियों को 14 दिन की प्रशासनिक निगरानी में पृथक रहना होगा। केरल और पंजाब सरकार ने कहा कि राज्य में आने वाले सभी यात्रियों को 14 दिन के लिए घरों पर पृथक रहना होगा। वहीं बिहार सरकार ने कहा है कि सभी यात्रियों को 14 दिन के लिए पृथक रहना होगा जिसका उन्हें भुगतान करना पड़ेगा। असम सरकार ने सभी चालक दल और पायलटों को 14 दिन पृथक रहने का नियम बनाया है। जबकि यात्रियों को वह घर और सरकारी पृथक केंद्रों पर बराबर-बराबर बांट देगी। कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट कहा है कि यदि कोई यात्री बुरी तरह कोविड-19 प्रभावित राज्य से यात्रा कर रहा है तो उसे सात दिन के लिए अनिवार्य तौर प्रशासनिक निगरानी में रखा जाएगा। बाद में उसका कोविड-19 परीक्षण नकारात्मक आने पर उसे बाकी सात दिन घर पर पृथक रहना होगा। कर्नाटक ने महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, तमिलनाडु, राजस्थान और मध्यप्रदेश को कोविड-19 से बुरी तरह प्रभावित राज्य के तौर पर वर्गीकृत किया है।
दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करें
दिल्ली सरकार ने रविवार को एक आदेश जारी कर अधिकारियों को कहा है कि वे घरेलू यात्रा पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करें। मुख्य सचिव विजय देव ने आदेश में कहा है कि दिल्ली सरकार का स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग इन दिशा-निर्देशों को लागू कराने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी कर सकता है। लॉकडाउन के कारण दो महीने के अंतराल पर घरेलू हवाई यात्रा सेवा सोमवार से शुरू हो रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रविवार को घरेलू यात्रा के लिए दिशा निर्देश जारी किए जिसमें यात्रियों को मोबाइल फोन में आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करने की सलाह दी गयी है। इसके अलावा राज्यों को हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर थर्मल जांच की व्यवस्था करनी होगी। दिल्ली सरकार ने अपने आदेश में संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन सुनिश्चित करें।
प्रतिबंध का निर्णय वापस लिया
उत्तर प्रदेश सरकार ने एल—2 और एल—3 कोविड अस्पतालों के पृथक-वास वार्ड में भर्ती मरीजों के मोबाइल फोन इस्तेमाल पर प्रतिबंध का फैसला वापस ले लिया है। अपर मुख्य सचिव (गृह एवं सूचना) अवनीश कुमार अवस्थी ने रविवार को बताया कि चिकित्सा शिक्षा विभाग ने पृथक-वास वार्ड में भर्ती रोगियों के लिए मोबाइल फोन की व्यवस्था से संबंधित आदेश जारी किया है। अवस्थी ने कहा, 'जो भी रोगी (पृथक-वास वार्ड में) जाएगा, उसे पहले बताना होगा कि उसका चार्जर और मोबाइल कहां है और मोबाइल नंबर क्या है। वार्ड में जाने से पहले उसका चार्जर और मोबाइल फोन संक्रमणमुक्त किया जाएगा ताकि संक्रमण कहीं और न फैले।' अवस्थी ने कहा, 'रोगी अपने चार्जर और मोबाइल को अपने पास ही रखेगा। किसी स्वास्थ्यकर्मी या अपने किसी साथी को नहीं देगा। रोगी जब भी वार्ड से बाहर आएगा, उसका चार्जर और मोबाइल फोन फिर से संक्रमणमुक्त किया जाएगा।' उन्होंने कहा कि रोगी के पास जो भी सामग्री होगी, उसे संक्रमणमुक्त करने के आदेश चिकित्सा शिक्षा विभाग ने जारी कर दिये हैं। उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते लागू लॉकडाउन के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने एल—2 और एल—3 कोविड