तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुँचे थे भगवान महावीर

Lord Mahavir had reached the truth on the strength of sadhana
ललित गर्ग । Mar 28 2018 12:38PM

भगवान महावीर ने जीवन भर अनगिनत संघर्षों को झेला, कष्टों को सहा, दुख में से सुख खोजा और गहन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुंचे, इसलिये वे हमारे लिए आदर्शों की ऊंची मीनार बन गये।

सदियों पहले महावीर जनमे। वे जन्म से महावीर नहीं थे। उन्होंने जीवन भर अनगिनत संघर्षों को झेला, कष्टों को सहा, दुख में से सुख खोजा और गहन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुंचे, इसलिये वे हमारे लिए आदर्शों की ऊंची मीनार बन गये। उन्होंने समझ दी कि महानता कभी भौतिक पदार्थों, सुख-सुविधाओं, संकीर्ण सोच एवं स्वार्थी मनोवृत्ति से नहीं प्राप्त की जा सकती उसके लिए सच्चाई को बटोरना होता है, नैतिकता के पथ पर चलना होता है और अहिंसा की जीवन शैली अपनानी होती है। महावीर जयन्ती मनाने हुए हम केवल महावीर को पूजे ही नहीं, बल्कि उनके आदर्शों को जीने के लिये संकल्पित हों।

भगवान महावीर की मूल शिक्षा है- ‘अहिंसा’। सबसे पहले ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का प्रयोग हिन्दुओं का ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के पावन ग्रंथ ‘महाभारत’ के अनुशासन पर्व में किया गया था। लेकिन इसको अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलवायी भगवान महावीर ने। भगवान महावीर ने अपनी वाणी से और अपने स्वयं के जीवन से इसे वह प्रतिष्ठा दिलाई कि अहिंसा के साथ भगवान महावीर का नाम ऐसा जुड़ गया कि दोनों को अलग कर ही नहीं सकते। अहिंसा का सीधा-साधा अर्थ करें तो वह होगा कि व्यावहारिक जीवन में हम किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं, किसी प्राणी को अपने स्वार्थ के लिए दुःख न दें। ‘आत्मानः प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत्’’ इस भावना के अनुसार दूसरे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करें जैसा कि हम उनसे अपने लिए अपेक्षा करते हैं। इतना ही नहीं सभी जीव-जन्तुओं के प्रति अर्थात् पूरे प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा की भावना रखकर किसी प्राणी की अपने स्वार्थ व जीभ के स्वाद आदि के लिए हत्या न तो करें और न ही करवाएं और हत्या से उत्पन्न वस्तुओं का भी उपभोग नहीं करें।

एक बार महावीर और उनका शिष्य गोशालक एक घने जंगल में विचरण कर रहे थे। जैसे ही दोनों एक पौधे के पास से गुजर रहे थे। शिष्य से दुश्मन बन चुके गोशालक ने महावीर से कहा, यह पौधा देखिए, क्या सोचते हैं आप, इसमें फूल लगेंगे या नहीं लगेंगे? महावीर आंख बंद करके उस पौधे के पास खड़े हो गए, और कुछ देर बाद आंखें खोलते हुए उन्होंने कहा, फूल लगेंगे।

गोशालक ने महावीर का कहा सत्य न हो, इसलिये तत्काल पौधे को उखाड़ कर फेंक दिया, और जोर-जोर से हंसने लगा। महावीर उसे देखकर मुस्कराए। सात दिन बाद दोनों उसी रास्ते से लौट रहे थे। जैसे ही दोनों उस जगह पहुंचे, जहां गोशालक ने पौधा उखाड़ा था, उन्होंने देखा कि वह पौधा खड़ा है। इस बीच तेज वर्षा हुई थी, उसकी जड़ों को वापस जमीन ने पकड़ लिया, इसलिए वह पौधा खड़ा हो गया था।

महावीर फिर आंख बंद करके उसके पास खड़े हो गए। पौधे को खड़ा देखकर गोशालक बहुत परेशान हुआ। गोशालक की उस पौधे को दोबारा उखाड़ फेंकने की हिम्मत न पड़ी। महावीर हंसते हुए आगे बढ़े। गोशालक ने इस बार हंसी का कारण जानने के लिए उनसे पूछा, आपने क्या देखा कि मैं फिर उसे उखाड़ फेंकूगा या नहीं? तब महावीर ने कहा, यह सोचना व्यर्थ है। अनिवार्य यह है कि यह पौधा अभी जीना चाहता है, इसमें जीने की ऊर्जा है, और जिजीविषा है। तुम इसे दूबारा उखाड़ फेंक सकते हो या नहीं-यह तुम पर निर्भर है। लेकिन पौधा जीना चाहता है, यह महत्वपूर्ण है। तुम पौधे से कमजोर सिद्ध हुए और हार गए। और जीवन हमेशा ही जीतता है। जीवन में आने वाली मुश्किलों का सामना करने के लिए जरूरी है, आशावादी रहना।

महावीर का संपूर्ण जीवन स्व और पर के अभ्युदय की जीवंत प्रेरणा है। लाखों-लाखों लोगों को उन्होंने अपने आलोक से आलोकित किया है। उनके मन में संपूर्ण प्राणिमात्र के प्रति सहअस्तित्व की भावना थी। 

आज मनुष्य जिन समस्याओं से और जिन जटिल परिस्थितियों से घिरा हुआ है उन सबका समाधान महावीर के दर्शन और सिद्धांतों में समाहित है। जरूरी है कि हम महावीर ने जो उपदेश दिये उन्हें जीवन और आचरण में उतारें। हर व्यक्ति महावीर बनने की तैयारी करे, तभी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। महावीर वही व्यक्ति बन सकता है जो लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित हो, जिसमें कष्टों को सहने की क्षमता हो। जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी समता एवं संतुलन स्थापित रख सके, जो मौन की साधना और शरीर को तपाने के लिए तत्पर हो। जो पुरुषार्थ के द्वारा न केवल अपना भाग्य बदलना जानता हो, बल्कि संपूर्ण मानवता के उज्ज्वल भविष्य की मनोकामना रखता हो।

भगवान महावीर का संपूर्ण जीवन तप और ध्यान की पराकाष्ठा है इसलिए वह स्वतः प्रेरणादायी है। उनके उपदेश जीवनस्पर्शी हैं जिनमें जीवन की समस्याओं का समाधान निहित है। वे चिन्मय दीपक हैं, जो अज्ञान रूपी अंधकार को हरता है। वे सचमुच प्रकाश के तेजस्वी पुंज और सार्वभौम धर्म के प्रणेता हैं। वे इस सृष्टि के मानव-मन के दुःख-विमोचक हैं। पदार्थ के अभाव से उत्पन्न दुःख को सद्भाव से मिटाया जा सकता है, श्रम से मिटाया जा सकता है किंतु पदार्थ की आसक्ति से उत्पन्न दुख को कैसे मिटाया जाए? इसके लिए महावीर के दर्शन की अत्यंत उपादेयता है।

-ललित गर्ग

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