एक ऐसा नगर जहां खजाने से धन निकाला नहीं जाता था
पुरातन काल में कर्नाटक के विजयनगर में राजाओं का विशेष खजाना स्वर्ण मुद्राओं से भरा रहता था। खजाने में हमेशा धन जमा किया जाता था। वहां से धन कभी निकाला नहीं जाता था।
अगर आप पर्यटन के साथ ही ऐतिहासिक स्थलों को देखने में भी रुचि रखते हैं तो कर्नाटक के विजयनगर आइए। दक्षिण रेलवे के होसपेट रेलवे स्टेशन से 12 किलोमीटर की दूरी पर विजयनगर नामक गांव है। यह गांव मध्य युग में एक विशाल हिंदू साम्राज्य की राजधानी था। इस साम्राज्य के अंतर्गत दक्षिण भारत का अधिकांश भाग था। इसके अधीन साठ बंदरगाह थे। उनसे विभिन्न देशों को काफी आयात−निर्यात होता था। मसालों और सूती वस्त्रों के व्यापार पर विजयनगर का एकाधिकार था।
यहां के राजाओं का विशेष खजाना स्वर्ण मुद्राओं से भरा रहता था। खजाने में हमेशा धन जमा किया जाता था। वहां से धन कभी निकाला नहीं जाता था। इस राज्य ने 250 वर्षों तक दक्षिण भारत के चार मुसलमानी राज्यों- अहमदनगर, गोलकुंडा, बीदर और बीजापुर को आगे नहीं बढ़ने दिया। इन राजाओं के शासकों ने कई बार विजयनगर पर हमला किया, लेकिन उन्हें सदैव मुंह की खानी पड़ी। यही नहीं विजयनगर ने उनकी मिलीजुली सेनाओं या अलग−अलग सेनाओं को हमेशा जबरदस्त शिकस्त दी।
अंत में चारों मुस्लिम शासित राज्यों ने विजयनगर के विरुद्ध एक महागठबंधन बनाया। उन्होंने आपसी विवाह संबंधों से गठबंधन को मजबूत बनाया। फिर उन्होंने एक विशाल सेना के साथ इस्लाम की पुर्नस्थापना के लिए विजयनगर पर आक्रमण किया। दोनों सेनाओं के बीच राक्षसी और तांगड़ी गांवों के मैदान में 23 जनवरी 155 के दिन निर्णायक युद्ध हुआ। विजयनगर के 90 वर्षीय सेनापति आलिया राम राय पकड़े गए और कत्ल कर दिए गए।
तीसरे दिन विजयी सेनाओं ने विजयनगर में प्रवेश किया। उन्होंने उसे पांच महीनों तक लूटा−खसोटा, उसमें आग लगाई, निदर्यता के साथ राजप्रासादों, सरकारी इमारतों, निजी घरों और मंदिरों की कुल्हाड़ियों, हथौड़ों और संबल से तोड़ा। गुप्त धन निकालने के लिए अधिकांश घरों के फर्श खोद दिए गए। भूवैज्ञानिक न्यू बोल्ड को 1845 में 120 वर्ग मील क्षेत्र में विजयनगर साम्राज्य की राजधानी विजयनगर के अवशेष मिले। इस समय भी 60 वर्गमील क्षेत्र में राजधानी और उसके उपनगरों के अवशेष दिखाई देते हैं। इनमें से 25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है।
नगर में अब केवल एक मंदिर की पूजा होती है। इसे विरूपाक्ष मंदिर या परम्पति मंदिर कहते हैं। यह मंदिर बड़े सुंदर, प्राकृतिक परिवेश में स्थित है। हेमकूट पर्वत से इसका अत्यंत सुंदर, विहंगम दृश्य नजर आता है।
यहां देखने लायक बहुत कुछ है लेकिन वह इतने बड़े क्षेत्र में फैला है कि उसे एक या दो दिन में नहीं देखा जा सकता। इसे देखने और समझने के लिए पांच−छह दिन चाहिए। यहां के दर्शनीय स्थलों में हजार राम मंदिर भी प्रमुख है। यह विजयनगर के नरेशों का निजी मंदिर था। इसकी दीवारों और स्तंभों पर रामायण की कथा अंकित की गई है। दूसरा मनोहारी मंदिर विट्ठल मंदिर है। विजयनगर शैली में बना यह मंदिर दर्शनीय है।
प्रीटी
अन्य न्यूज़