भारतीय सेना के अपराजेय योद्धा थे बिपिन रावत
बिपिन रावत ने 1978 में सेना की 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन से अपने सैन्य कैरियर की शुरूआत की थी और उसके बाद से उनका पूरा कैरियर उपलब्धियों से भरा रहा। 2011 में उन्होंने चौ. चरण सिंह यूनिवर्सिटी से मिलिट्री मीडिया स्टडीज में पीएचडी की डिग्री हासिल की थी।
तमिलनाडु के नीलगिरी जिले के कुन्नूर में भारतीय वायुसेना का एमआई-17वी5 हेलीकॉप्टर क्रैश हो जाने के दर्दनाक हादसे से न केवल भारतीय सेना के तीनों अंग बल्कि समूचा देश गहरे सदमे में है। वायुसेना द्वारा इस दुर्घटना के कारण जानने के लिए जांच का आदेश दे दिया गया है। दरअसल इस हादसे में हेलीकॉप्टर में सवार सीडीएस बिपिन रावत और उनकी पत्नी के अतिरिक्त 11 लोगों की मौत ने हर किसी को स्तब्ध कर दिया है। हादसे का शिकार हुए हेलीकॉप्टर को विंग कमांडर पृथ्वी सिंह उड़ा रहे थे। हेलीकॉप्टर सुलुर के आर्मी बेस से निकलने के बाद जनरल रावत को लेकर वेलिंगटन सैन्य ठिकाने की ओर बढ़ रहा था और सुलूर से करीब 94 किलोमीटर दूर हेलीकॉप्टर अचानक हादसे का शिकार हो गया। किसी भी वीवीआईपी दौरे में इसी हेलीकॉप्टर का उपयोग किया जाता है। हादसे के शिकार हुए हेलीकॉप्टर की तुलना चिनूक हेलीकॉप्टर से की जाती थी, जो डबल इंजन हेलीकॉप्टर था, जिससे इसके एक इंजन में कोई खराबी आने पर दूसरे इंजन के सहारे सुरक्षित लैंडिंग कराई जा सके।
इसे भी पढ़ें: कठिन परिस्थितियों से लड़ने वाले जांबाज योद्धा थे 'सीडीएस जनरल बिपिन रावत'
एमआई-17वी5 हेलीकॉप्टर को भारतीय वायुसेना के सबसे सुरक्षित हेलीकॉप्टरों में से एक माना जाता है, इसलिए इसका इस प्रकार क्रैश होना बड़े सवाल करता है। दरअसल यह दुनिया के सबसे उन्नत परिवहन हेलीकॉप्टरों में से एक है, जिसे ट्रूप तथा आर्म्स ट्रांसपोर्ट, फायर सपोर्ट, काफिले एस्कॉर्ट, पैट्रोल और सर्च-एंड-रेस्क्यू मिशनों में भी तैनात किया जा सकता है। इसका अधिकतम टेकऑफ वजन 13 हजार किलोग्राम है और यह 36 सशस्त्र सैनिकों सहित आंतरिक रूप से 4500 किलोग्राम भार ले जा सकता है। यह हेलीकॉप्टर उष्णकटिबंधीय और समुद्री जलवायु के साथ-साथ रेगिस्तानी परिस्थितियों में भी उड़ान भरने की क्षमता रखता है। इसका केबिन काफी बड़ा है, जिसमें पोर्टसाइड दरवाजा है, जो पीछे की तरफ रैंप सैनिकों और कार्गो के आसानी के प्रवेश और निकास की अनुमति देता है। हेलीकॉप्टर एक विस्तारित स्टारबोर्ड स्लाइडिंग डोर, रैपलिंग और पैराशूट उपकरण, सर्चलाइट, एफएलआईआर सिस्टम जैसे कई आधुनिक प्रणालियों से सुसज्जित है।
रक्षा मंत्रालय ने दिसम्बर 2008 में 80 एमआई-17 हेलीकॉप्टरों के लिए रूस के साथ 1.3 अरब डॉलर का सौदा किया था, जिनकी आपूर्ति भारतीय वायुसेना को 2011 में शुरू हुई थी और रूस द्वारा भारत को 2016 में आखिरी हेलीकॉप्टर सौंपा गया था। कई आधुनिक तकनीकों के साथ निर्मित इस हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल सेना के कई महत्वपूर्ण अभियानों में हुआ है। 2008 के मुम्बई आतंकी हमले के दौरान कमांडो ऑपरेशन में भी इसका इस्तेमाल हुआ था, जब इसी हेलीकॉप्टर के जरिये कोलाबा में एनएसजी कमांडो को आतंकियों के खिलाफ उतारा गया था। 2016 में जम्मू-कश्मीर में सीमा पर पाकिस्तानी लांच पैड को तबाह करने के लिए भी एमआई-17वी5 का इस्तेमाल हुआ था। वैसे विगत पांच वर्षों में अब तक कुल छह बार ये हेलीकॉप्टर दुर्घटना के शिकार हो चुके हैं।