अस्पतालों के पृथक-वास वार्ड में मरीजों के मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। महानिदेशक (चिकित्सा शिक्षा) डॉ. केके गुप्ता ने सभी चिकित्सा विश्वविद्यालयों, चिकित्सा संस्थानों और सभी सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों के प्रमुखों को आदेश जारी करते हुए कहा था कि मोबाइल से संक्रमण फैलता है। उन्होंने साथ ही निर्देश दिया था कि कोविड अस्पताल के प्रभारी को दो मोबाइल फोन उपलब्ध कराए जाएं, ताकि भर्ती मरीज अपने परिजनों से और परिजन अपने मरीज से बात कर सकें। इस पर सपा अध्यक्ष अखिलेश ने ट्वीट किया था, 'अगर मोबाइल से संक्रमण फैलता है तो पृथक-वास वार्ड के साथ पूरे देश में इसे प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए।' उन्होंने कहा, 'यही तो अकेले में मानसिक सहारा बनता है । वस्तुतः अस्पतालों की दुर्दशा का सच जनता तक न पहुँचे, इसीलिए यह पाबंदी है। ज़रूरत मोबाइल पर पाबंदी की नहीं, बल्कि संक्रमणमुक्ति की है।'
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फिल्में बनाना अलग और खर्चीला हुआ करेगा
निर्देशक राहुल ढोलकिया का कहना है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद फिल्मकार और निर्माताओं को फिल्मों के सेट को संक्रमण मुक्त करने और फिल्म निर्माण से जुड़े लोगों की सुरक्षा का ख्याल रखना होगा। दुनियाभर में दूसरे क्षेत्रों की तरह फिल्म उद्योग पर भी कोरोना वायरस महामारी का बुरा असर पड़ा है। कोविड-19 के प्रसार के चलते फिल्मों, थिएटर और धारावाहिकों का निर्माण बंद है। भारत में 24 मार्च को लॉकडाउन लागू होने से भी पहले से फिल्म जगत ने अधिकतर शूटिंग बंद कर दी थी। ढोलकिया को लगता है कि हर रोज पूरे सेट को संक्रमण मुक्त करना जरूरी होगा, जिससे फिल्म का बजट 30 से 40 प्रतिशत बढ़ सकता है। उन्होंने कहा, 'फिल्म बनाना अलग होगा। नियम-कायदों के चलते यह खर्चीला हुआ करेगा। हर रोज शुरुआत और अंत में सेट को संक्रमण मुक्त करना और सेट पर मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के शरीर का तापमान चेक करना होगा।' शाहरुख खान अभिनीत फिल्म 'रईस' के निर्देशक ढोलकिया ने कहा कि फिल्म उद्योग के लोगों को कुछ भी काम शुरू करने से पहले विस्तृत योजना बनानी होगी।
बीमारियों के पनपने की आशंका
लॉकडाउन के दौरान बच्चों में डिप्थीरिया, खसरा, टिटनेस और पोलियो जैसी बीमारियों के नियमित टीकाकरण प्रभावित होने से इस तरह की समस्याओं के फिर से सिर उठाने की आशंका को लेकर विशेषज्ञों ने गंभीर चिंता प्रकट की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में एक साल से कम उम्र के करीब आठ करोड़ बच्चों को डिप्थीरिया, खसरा और पोलियो जैसी बीमारियों का खतरा है क्योंकि कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन में उनका नियमित टीकाकरण नहीं हो सका। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार देश में हर महीने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत एक साल से कम उम्र के करीब 20-22 लाख बच्चों को टीके लगाने का लक्ष्य रखा जाता है जो साल के हिसाब से करीब 2.6 करोड़ बच्चों का हो जाता है। लॉकडाउन के पहले दो चरण में 40 दिन तक लोग परिवहन के साधन नहीं होने की वजह से टीकाकरण केंद्रों तक नहीं पहुंच सके वहीं अनेक राज्यों ने महामारी से निपटने में व्यस्त रहने की वजह से टीकाकरण शिविरों