कारगिल में हिंदुस्तानी फौज की पहली जीत का श्रय कैप्टन विजयंत थापर को जाता है!
अपने बचपन में, वह अक्सर बंदूक के साथ खेलते थे और अपने पिता की चोटी की टोपी पहने और एक अधिकारी की तरह अपने बेंत को पकड़े हुए मार्च करते थे। उन्होंने अपने सपने का पीछा किया और आईएमए देहरादून में चयनित होने के लिए कड़ी मेहनत की।
कैप्टन विजयंत थापर कारगिल के जांबाज हीरो में से एक हैं। 22 साल के विजयंत ने अपनी जिंदगी का हर पल जिया और जब वक्त आया तो देश के लिए अपनी जान देने में पीछे नहीं हटे। विजयंत एक सैनिक परिवार से आते थे। कैप्टन विजयंत थापर का जन्म 26 दिसंबर 1976 को एक सैन्य परिवार में कर्नल वी एन थापर और श्रीमती तृप्ता थापर के घर हुआ था। सेना परिवार में रहने के बाद कैप्टन थापर हमेशा अपने पिता के नक्शेकदम पर चलना चाहते थे। अपने बचपन में, वह अक्सर बंदूक के साथ खेलते थे और अपने पिता की चोटी की टोपी पहने और एक अधिकारी की तरह अपने बेंत को पकड़े हुए मार्च करते थे। उन्होंने अपने सपने का पीछा किया और आईएमए देहरादून में चयनित होने के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने अपने प्रशिक्षण में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया और 12 दिसंबर 1998 को 2 राजपुताना राइफल्स में शामिल हुए।
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जब कारगिल का युद्ध हो रहा था उससे पहले विजयंत की यूनिट जो कुपवाड़ा में आतंक विरोधी अभियान चला रही थी। यूनिट को जंग के ऐलान के बाद घुसपैठियों को भगाने तोलोलिंग की ओर द्रास भेजा गया। विजयंत की यूनिट को नोल एंड लोन हिल पर ‘थ्री पिम्पल्स’ पर भेजा गया यहां के पूरे एरिया में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा कर रखा था।
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विजयंत की टीम को पाकिस्तानियों को खदेड़ने की ज़िम्मेदारी मिली। विजयंत ने ये जिम्मेदारी स्वीकार की और अपनी यूनिट के साथ आगे बढ़े। विजयंत की यूनिट ने रात के समय चढ़ाई शुरू की और दुश्मन के बंकर के पास जा पहुंचे। दोनों ओर से जबरदस्त फायरिंग हुई लेकिन विजयंत आगे बढ़े और आखिर में विजयंत की यूनिट नें 13 जून 1999 को तोलोलिंग जीता, वो कारगिल में हिंदुस्तानी फौज की पहली जीत थी। ये महत्वपूर्ण जीत करगिल की जंग के दौरान भारत के हक में एक निर्णायक लड़ाई साबित हुई थी। इस जीत में विजयंत शहीद हो गये। विजयंत थापर को कैप्टन की रैंक उनके मरणोपरांत दी गई। कैप्टन विजयंत थापर को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
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