चुनावी राज्यों में चुनाव आयोग ने किया बेहतरीन काम, 2021 वाली गलती नहीं दोहराई
पांच राज्यों में प्रचार के तरीकों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि चुनाव ऐलान के पहले सभी राजनीतिक दल दावा कर रहे थे कि वह विकास की बात करेंगे। हालांकि जैसे ही तारीखों का ऐलान हुआ। सभी ने मुख्य मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश की।
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है। देश-विदेश की मीडिया की निगाहें भी रूस और यूक्रेन पर टिकी हुई है। हालांकि देश में पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए हैं जिसके नतीजे 10 मार्च को आने हैं। उत्तर प्रदेश में सोमवार को हुए मतदान के साथ ही पांचों राज्यों में वोटिंग खत्म हो चुकी है। अब नतीजों का इंतजार है। हमने चाय पर समीक्षा कार्यक्रम में भी चुनावी घटनाक्रमों पर ही चर्चा की। इस कार्यक्रम में मौजूद रहे प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे जी। हमारा पहला सवाल तो यही था कि पश्चिम से लेकर पूरब तक नीरज दुबे ने उत्तर प्रदेश का दौरा किया। किस तरह का माहौल रहा और 10 मार्च को स्थिति कैसी दिखेगी। हालांकि नीरज दुबे ने इसी कड़ी में इस बात की भी जानकारी दे दी कि इस बार प्रभासाक्षी भी अपना एग्जिट पोल लेकर आएगा। नीरज दुबे ने शुरुआत में ही 5 राज्यों में प्रचार के तरीकों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि चुनाव ऐलान के पहले सभी राजनीतिक दल दावा कर रहे थे कि वह विकास की बात करेंगे। हालांकि जैसे ही तारीखों का ऐलान हुआ। सभी ने मुख्य मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश की।
इसे भी पढ़ें: यूक्रेन से भारतीयों की सफल निकासी का विधानसभा चुनावों में सकारात्मक असर होगा: शाह
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस बार का जो चुनाव प्रचार हुआ उसमें निजी आक्षेप बहुत हुए। उन्होंने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश के बात करें तो यहां भले ही कांग्रेस, बसपा और ओवैसी की पार्टी है। लेकिन मुकाबला समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों में मुकाबला दो तरफा दिखाई दे रहा है पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच लड़ाई है जबकि मणिपुर में कांग्रेस और भाजपा के बीच है। गोवा में भी कई दलों ने ताल ठोका जरूर है लेकिन मुख्य मुकाबला वहां भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही दिखाई दे रहा है। उत्तराखंड में भी दोतरफा मुकाबले की बात कहते हुए उन्होंने कहा कि यहां भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने है। नीरज दुबे ने कहा कि जब लड़ाई दो तरफा होती है तो वोटों का मार्जिन बेहद कम हो जाता है। इसीलिए हर राजनीतिक दलों की कोशिश होती है कि निजी आक्षेप जरूर करें ताकि हमें हर हालत में जीत मिले। भले ही वह 10 वोटों से या 20 वोटों से मिले। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से निजी आक्षेप लगाए जा रहे हैं वह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है और जिस तरीके से यह सिलसिला चल रहा है वह आगे भी जारी रह सकता है।
इसके साथ ही इस बार के चुनाव को लेकर नीरज दुबे ने चुनाव आयोग की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के इस महाअभियान में जो लोग भी काम कर रहे हैं उनकी सराहना करनी होगी। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में जिस तरीके से कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन कराया गया वह काबिले तारीफ है। हमने देखा था कि किस तरीके से पश्चिम बंगाल और असम के चुनाव में कोविड-19 गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ाई गई थी और कोरोनावायरस फैला था जिसके बाद मद्रास हाई कोर्ट से भी चुनाव आयोग को फटकार मिली थी। उन्होंने कहा कि उस समय जो गलतियां चुनाव आयोग की ओर से की गई थी वह गलतियां दोहराई नहीं गई है। उन्होंने कहा कि शुरू में हमने देखा कि किस तरीके से चुनाव आयोग की ओर से कई तरह की पाबंदियां लगाई गई थी। नेता ना तो रोड शो कर सकते थे और ना रैली कर सकते थे। नेताओं ने डोर टू डोर कैंपेन किया। जिन लोगों ने नियम तोरे उनके खिलाफ एक्शन भी हुए।