को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया। सूत्रों के अनुसार जब बंद की घोषणा की गयी थी तो उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों ने टीकाकरण कार्यक्रम रोक दिये और गांवों में इनके लिए आयोजित शिविर भी नहीं लगाये गये। वहीं ओडिशा, राजस्थान, केरल और दिल्ली ने भी कुछ दिन के लिए इस तरह के अभियानों को रोक दिया। देशभर में स्वास्थ्य देखभाल समन्वय की गतिविधियों से जुड़े राष्ट्रीय मंच ‘जन स्वास्थ्य अभियान’ की सदस्य छाया पचौली ने कहा, ‘‘कई राज्यों ने नियमित स्वास्थ्य देखभाल गतिविधियों को रोक दिया है जिनमें टीकाकरण भी शामिल है। संभव है कि इस अवरोध की वजह से 15 लाख से अधिक बच्चे पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से टीकाकरण से वंचित रह गये हों। राज्यों ने सेवाएं शुरू कर दी हैं, लेकिन बड़ी संख्या में लंबित मामले हैं।’’ हालांकि लॉकडाउन की अवधि में कितने बच्चे टीकाकरण से वंचित रह गये, इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। सरकारी सूत्रों के अनुसार बड़ी संख्या में बच्चे लॉकडाउन के शुरुआती चरण में टीकाकरण से वंचित रहे होंगे लेकिन सभी राज्यों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ बातचीत के बाद टीकाकरण कार्यक्रम पुन: शुरू कर दिया। एक आधिकारिक सूत्र ने कहा, ‘‘कई अन्य देशों ने लॉकडाउन की वजह से टीकाकरण पूरी तरह बंद कर दिया और टीकों की आपूर्ति नहीं हुई, वहीं भारत केंद्र सरकार के लगातार जोर देने की वजह से हालात से उबर पाया और उसने आपूर्ति श्रृंखला को भी क्रमिक तरीके से बनाकर रखा।’’ सूत्र ने कहा, ‘‘कोविड-19 प्रकोप के दौरान टीकाकरण को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिशानिर्देश जारी किये जाने के बाद राज्य न केवल अभियान को पुन: शुरू करने के लिए बल्कि लंबित मामलों पर भी ध्यान देने को तैयार हुए।’’ एनजीओ ‘जन स्वास्थ्य सहयोग’ के डॉ. योगेश जैन के अनुसार जिन बच्चों को टीके नहीं लग सके, उनकी संख्या 15 लाख से ज्यादा हो सकती है।
जनरल रावत ने पीएम-केयर्स कोष में 50,000 रुपए दिये
प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने एक साल तक हर महीने पीएम केयर्स कोष में 50 हजार रुपए दान करने का फैसला किया है। इसके तहत उन्होंने पहले महीने के लिये 50 हजार रुपये दान कर दिए हैं। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जनरल रावत पहले ही अप्रैल महीने के लिये दान कर चुके हैं और अगले साल मार्च तक हर महीने ऐसा करते रहेंगे। सेना के एक अधिकारी ने बताया, 'वह अपने मासिक वेतन का 20 प्रतिशत हिस्सा पीएम-केयर्स में दान करेंगे। वह कुल मिलाकर कुल छह लाख दान में देंगे।' देश के पहले प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल रावत ने मार्च में रक्षा मंत्रालय और तीनों सेनाओं द्वारा लिये गए फैसले के तहत प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपातकालीन स्थिति राहत कोष (पीएम-केयर्स) में एक दिन का वेतन दान दिया था।
वाहनों के प्रमाण-पत्रों की वैधता 31 जुलाई तक बढ़ाई
