गौतम गंभीर ने कभी नहीं मानी हार, WC के फाइनल में खेली थी ताबड़तोड़ पारी
कभी हार नहीं मानने का जज्बा जिसने लोगों का ध्यान खींचा, प्रतिबद्धता जिसकी सभी ने प्रशंसा की और बेबाक टिप्पणियां जिस पर लोगों ने आंखे तरेरी, कुछ इसी तरह से रहा गौतम गंभीर का भारतीय क्रिकेट में 15 साल का करियर जिसमें उन्होंने कई उपलब्धियां भी हासिल की।
नयी दिल्ली। कभी हार नहीं मानने का जज्बा जिसने लोगों का ध्यान खींचा, प्रतिबद्धता जिसकी सभी ने प्रशंसा की और बेबाक टिप्पणियां जिस पर लोगों ने आंखे तरेरी, कुछ इसी तरह से रहा गौतम गंभीर का भारतीय क्रिकेट में 15 साल का करियर जिसमें उन्होंने कई उपलब्धियां भी हासिल की। उनके शानदार क्रिकेट करियर का अंत तो तभी हो गया था जब उन्हें इस साल के शुरू में आईपीएल में छह मैचों में असफलता के बाद हटने के लिये मजबूर किया गया और मंगलवार को आधिकारिक तौर पर उन्होंने हमेशा के लिये इस खेल को अलविदा कह दिया।
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— Delhi Capitals (@DelhiCapitals) December 4, 2018
लेकिन भारतीय क्रिकेट के दिग्गजों के बीच वह अपनी विशेष छाप छोड़कर गये हैं। उनके पास भले ही सुनील गावस्कर जैसी शानदार तकनीक नहीं थी और ना ही उनके पास वीरेंद्र सहवाग जैसी विलक्षण प्रतिभा थी। इसके बावजूद भारतीय टीम का 2008 से लेकर 2011 तक के सफर को नयी दिल्ली के राजिंदर नगर में रहने वाले बायें हाथ के इस बल्लेबाज के बिना पूरा नहीं हो सकता है। अपनी सीमित प्रतिभा के बावजूद वह सहवाग का अविश्वसनीय सलामी जोड़ीदार रहा और 2009 का आईसीसी का वर्ष का सर्वश्रेष्ठ टेस्ट बल्लेबाज उनकी विशिष्ट उपलब्धि थी।
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वह विश्व कप के दो फाइनल (2007 में विश्व टी20 और 2011 में वनडे विश्व कप) में सर्वोच्च स्कोरर रहे। न्यूजीलैंड के खिलाफ नेपियर में 13 घंटे क्रीज पर बिताने के बाद खेली गयी 136 रन की पारी टेस्ट क्रिकेट में हमेशा याद रखी जाएगी। क्रीज पर पांव जमाये रखने के लिये जरूरी धैर्य और कभी हार नहीं मानने का जज्बा दो ऐसी विशेषताएं जिनके दम पर गंभीर शीर्ष स्तर पर बने रहे। यहां तक कि 2003 से 2007 के बीच का भारतीय क्रिकेट भी गंभीर के बिना पूरा नहीं माना जाएगा। इस बीच वह टीम से अंदर बाहर होते रहे।
Gautam Gambhir has announced his retirement from all forms of cricket.
— ICC (@ICC) December 4, 2018
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उन्होंने जब 2007-08 में मजबूत वापसी की तो इसके बाद सहवाग के साथ भारत की टेस्ट मैचों में सबसे सफल जोड़ी बनायी लेकिन 2011 विश्व कप के बाद उनका करियर ढलान पर चला गया तथा इंग्लैंड दौरे ने रही सही कसर पूरी कर दी। आईपीएल में हालांकि उन्होंने अपनी नेतृत्वक्षमता का शानदार परिचय दिया। कोलकाता नाइटराइडर्स ने उनकी अगुवाई में ही दो खिताब जीते। वह भारत के भी कप्तान बनना चाहते थे। उन्होंने इच्छा भी जतायी लेकिन तब महेंद्र सिंह धोनी एक कप्तान के रूप में सफल चल रहे थे।
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गंभीर राजनीतिक टिप्पणियां करने से भी बाज नहीं आते थे। सोशल मीडिया पर उनकी टिप्पणियां काफी सुर्खियों में रहती थी। गंभीर की दूसरी पारी भी घटनाप्रधान रहने की संभावना है चाहे वह बीसीसीआई के बोर्ड रूम में हो या जनता के प्रतिनिधि के रूप में। उन्हें किसी का भय नहीं और वह हमेशा अपने दिल की बात कहने वाला इंसान के रूप में जाने जाते हैं।
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