India-Pakistan के बीच जंग हुई तो दुनिया किस तरफ, कौन रहेगा न्यूट्रल, कौन बनेगा थाली का बैंगन?

पहलगाम अटैक के बाद भारत के पड़ोसी देशों से लेकर दुनिया के छोटे बड़े सभी देशों की ओर से आतंक के खिलाफ़ एकजुटता जाहिर की गई। अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस जैसी वड़ी शक्तियों से लेकर तुर्की और ईरान ने भी खुलकर आतंकवादी हमले की निंदा की और संवेदना जताई।
रूस और यूक्रेन की जंग के दौरान देखा गया था कि जब युद्ध शुरू हुआ था तो दुनिया दो धड़ों में बट गई थी। एक तरफ अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे वो देश थे जो यूक्रेन के साथ खड़े थे तो दूसरी तरफ चीन और उत्तर कोरिया जैसे वो देश थे जो रूस के साथ खड़े थे। लेकिन अगर भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध होता है तो भारत का कौन कौन से देश साथ देंगे और पाकिस्तान के साथ कौन कौन से देश खड़े होंगे। पहलगाम अटैक के बाद भारत के पड़ोसी देशों से लेकर दुनिया के छोटे बड़े सभी देशों की ओर से आतंक के खिलाफ़ एकजुटता जाहिर की गई। अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस जैसी वड़ी शक्तियों से लेकर तुर्की और ईरान ने भी खुलकर आतंकवादी हमले की निंदा की और संवेदना जताई। हालांकि भारत की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए डिप्लोमैटिक फैसलों के बाद पाकिस्तान ने हमले की स्वतंत्र जांच और इसके साथ रूस और चीन की भूमिका को लेकर भी बयान दे दिया। इसके साथ ही उसने सऊदी अरब, इजिप्ट और तुर्की के बाद चीन के साथ डिप्लोमैटिक वातचीत कर समर्थन मांगा, जिसके बाद चीन ने पाकिस्तान की ओर से उठाई गई स्वतंत्र जांच की मांग को ठीक ठहरा दिया।
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भारत के समर्थन में कौन कौन
कई जानकार बताते हैं कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, इजरायल, जापान, रूस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत का खुलकर साथ देंगे। जबकि मौजूदा हालात को देखें तो आतंकी संगठन हमास, लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद जैसे उसके पाले पोसे आतंकी संगठन ही साथ खड़े नजर आ रहे हैं। कई इस्लामिक मुल्क भी पाकिस्तान से किनारा करते नजर आ रहे हैं। सऊदी अरब तो पहले कह चुका है कि निर्दोष लोगों पर आतंकी हमला बर्दाश्त नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ अच्छे रिश्तों की वजह से कतर औऱ यूएई जैसे देश भी पाकिस्तान का साथ नहीं देंगे। यानी पाकिस्तान पूरी दुनिया में इस वक्त अलग थलग दिखाई पड़ रहा है। आपने वो कहावत तो सुनी होगी कि जब फंस जाओ परेशान हो जाओ तो मदद की भीख मांगना शुरू कर दो। फोन की घंटियां बजनी शुरू हो चुकी हैं। पिछले दो-तीन दिनों में वहां के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री ने चीन, ईरान और ब्रिटेन में अपने समकक्षों से बात की। ये तीन तो ऐसे हैं जिनकी जानकारी सामने आ गई। बाकी किनसे और कैसी बात हुई इसकी लिस्ट कई गुणा लंबी हो सकती है। ये सवाल छिड़ी है कि भरत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई तो कौन से देश हमारे साथ आएंगे, कौन पाकिस्तान का पक्षधर होगा। कौन से देश टांग अड़ाने से कतराएंगे और कौन से देश थाली के बैंगन के समान होंगे।
पाकिस्तान ने कहां-कहां फोन घुमाया?
