आणविक पृथक्करण में उपयोगी मेम्ब्रेन बनाने के लिए नई पद्धति
विभिन्न पदार्थों को अलग करने और शुद्धिकरण के लिए झिल्ली पृथक्करण (Membrane Separation) तकनीक का उद्योग जगत में खासा प्रचलन है। इसके लिए आमतौर पर छिद्रयुक्त सामग्री से झिल्ली बनायी जाती है।
भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर), भोपाल के शोधकर्ताओं ने आणविक पृथक्करण के लिए छिद्रयुक्त झिल्ली (Membrane) बनाने के लिए एक अभिनव प्रक्रिया विकसित की है। इस प्रक्रिया से पानी से सूक्ष्म जैविक प्रदूषकों को हटाने में सक्षम स्वतंत्र क्रिस्टलीय नैनो छिद्रयुक्त जैविक झिल्ली तैयार की जा सकती है।
आईआईएसईआर, भोपाल के शोधकर्ता डॉ अभिजीत पात्रा के नेतृत्व में यह अध्ययन शोध छात्र अर्कप्रभा गिरी, जी. श्रीराज और तापस कुमार दत्ता द्वारा किया गया है। यह अध्ययन शोध पत्रिका एन्जवेन्डे केमी में प्रकाशित किया गया है।
विभिन्न पदार्थों को अलग करने और शुद्धिकरण के लिए झिल्ली पृथक्करण (Membrane Separation) तकनीक का उद्योग जगत में खासा प्रचलन है। इसके लिए आमतौर पर छिद्रयुक्त सामग्री से झिल्ली बनायी जाती है। इन झिल्लियों की क्षमता एवं उपयोगिता के निर्धारण में इनके छिद्रों का आकार महत्वपूर्ण होता है। इसीलिए, वैज्ञानिक वर्षों से विभिन्न प्रकार की छिद्रयुक्त सामग्रियों पर शोध करते रहे हैं।
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हाल ही में, सहसंयोजी जैविक संरचना (सीओएफ) झिल्ली के माध्यम से पृथक्करण की प्रभावी संभावना उभरकर आयी है। सीओएफ द्विआयामी या त्रिआयामी क्रिस्टलीय छिद्रयुक्त आर्गेनिक पॉलीमर हैं, जो अन्य छिद्रयुक्त सामग्री की तुलना में कहीं अधिक उपयोगी हैं, क्योंकि उनकी संरचना और कार्यक्षमता की सटीक रूपरेखा सुनिश्चित की जा सकती है। भार में हल्की और बेहतर ताप-स्थिरता वाली सामग्री के कारण ये हमेशा छिद्रयुक्त बने रहते हैं। इसीलिए सीओएफ, झिल्ली के माध्यम से पृथक्करण के लिए उत्कृष्ट विकल्प के रूप में सामने आए हैं।
सीओएफ बनाने की प्रक्रियाओं पर पूरे विश्व में शोध किये जा रहे हैं। आईआईएसईआर, भोपाल के शोधकर्ताओं ने एक आर्गेनिक इमाइन केज अणु को एक स्वतंत्र झिल्ली (फिल्म) के रूप में विकसित किया है। यह झिल्ली नैनो छिद्रयुक्त है, जिसकी किनारों की मोटाई मनुष्य के बाल की चौड़ाई से एक लाख गुना कम है। इसका परीक्षण नैनो-फिल्टरेशन तकनीक से कुछ चुने हुए विषाक्त आर्गेनिक सूक्ष्म प्रदूषकों को अलग करने के लिए किया गया, जिसमें इसे प्रभावी पाया गया है।
डॉ अभिजीत पात्रा बताते हैं, ‘‘इस शोध के निष्कर्षों के आधार पर अलग-अलग आयाम की दो क्रिस्टलीय इकाइयों के बीच परस्पर संरचनात्मक रूपांतरण का नया द्वार खुल गया है। इसमें एक सामान्य परिवेश के निर्धारित इंटरफेस में डायनेमिक कोवैलेंट कैमिस्ट्री (डीसीसी) का उपयोग किया गया है।’’ वह बताते हैं, डायनेमिक कोवैलेंट केमिस्ट्री नियंत्रित परिस्थितियों में रिवर्सिबल बॉण्ड की विशेष विधि है, जिससे कई अलग-अलग प्रकार की कार्य संरचनाएं बनायी जाती हैं। इस सिंथेटिक रणनीति का उपयोग विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों में किया जा सकता है, जैसे कि सीओएफ बनाना।
इस शोध के परिणामस्वरूप छोटी, पिंजरे जैसी जैविक संरचनाओं और पोर वाले बड़े पॉलीमर फ्रेमवर्क के बीच एक कड़ी बन गई है। इस तरह अणुओं या आयनों को अलग-अलग करने के लिए बेहतर झिल्ली (मेम्ब्रेन) बनायी जा सकेंगी। इससे अधिक कारगर और सेलेक्टिव सेपरेशन तकनीक के विकास की संभावना बढ़ी है। आईआईएसईआर भोपाल के शोधकर्ताओं को विश्वास है कि इस तकनीक द्वारा अधिक कार्यकुशल सीओएफ आधारित मेम्ब्रेन विकसित किये जा सकेंगे।
इस विधि से बने सीओएफ सामान्य परिवेश में कमरे के तापमान पर छिद्रयुक्त मेम्ब्रेन बनाने में सहायक होंगे। इसके परिणामस्वरूप पानी से आणविक पृथक्करण का काम अधिक कारगर होगा। सीओएफ ऊर्जा भंडारण और उत्प्रेरण से लेकर आणविक पृथक्करण तक विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी हो सकते हैं। पानी को फिल्टर करने के अतिरिक्त विभिन्न उद्योगों में इनका उपयोग हो सकेगा।
(इंडिया साइंस वायर)
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