अरुणाचल प्रदेश के तवांग के पास 6 मई 2017 को एक एमआई-17 हेलीकॉप्टर उड़ान भरने के दौरान हादसे का शिकार हो गया था, जिसमें पांच जवानों के अलावा दो अन्य लोगों की मौत हो गई थी। उसके बाद उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में 3 अप्रैल 2018 को गुप्तकाशी से पुनर्निर्माण सामग्री लेकर आ रहा एम-आई-17 हेलीकॉप्टर हेलीपैड से मात्र 60 मीटर पहले ही हादसे का शिकार हो गया था, जिसमें सभी बाल-बाल बच गए थे। जम्मू-कश्मीर के बडगाम जिले में 27 फरवरी 2019 को वायुसेना का एमआई-17 लापरवाही के चलते अपनी ही मिसाइल का शिकार होकर क्रैश हो गया था, जिसमें वायुसेना के छह अधिकारियों सहित एक आम नागरिक की मौत हुई थी। केदारनाथ से गुप्तकाशी जाने के लिए उड़ान भरते समय 23 सितम्बर 2019 को भी एमआई-17 हो गया था और उस हादसे में पायलट सहित सभी छह लोग सुरक्षित बच गए थे। 18 नवम्बर 2021 को एमआई-17 हेलीकॉप्टर अरुणाचल प्रदेश में लैंडिंग के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस हादसे में भी पांचों क्रू सदस्य सुरक्षित बच गए थे लेकिन 8 दिसम्बर को हुए एमआई-17 हादसे में सीडीएस बिपिन रावत सहित बाकी लोग इतने खुशनसीब नहीं थे।
हेलीकॉप्टर में सवार सीडीएस जनरल रावत अपनी पत्नी और कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों व कर्मियों के साथ वेलिंग्टन में ‘डिफेंस सर्विसेज कॉलेज’ जा रहे थे, जहां वे थल सेनाध्यक्ष एमएम नरवणे के साथ बाद में एक कार्यक्रम में भाग लेने वाले थे। सीडीएस बिपिन रावत का असामयिक निधन न केवल सैन्य बलों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने सीडीएस बनने के बाद सेना के तीनों अंगों के आधुनिकीकरण के लिए कई बड़े कदम उठाए थे। भारतीय सेना में उनकी चार दशक लंबी सेवा सदैव असाधारण बहादुरी से भरी रही और सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए वे हमेशा दो टूक लहजे में दुश्मन को चेताते रहते थे। दुश्मन देश की नापाक हरकतों पर उसे कड़े लहजे में चेतावनी देते हुए एक बार उन्होंने कहा था कि पहली गोली हमारी नहीं होगी लेकिन उसके बाद हम गोलियों की गिनती नहीं करेंगे। 16 मार्च 1958 को पौड़ी गढ़वाल के एक गांव में जन्मे बिपिन रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी सैन्य अधिकारी थे, जो 1988 में लेफ्टिनेंट जनरल पद से रिटायर हुए थे।
इसे भी पढ़ें: आखिरी सांस तक देश की सेवा में लगे रहे जांबाज जनरल बिपिन रावत
