तोक्यो ओलंपिक में हारने के बाद भी हो रही वाहवाही! जानिए तलवारबाज भवानी देवी के बारे में
टोक्यो ओलंपिक में तलवारबाजी में भवानी देवी ने क्वालीफाई कर लिया है और इसके साथ ही वह तलवारबाजी में टोक्यो ओलंपकि में भारत का नेतृत्व करने वाली पहली भारतीय बन गई हैं|
ओलंपिक के महाकुंभ का आगाज हो चुका है। भारतीय खिलाड़ी लगातार अपने नाम मेडल दर्ज कर रहे हैं और देश का गौरव बढ़ा रहे हैं। अब इसी कड़ी में एक और बड़ी खबर सामने आ रही है। दरअसल, टोक्यो ओलंपिक में तलवारबाजी में भवानी देवी ने क्वालीफाई कर लिया है और इसके साथ ही वह तलवारबाजी में टोक्यो ओलंपकि में भारत का नेतृत्व करने वाली पहली भारतीय बन गई हैं।
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भवानी देवी के लिए यह मुकाम हासिल करना इतना आसान नहीं था। अनगिनत कठिनाईओ को पार करते हुए भवानी देवी ने अपना नाम इतिहास के पन्नों में लिख दिया है और देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। आपको बता दें कि तलवारबाज़ी उन 10 खेलों में से हैं जो आधुनिक इतिहास के पहले ओलंपिक खेल का हिस्सा थे। 1896 से लेकर 2016 तक, इस खेल में ओलंपिक स्तर तक कभी कोई भारतीय नहीं पहुंच सका था, लेकिन भवानी देवी ने ओलिंपिक खेल में जगह बनाते हुए पूरे भारत का नाम रोशन कर दिया|
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आठ बार की नेशनल चैंपियन भवानी देवी कामनवेल्थ चैंपियनशिप टीम इवेंट में एक सिल्वर और एक कांस्य पदक जीत चुकी है जबकि इसी चैंपियनशिप के व्यक्तिगत इवेंट में उन्होंने कांस्य पदक अपने नाम किया। इसके साथ ही भवानी देवी 2010 में हुए एशियाई चैंपियनशिप में अपने नाम एक कांस्य पदक कर चुकी है।
इस मुकाम तक पहुंचने के लिए भवानी देवी को कई ठोकरे लगी लेकिन तमाम मुसीबतों का इन पहाड़ों का सामने भवानी देवी ढाल बनकर खड़ी रही और सारी परेशानियों को पीछे छोड़कर बस आगे बढ़ती रहीं। भवानी देवी के करियर की शुरुआत में ही उन्हें केवल तीन मिनट की देरी के कारण उनके पहले ही इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन से ब्लैक कार्ड दे दिया गया था।
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उसके बाद साल 2016 में रियो ओलिंपिक में भी वह अपनी जगह नहीं बना पायी। लेकिन भवानी देवी के इरादे कहा डगमगाने वाले नहीं थे। उन्होंने अपने घर से हज़ारो किलोमीटर दूर अपनी ट्रेनिंग को यूरोप में जारी रखा। भवानी देवी के तलवारबाजी के करियर को जारी रखने के लिए उनकी मां ने भी खूब कड़ी मेहनत की और बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए उन्होंने अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे। 2019 में भवानी के सर से उनके पिता का साया भी उठ गया। इन सब संवेदनाओ के बीच भी भवानी देवी ने खुद को कठोर बनाये रखा।
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