सरकार ने रविवार को कहा मोटर वाहन अधिनियमों के तहत विभिन्न दस्तावेजों और प्रमाण पत्रों की वैधता की तिथि 31 जुलाई तक बढ़ा दी गयी है। इस निर्णय के तहत एक फरवरी से नवीनीकरण में विलम्ब के लिए कोई अतिरिक्त शुल्क या विलम्ब शुल्क नहीं लिया जाएगा। एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार कोविड-19 के दौरान लोगों की सुविधा के उद्देश्य से सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने एक वैधानिक आदेश जारी किया है। विज्ञप्ति के अनुसार इस आदेश में कहा गया है कि इन दस्तावेजों के नवीकरण सहित किसी गतिविधि के लिए एक फरवरी या उसके बाद यदि शुल्क जमा भी कर दिया गया है और कोविड-19 महामारी की रोकथाम से उभरी स्थितियों की वजह से वह गतिविधि पूरी नहीं हो सकी है तो जमा शुल्क को अब भी वैध माना जाएगा। यदि शुल्क जमा करने में एक फरवरी 2020 से लॉकडाउन की अवधि तक विलंब हुआ है तो ऐसे विलंब के एवज में 31 जुलाई 2020 तक किसी भी तरह का अतिरिक्त या विलंब शुल्क नहीं लिया जाएगा। गृह मंत्रालय के 24 मार्च 2020 के दिशा-निर्देशों और उसके बाद कोविड-19 के प्रकोप की वजह से पूरी तरह लॉकडाउन लागू करने के संबंध में किए गए संशोधनों के आलोक में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 और केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम, 1989 से संबंधित दस्तावेजों की वैधता के विस्तार के संबंध में 30 मार्च 2020 को एक एडवाइजरी जारी की थी। इसमें प्रवर्तन अधिकारियों को यह सलाह दी गई थी कि जिन दस्तावेजों की वैधता में विस्तार नहीं दी जा सकी या लॉकडाउन की वजह से नहीं दी जा सकती है और जिनकी वैधता एक फरवरी 2020 को समाप्त हो गई या 30 जून 2020 तक समाप्त हो जाएगी, उन दस्तावेजों को 30 जून 2020 तक वैध माना जाए। सरकार की जानकारी में यह भी आया है कि देश में लॉकडाउन लागू होने और सरकारी परिवहन कार्यालयों (आरटीओ) के बंद रहने की वजह से केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम 1989 के नियम 32 और 81 में निर्दिष्ट विभिन्न शुल्कों और विलंब शुल्कों को लेकर लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसे देखते हुए मंत्रालय ने वाहनों के विभिन्न दस्तावेजों की वैधता की अवधि बढ़ाने का यह निर्णय किया है।
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अब तक 30 बच्चों ने जन्म लिया
कोरोना वायरस पर काबू के लिए लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से देश के विभिन्न राज्यों में फंसे प्रवासियों को उनके गृह प्रदेशों तक पहुंचाने के लिए एक मई से शुरू श्रमिक विशेष रेलगाड़ियों में अबतक 30 बच्चों का जन्म हुआ है। इससे तमाम परेशानियों का सामना कर घर लौट रहे प्रवासी कामगारों को कुछ खुशी के पल मिले हैं। चाहे 23 वर्षीय संगीता हो या 27 वर्षीय मधु। लॉकडाउन की वजह से वे दो महीने से फंसी थीं और गर्भावस्था में जरूरी सुविधाएं तो दूर अक्सर बिना खाना-पानी के भी रहना पड़ा और श्रमिक विशेष रेलगाड़ी में सवार होने के बाद उन्होंने राहत की सांस ली। इसी पल उनके अजन्मे बच्चों ने भी दुनिया में सुरक्षित कदम रखने का फैसला किया। पिछले सोमवार को नौ महीने के गर्भ के साथ संगीता बेंगलुरु से उत्तर प्रदेश स्थित अपने घर लौटने के लिए श्रमिक विशेष रेलगाड़ी में सवार हुई थी। यात्रा के दौरान उन्होंने रेलगाड़ी में ही सह-यात्रियों की मदद से बेटे को जन्म दिया। इसके ठीक बाद उन्हें दवाएं उपलब्ध कराई गईं और जब वह पहुंची तो चिकित्सकों की टीम पहले से वहां मौजूद थी। बेंगलुरु पुलिस ने दंपति द्वारा बच्चे की भेजी गई तस्वीर भी साझा की। गत शुक्रवार को 27 वर्षीय मधु कुमारी ने भी उत्तर प्रदेश स्थित घर लौटने के दौरान ही बच्चे को जन्म दिया। जब उन्हें प्रसव पीड़ा हुई तब रेलगाड़ी में सवार रेलवे