नीरज दुबे ने कहा कि चुनाव आयोग भी स्वास्थ्य सचिव से लगातार कोरोना की स्थिति को लेकर चर्चा कर रहा था और साथ ही साथ जो भी चुनाव में काम कर रहे हैं उन्हें फ्रंटलाइन वर्कर माना गया और बूस्टर डोज लगवाया गया जो कि बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमने देखा है जिस तरीके से चुनाव आयोग ने काम किया है कहीं ना कहीं यह बेहद सफल साबित हुआ। पांच राज्यों में कहीं भी कोरोना नहीं फैला। चुनाव की बात करते हुए नीरज दुबे ने कहा कि पांचों राज्यों में जो वोटिंग का रुझान देखने को मिला उससे यह प्रतीत होता नजर नहीं आ रहा है कि जनता बहुत ज्यादा बदलाव के मूड में है। उन्होंने कहा कि जो 2017 में वोटिंग प्रतिशत थे वही इस बार भी देखने को मिल रहे हैं। उन्होंने खास करके उत्तर प्रदेश का जिक्र किया। नीरज दुबे ने उन लोगों पर भी तंज कसा जो वोटिंग वाले दिन वोट डालने की बजाय छुट्टी मनाना पसंद करते हैं। इसको लेकर नीरज दुबे ने कहा कि इसके लिए मैं जिम्मेदार नेताओं को ही मानता हूं। उनके द्वारा कुछ ऐसे काम होते हैं जो कि लोगों को पसंद नहीं आते और यही कारण है कि उनकी रूचि राजनीति से कम होती जाती है। उन्होंने कहा कि मतदान में सभी को रुचि दिखाना चाहिए भले ही आप जाओ और नोटा पर बटन दबाकर आओ। उन्होंने कहा कि समाज के जिम्मेदार नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वे मतदान करें। उन्होंने कहा कि यह अपने आप में ऐसा पहला चुनाव था जहां माहौल बिल्कुल अलग था। उत्तर प्रदेश या बिहार में जब चुनाव होते हैं तो माहौल कुछ अलग होता है लेकिन इस बार यहां डिजिटल रैली हो रही थी। नेता मतदाताओं के व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ना चाहते थे। जूम के जरिए मीटिंग करने की कोशिश कर रहे थे। इसके अलावा फेसबुक यूट्यूब के जरिए भी प्रचार की कोशिश की गई।
हालांकि सवालों के सिलसिला को आगे बढ़ाते हुए हमने नीरज दुबे से सीधा सवाल किया कि 10 मार्च के बाद देश की राजनीति किस ओर जाएगी। खास करके तब जब कुछ दिन बाद ही राष्ट्रपति चुनाव भी आ रहे हैं। इसके जवाब में सबसे पहले तो नीरज दुबे ने यह कहा कि जहां तक राष्ट्रपति चुनाव का सवाल है तो जिन लोगों के नाम चर्चा में आ रहे हैं उनके लिए किसी झटके से कम नहीं है। क्योंकि माना जाता है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के केंद्रीय नेतृत्व में आने के बाद से जिन लोगों के नाम मीडिया की सुर्खियों में रहते हैं उन पर शायद ही ध्यान दिया जाता रहा हो। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में तीन चीजें हो सकती हैं। अगर बीजेपी ज्यादा बड़े अंतर से जीत कर आती है तो 2024 में उसके लिए आसानी हो जाएगी। अगर बीजेपी की सीटों में कमी आती है तो यह बात कही जा सकती है कि नकारात्मक माहौल के बावजूद भी सरकार बनाने में कामयाबी हुई। इसके साथ ही अगर अखिलेश यादव डेढ़ सौ सीट लेकर आते हैं तो कहीं ना कहीं एक और क्षेत्रीय क्षत्रप खड़े हो जाएंगे जो बीजेपी से मुकाबला करेगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर मान लीजिए कि बीजेपी की सरकार नहीं बनती है तो कहीं ना कहीं भाजपा के लिए बड़ा झटका होगा। 2024 के चुनाव को लेकर भाजपा जो तैयारी कर रही होगी उस पर ब्रेक लगेगा। साथ ही साथ कई ऐसी योजनाएं हैं जो 2023 या 24 में शुरू होने हैं उन में देरी होगी। इनमें राम मंदिर भी शामिल है।
इसे भी पढ़ें: गरीबों की थाली को खाली करने का पाप करती हैं सपा, बसपा और कांग्रेस: जेपी नड्डा
नीरज दुबे ने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा हारती है तो अखिलेश यादव भी एक नए मोर्चे के गठन में जुट सकते हैं। जिस तरह से हम देखते हैं कि ममता बनर्जी मुंबई जाती हैं, उधर एम के स्टालिन अलग ग्रुप बना रहे हैं। साथ ही साथ केसीआर भी लगातार कई नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। ऐसा ही कुछ लखनऊ में भी होने लगेगा या फिर दिल्ली में होने लगेगा। हालांकि चुनौतियां कांग्रेस के लिए भी बहुत ज्यादा है। अगर मणिपुर में, गोवा में या पंजाब में उसकी सरकार नहीं बनती है तो जी-23 जो ग्रुप है वह एक बार फिर से हावी हो सकता है। वह गांधी परिवार से सवाल पूछ सकता है जो कि कांग्रेस के लिए सहज स्थिति नहीं होगी।
- अंकित सिंह
अन्य न्यूज़