बिपिन रावत ने 1978 में सेना की 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन से अपने सैन्य कैरियर की शुरूआत की थी और उसके बाद से उनका पूरा कैरियर उपलब्धियों से भरा रहा। 2011 में उन्होंने चौ. चरण सिंह यूनिवर्सिटी से मिलिट्री मीडिया स्टडीज में पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। उन्हें उत्तम युद्ध सेवा मैडल, अति विशिष्ट सेवा मैडल, युद्ध सेवा मैडल, सेना मैडल, विदेश सेवा मैडल इत्यादि कई पदक मिले थे। उन्होंने 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए करगिल युद्ध में हिस्सा लिया था। इसके अलावा उन्होंने कांगो में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन का नेतृत्व भी किया था और उस दौरान उन्होंने एक बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड का भी नेतृत्व किया था। 1 सितम्बर 2016 को उन्हें उप-सेना प्रमुख बनाया गया और 31 दिसम्बर 2016 को उन्होंने भारतीय सेना की कमान संभाली थी। उन्होंने सैन्य सेवाओं के दौरान एलओसी, चीन बॉर्डर तथा नॉर्थ-ईस्ट में लंबा समय गुजारा। पूर्वी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा, कश्मीर घाटी तथा पूर्वाेत्तर सहित अशांत क्षेत्रों में काम करने का उनका लंबा और शानदार अनुभव था। 2016 में उरी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद बिपिन रावत के नेतृत्व में 29 सितम्बर 2016 को पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविरों को ध्वस्त करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी। उन्हें ऊंचाई पर जंग लड़ने (हाई माउंटेन वॉरफेयर) तथा काउंटर-इंसर्जेंसी ऑपरेशन अर्थात् जवाबी कार्रवाई के विशेषज्ञ के तौर पर जाना जाता था। सेना प्रमुख पद से रिटायरमेंट से एक दिन पहले ही 30 दिसम्बर 2019 को सरकार द्वारा उन्हें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बनाने की घोषणा की गई थी और 1 जनवरी 2020 को वे भारत के पहले सीडीएस बने थे।
बतौर सीडीएस जनरल रावत पर तीनों सेनाओं में स्वदेशी साजो-सामान का उपयोग बढ़ाने का दायित्व था और वे सेना के तीनों अंगों के ऑपरेशन, प्रशिक्षण, ट्रांसपोर्ट, सपोर्ट सर्विसेस, संचार, रखरखाव, रसद पूर्ति तथा संयंत्रों में टूट-फूट संबंधी कार्य भी देख रहे थे। सीडीएस के रूप में उनकी नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए तीनों सेनाओं में तालमेल को बढ़ाना था। दरअसल आज दुनियाभर में सेनाओं में अत्याधुनिक तकनीकों के समावेश के चलते युद्धों के स्वरूप और तैयारियों में लगातार बड़ा बदलाव देखा जा रहा है, ऐसे में देश की सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए बेहद जरूरी था कि तीनों सेनाओं की पूरी शक्ति एकीकृत होकर कार्य करे क्योंकि तीनों सेनाएं अलग-अलग सोच से कार्य नहीं कर सकती। दुश्मन के हमलों को नाकाम करने के लिए सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल होना बेहद जरूरी है। सेना के लिए रणनीति विकसित करने के अलावा सैन्य अधिकारियों और जवानों के बीच विश्वास बनाए रखना भी सीडीएस बिपिन रावत का महत्वपूर्ण दायित्व था और अपने सैन्य अनुभवों के आधार पर इन सभी दायित्वों को बखूबी निभाते हुए वे पहले सीडीएस के रूप में रक्षा सुधारों सहित सशस्त्र बलों से संबंधित विविध पहलुओं पर काम कर रहे थे। सीडीएस रहते सशस्त्र बलों और सुरक्षा तंत्र के आधुनिकीकरण में उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।
- योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं)
अन्य न्यूज़