कर्मचारियों ने इसकी सूचना रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) को दी। बच्चे का जन्म रेलगाड़ी के झांसी रेलवे स्टेशन पहुंचने से पहले ही हो गया। हालांकि, स्टेशन पर मधु को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई गई। रेलवे के प्रवक्ता आरडी बाजपेयी ने बताया, ''हमें इसका भान है कि हमारे कर्मचारी परिस्थिति के हिसाब से कार्य करते हैं और उन्होंने ऐसा किया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें गर्व है कि इन रेलगाड़ियों में पैदा होने वाले सभी बच्चे स्वस्थ्य हैं और उनकी मां भी ठीक हैं। हम इस बात से खुश हैं कि हम उनकी मदद कर सके।’’ हालांकि, इन विशेष रेलगाड़ियों में बच्चे के जन्म की पहली घटना आठ मई को हुई जब गुजरात से अकेले बिहार जा रही ममता यादव ने बच्चे को जन्म दिया। अधिकारियों ने बताया कि रेलगाड़ी जामनगर से रात आठ बजे रवाना हुई और 35 वर्षीय ममता को मध्य रात्रि में प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। डिब्बे के उस कूपे के यात्री बाहर चले गए और उस जगह को प्रसव कक्ष में तब्दील कर दिया गया। उन्होंने बताया, ‘‘चिकित्सकों और रेलवे कर्मचारियों ने ममता की मदद की और उन्होंने स्वस्थ्य बेटी को जन्म दिया। उन्हीं यात्रियों में से किसी ने तुरंत बच्ची का नाम ‘कोरोना कुमारी’ रख दिया।’’ बाजपेयी ने कहा, ‘‘चिकित्सा आपातस्थिति से निपटने के लिए हमारे पास एक प्रणाली है।’’ रेलवे के प्रवक्ता ने कहा कि जब भी यात्रियों को मदद की जरूरत होती है तब रेलगाड़ी में सवार कर्मचारी स्टेशन को इसकी सूचना देते हैं और वहां के रेलवे कॉलोनी में रहने वाले चिकित्सक यात्री की मदद के लिए तत्काल स्टेशन पर पहुंच जाते हैं। इसी प्रकार 13 मई को पिंकी यादव ने अहमदाबाद-फैजाबाद श्रमिक विशेष रेलगाड़ी में आरपीएफ कर्मियों की मदद से बेटे को जन्म दिया। उन्हें उत्तर प्रदेश के कानपुर रेलवे स्टेशन पर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई गई लेकिन आगे के इलाज के लिए जिला अस्पताल रेफर करने की जरूरत पड़ी। रेलवे के मुताबिक 23 वर्षीय ईश्वरी देवी ने हबीबगंज-बिलासपुर श्रमिक विशेष रेलगाड़ी में गत रविवार को कर्मचारियों और महिला यात्रियों की मदद से बेटे को जन्म दिया। रेलवे ने ईश्वरी को न केवल जरूरी दवाएं मुहैया कराई बल्कि इलाज की जरूरत होने पर छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराने की भी व्यवस्था की। रेलवे ने अब तक करीब 2,800 श्रमिक विशेष रेलगाड़ियों का परिचालन किया है और इनमें बच्चों के जन्म से रोजमर्रा के तनाव से कुछ सुकून के पल मिले हैं। चूंकि इन बच्चों का जन्म अंजान लोगों के बीच हुआ। इसलिए पहली बार रोने की उनकी आवाज रेलगाड़ी पर सवार कई लोगों ने सुनी। रविवार को उत्तर प्रदेश आने वाली विशेष रेलगाड़ी में जन्म लेने वाली एक बच्ची का नाम ‘ लॉकडाउन यादव’ रखा गया है।
गुजरात में कोरोना मामले 14,000 के पार
गुजरात में रविवार को कोरोना वायरस के 394 नये मामले सामने आने के साथ ही संक्रमितों की संख्या बढ़कर 14,063 हो गई है। वहीं 29 और लोगों की मौत होने से मृतकों की संख्या बढ़कर 858 तक पहुंच गई है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने यह जानकारी दी। अधिकारियों ने बताया कि रविवार को कोविड-19 से जान गंवाने वाले 29 मरीजों में से 21 अन्य गंभीर बीमारियों से भी ग्रस्त थे। विभाग ने बताया कि 243 मरीजों को अस्पतालों से छुट्टी दे दी गई जिससे स्वस्थ हुए मरीजों की संख्या 6,169 हो गई है। गुजरात में 6,793 लोगों का इलाज चल रहा है। इनमें से 67 की हालत बहद गंभीर है।
तमिलनाडु में कोविड-19 से आठ मौतें
तमिलनाडु में रविवार को कोविड-19 की वजह से आठ लोगों की मौत हो गई, जिससे राज्य में मृतकों की संख्या 111 हो गई, जबकि संक्रमण के 765 नए मामले सामने आने के बाद राज्य में संक्रमण के कुल मामले 16,000 से अधिक हो गए। स्वास्थ्य विभाग ने यह जानकारी दी। विभाग ने बताया कि 833 लोगों को ठीक होने के बाद विभिन्न अस्पतालों से छुट्टी दे दी गई जिससे अब तक राज्य में संक्रमण से ठीक हुए लोगों की संख्या 8,324 तक पहुंच गई। महानगर चेन्नई संक्रमण से सबसे बुरी तरह प्रभावित रहा, यहां संक्रमण के 587 और मामले सामने आए, जिससे यहां संक्रमितों की संख्या 10,000 को पार कर गयी। चेन्नई में संक्रमितों की कुल संख्या अब 10,576 हो गई है, जबकि राज्य में संक्रमण के कुल मामले 16,277 हो गए हैं। बुलेटिन में कहा गया है कि नए मामलों में 47 ऐसे लोग हैं जो विभिन्न स्थानों से राज्य लौटे हैं।
60 घंटे में पहुंची श्रमिक स्पेशल ट्रेन
महाराष्ट्र के वसई रोड रेलवे स्टेशन से गोरखपुर के लिए चली श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सवार 1,399 यात्रियों को यह सफर ताउम्र याद रहेगा क्योंकि 25 घंटे में गंतव्य तक पहुंचाने वाली ट्रेन ने गोरखपुर पहुंचने में 60 घंटे का समय लिया। वसई रोड स्टेशन से बृहस्पतिवार को चली श्रमिक स्पेशल ट्रेन जैसे ही गोरखपुर के प्लेटफार्म नंबर-नौ पर पहुंची, यात्रियों ने राहत की सांस ली। दरअसल, हुआ यह कि से शुक्रवार को यह ट्रेन ओडिशा के राउरकेला की तरफ मोड़ दी गई जिसकी वजह से 25 घंटे का सफर 60 घंटे की अघोषित प्रताड़ना बन गया। ट्रेन से आए सिद्धार्थनगर के विजय कुमार ने कहा कि वह पूरे जीवन इस यात्रा को नहीं भूल पाएंगे। ट्रेन लगातार गलत दिशा में ही भटकती रही। पहले झारखंड पहुंची, फिर बिहार, पश्चिम बंगाल और फिर ओडिशा पहुंच गई। गोरखपुर के अखिलेश ने बताया कि पूरी यात्रा अजीबो-गरीब ढंग से हो गई। जब ट्रेन के गार्ड से पूछा गया कि ट्रेन कहां जा रही है तो उनका जवाब था, ‘‘मुझे नहीं पता। हम सिर्फ सिग्नल का पालन कर रहे हैं।’’ राउरकेला के स्टेशन प्रबंधक अभय मिश्रा ने बताया के विभिन्न मार्गों पर दबाव है क्योंकि बड़ी संख्या में श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चल रही हैं।
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पटरियों पर दबाव बढ़ा
उत्तर प्रदेश और बिहार के लिये प्रवासी स्पेशल ट्रेनों की मांग बढ़ने से रेलवे को श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को निर्धारित समय के अनुसार चलाने में संघर्ष करना पड़ रहा है, जिसके चलते उनके मार्ग में बदलाव करना पड़ रहा है। साथ ही, इन ट्रेनों में यात्रा कर रहे श्रमिकों से भी शिकायतें मिल रही हैं। रेलवे ने एक मई से 2,810 से अधिक श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं, जिसके जरिये 37 लाख से अधिक यात्रियों को ले जाया गया। उनमें से 80 प्रतिशत यात्री उत्तर प्रदेश और बिहार गये। इन राज्यों के लिये ज्यादातर ट्रेनें चलाये जाने के चलते पटरियों पर दबाव बढ़ गया। इनमें से 1,301 ट्रेनें उत्तर प्रदेश के लिये थी, जबकि 973 ट्रेनें बिहार के लिये चलाई गई। रेलवे ने एक बयान में कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश में ज्यादातर गंतव्य लखनऊ-गोरखपुर सेक्टर के आसपास के थे। बिहार में, गंतव्य पटना के आसपास के थे। शनिवार को 565 ट्रेनों ने अपनी यात्रा शुरू की, जबकि 266 ट्रेनें बिहार के लिये और 172 ट्रेनें उत्तर प्रदेश के लिये रवाना हुई।’’ बयान में कहा गया है, ‘‘इन गंतव्यों के लिये ट्रेनों की संख्या अत्यधिक बढ़ने के चलते वहां जाने वाले रेल मार्गों पर भीड़भाड़ बढ़ गई। साथ ही, स्टेशनों पर स्वास्थ्य एवं सामाजिक दूरी के विभिन्न नियमों के चलते यात्रियों के ट्रेनों से उतरने में लगने वाला वक्त भी बढ़ा, जिसके चलते टर्मिनल पर भीड़ बढ़ी और इससे पटरियों पर दबाव और अधिक बढ़ गया।’’ उत्तर प्रदेश के बरेली जाने वाली एक प्रवासी स्पेशल ट्रेन के बिहार के मुजफ्फरपुर पहुंच जाने की खबरों के बाद यह बयान आया है। मुंबई से 21 मई को एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन, जो गोरखपुर के लिये रवाना हुई थी और उसे 25 घंटे में गंतव्य पहुंच जाना था लेकिन वह ओडिशा के राउरकेला पहुंच गई और फिर उसे वहां से अपने मूल गंतव्य स्टेशन के लिये रवाना करना पड़ा। इसमें ट्रेन को काफी लंबा वक्त लगा और उसे कई राज्यों से गुजरना पड़ा। अधिकारियों ने बताया कि इन मार्गों पर ट्रेनों की इतनी भीड़ है कि उन पर ट्रेनें चलाने में दिक्कत हो रही है और गोरखपुर-गोंडा-लखनऊ जैसे मार्ग पूरी तरह से ट्रेनों से भर गये हैं। रेलवे ने कहा कि पटरियों पर दबाव घटाने के लिये कुछ ट्रेनों को मथुरा, झारसुगुडा के रास्ते भेजा गया है। मार्ग को तर्कसंगत बनाने का भी आदेश दिया गया है ताकि उन पर भीड-भाड़ कम की जा सके। रेलवे बोर्ड के स्तर पर, जोनल रेलवे स्तर पर और डिविजनल स्तर पर चौबीसों घंटे निगरानी की जा रही है, ताकि ट्रेनें देर ना हों। रेलवे ने कहा कि ट्रेन का परिचालन करने वाले कर्मचारी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जा रहा है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनें अपने निर्धारित समय से चले। इन कोशिशों से पटरियों पर दबाव काफी कम हुआ और ट्रेनों का आवागमन बहुत बेहतर हुआ है। रेल नेटवर्क में भीड़भाड़ बढ़ने से ट्रेनों के विलंब होने पर भोजन वितरण कार्यक्रम भी प्रभावित हो रहा है। इसके चलते हजारों यात्री भूखे-प्यासे रह जाते हैं। प्रवासी यात्रियों को परोसे जाने वाले भोजन को लेकर कई रेलवे स्टेशनों से यात्रियों के प्रदर्शन करने की भी खबरें हैं। इस बीच, रेलवे ने कहा कि उसने एक मई से 2,818 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से लगभग 37 लाख प्रवासी श्रमिकों को उनके राज्यों में गंतव्य तक पहुंचाया है। आधिकारिक आंकड़ों से यह जानकारी मिली है। रेलवे ने कहा कि 565 ट्रेनें अभी रास्ते में हैं, जबकि 2,253 ट्रेनें अपने-अपने गंतव्य तक पहुंच गई हैं। श्रमिक स्पेशल ट्रेन मुख्य रूप से राज्यों के अनुरोध पर चलाई जा रही है। रेलवे के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक सर्वाधिक 1,301 ट्रेनें उत्तर प्रदेश के लिये चलाई गई। वहीं, बिहार के लिए 973, झारखंड के लिए 144 और मध्य प्रदेश के लिये 166 ट्रेनें चलाई गईं। गुजरात से सर्वाधिक 808 ट्रेनें चलाई गईं, वहीं महाराष्ट्र से 517 और पंजाब से 308 ट्रेनें विभिन्न राज्यों के लिये चलाई गईं। रेलवे ने प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्य पहुंचाने के लिये एक मई को प्रवासी स्पेशल ट्रेनें शुरू की थी। रेलवे ने पिछले चार दिनों में प्रतिदिन औसतन 260 ट्रेनें चलाई और करीब तीन लाख यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाया।
मुंबई से सोमवार से शुरू होंगी 25 उड़ानें
मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से सोमवार (25 मई) से 25 दैनिक उड़ानों की शुरुआत होगी। महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नवाब मलिक ने रविवार को इसकी जानकारी दी। कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिये देश भर में 24 मार्च से लॉकडाउन लागू है। पूरे देश में तब से ही वाणिज्यिक उड़ानों पर रोक है। करीब दो महीने के बाद सोमवार से भारत में घरेलू उड़ानों की शुरुआत होने वाली है। दिलचस्प बात यह है कि राकांपा नेता मलिक के इस बयान से पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि उन्होंने मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर परिचालन फिर से शुरू करने के लिये नागरिक उड्डयन मंत्रालय से और समय मांगा है। इससे पहले दिन में राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने महामारी के जारी प्रकोप के बीच उड़ानें शुरू करने को एक ‘बहुत बुरा सुझाव’ बताया था। मलिक ने समाचार चैनलों से कहा, "मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा सोमवार से दैनिक आधार पर 25 उड़ानों का संचालन करेगा। उड़ानों की संख्या में लगातार वृद्धि होगी।"
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खुदरा कारोबार का नुकसान
कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने रविवार को कहा कि देश में कोरोना वायरस की रोकथाम के सिलसिले में लागू पाबंदियों के चलते पिछले 60 दिन में खुदरा कारोबारियों को 9 लाख करोड़ रुपये के कारोबार का नुकसान हुआ है। कारोबार पर पाबंदी में ढील के बाद के पहले सप्ताह का विश्लेषण करते हुए संगठन ने रविवार को एक बयान में कहा कि घरेलू व्यापार इस समय अपने सबसे खराब समय का सामना कर रहा है क्योंकि पिछले सोमवार जब से लॉक डाउन में ढील देने के बाद से देश भर में दुकानें खुली हैं उनमें केवल 5 प्रतिशत व्यापार ही हुआ है और केवल 8 प्रतिशत कर्मचारी ही दुकानों पर आये हैं। कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बयान में कहा, '60 दिनों के राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान घरेलू व्यापार में लगभग 9 लाख करोड़ रुपये का कारोबार नहीं हुआ। केंद्र एवं राज्य सरकारों को 1.5 लाख करोड़ के जीएसटी राजस्व का नुकसान हुआ है।’’ कैट का कहना है कि देश भर के व्यापारियों को बड़े वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है और सरकार की ओर से कोई नीतिगत समर्थन के अभाव में व्यापारी अपने व्यवसाय के भविष्य को लेकर सबसे अधिक चिंतित हैं। खुदरा व्यापार में काम कर रहे लगभग 80 प्रतिशत कर्मचारी अपने मूल गांवों में चले गए जबकि लगभग 20 प्रतिशत कर्मचारी जो स्थानीय निवासी हैं, वो भी आपिस काम पर लौटने में ज्यादा इच्छुक नहीं है। कोरोना से डर के कारण लोग खरीदारी के लिए बाज़ारों में नहीं आ रहे हैं। बयान में कहा गया है कि देश का खुदरा व्यापार क्षेत्र लगभग 7 करोड़ व्यापारियों द्वारा संचालित होता है जो 40 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है। इस क्षेत्र में लगभग 50 लाख करोड़ रुपये का सालाना कारोबार होता है।
-नीरज कुमार दुबे
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