27 अप्रैल को पाकिस्तान और चीन के विदेश मंत्रियों ने फोन पर बात की है। चीनी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार चीन ने कहा कि वह भारत एवं पाकिस्तान के बीच वर्तमान स्थिति को सामान्य करने के लिए पहलगाम आतंकवादी हमले की त्वरित एवं निष्पक्ष जांच समेत सभी उपायों का स्वागत करता है। हालांकि उसने अपने सदाबहार मित्र देश पाकिस्तान की संप्रभुता एवं सुरक्षा हितों की रक्षा करने में उसका समर्थन किया। हालांकि, उन्होंने इस सवाल का सीधा जवाब देने से परहेज किया कि क्या चीन इस जांच में हिस्सा लेगा जैसा कि रूसी मीडिया ने खबर दी कि पाकिस्तान चाहता है कि चीन और रूस पहलगाम हमले की जांच का हिस्सा बनें। उन्होंने किसी भी जांच की निष्पक्षता और विश्वसनीयता के बारे में पूछे गए एक अन्य प्रश्न को भी टाल दिया। पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री इशाक डार ने अगला फोन ब्रिटेन को लगाया। डार ने ब्रिटेन के विदेश सचिव डेविड लैमी से बात की। पाकिस्तान ने डेविड लैमी से बात करते हुए भारत के आरोपों को झूठा करार दिया। डेविड लैमी ने संवाद की अहमियत की बात की। फिर बारी आई पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ की। उन्होंने भी अपना फोन उठाया और ईरान के राष्ट्रपति मसूद पजेश्कियान से बात की। इस दौरान शहबाज शरीफ ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने के लिए ईरान की मदद की पेशकश का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान हमेशा ही क्षेत्र में शांति के पक्ष में रहा है। अगर ईरान इस मामले में कोई भूमिका निभाना चाहता है तो पाकिस्तान उसका स्वागत करेगा। अमेरिका इस वक्त दोनों ही देशों के साथ संपर्क में है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने 27 अप्रैल को न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को ईमेल पर भेजे एक बयान में कहा कि पाकिस्तान और भारत के बीच बढ़े तनाव पर अमेरिका नजर बनाए हुए है और चाहता है कि इसका शांतिपूर्ण हल निकले। यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के एक प्रवक्ता ने रॉयटर्स को ईमेल के जरिए बताया कि स्थिति तेजी से बदल रही है और वे इस पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। वे भारत और पाकिस्तान की सरकारों के साथ कई स्तर पर संपर्क में हैं। अमेरिका ने दोनों पक्षों को मिलकर इसका समाधान निकालने के लिए कहा है। हम इस आतंकी हमले की निंदा करते हैं और भारत की इस लड़ाई में उसके साथ हैं। इससे पहले 25 अप्रैल को डोनाल्ड ट्रंप का भी बयान आया उन्होंने हमले की निंदा की थी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान से संयम बरतने की अपील की है। हालांकि वह भी किसी एक पक्ष में बात करने से बचे हैं। पहलगाम के सवाल पर ट्रंप ने कहा कि मैं भारत और पाकिस्तान दोनों के करीब हूं। कश्मीर में 1500 वर्षों से तनाव चल रहा ह। मैं दोनों देशों के नेताओं को जानता हूं। उम्मीद है कि भारत और पाकिस्तान इस स्थिति को अपने तरीके से सुलझा लेंगे।
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थाली का बैगन कौन है?
हमले वाले दिन ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर लिखा कि कश्मीर से बहुत ही परेशान करने वाली खबर आई है। आतंकवाद के खिलाफ़ भारत के साथ अमेरिका मजबूती से खड़ा है। हम मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और घायलों के ठीक होने की प्रार्थना करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और भारत के अविश्वसनीय लोगों को हमारा पूरा समर्थन और गहरी सहानुभूति है। हमारी संवेदनाएँ आप सभी के साथ हैं! ट्रंप ने अगले दिन प्रधानमंत्री मोदी को फोन भी किया और इस हमले की निंदा की। हमले वाले दिन ही अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि उषा और मैं भारत के पहलगाम में हुए विनाशकारी आतंकवादी हमले के पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं। पिछले कुछ दिनों में, हम इस देश और इसके लोगों की खूबसूरती से अभिभूत हो गए हैं। इस भयानक हमले में हमारे विचार और प्रार्थनाएँ उनके साथ हैं। हमले के पिछले ही दिन पीएम मोदी से मुलाकात भी हुई थी। 25 अप्रैल अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक ने ट्वीट कर कहा कि हम पहलगाम में 26 हिंदुओं को निशाना बनाकर किए गए भीषण इस्लामी आतंकवादी हमले के मद्देनजर भारत के साथ एकजुटता में खड़े हैं। फिर एफबीआई के डायरेक्टर काश पटेल का भी एक बयान 27 अप्रैल को आया। उन्होंने आतंकवादी हमले के सभी पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि भारत सरकार को अपना पूरा समर्थन देना जारी रखेगा। यह आतंकवाद की बुराइयों से हमारी दुनिया को लगातार होने वाले खतरों की याद दिलाता है। प्रभावित लोगों के लिए प्रार्थना करें। कुल मिलाकर देखें तो इन बयानों से समझा जा सकता है कि फिलहाल अमेरिका को कोई पक्ष लेता दिख नहीं रहा है। भारत को समर्थन देने की बात तो हो रही है। लेकिन किसी भी स्तर पर पाकिस्तान की आलोचना नहीं करता हुआ नजर आ रहा है।
रूस का क्या रहता है पाकिस्तान को लेकर स्टैंज
इतिहास पर अगर नजर डालें तो देश की राजधानी दिल्ली से करीब 643 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जम्मू कश्मीर का अमर पैलेस से महाराजा हरि सिंह ने सन 1947 में जम्मू और कश्मीर को हिंदुस्तान में शामिल होने का ऐलान कर देते हैं। पहले तो हरि सिंह ने आजाद रहने का फैसला किया था। लेकिन फिर पाकिस्तान से आए कबायली हमलावरों के धावा बोलने के बाद संकट में घिरे हरि सिंह ने भारत से हाथ मिलाया। 1947-48 की लड़ाई के बाद कराची समझौता हुआ। संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में एक सीजफायर लाइन बनी। लेकिन ये एक अस्थायी शांति थी। कश्मीर पर विवाद अंदर ही अंदर जारी रहा। लेकिन अमेरिका के रुख पर नजर डालें तो आज भले ही अमेरिका और भारत की साझेदारी मजबूत रही हो। लेकिन शुरुआती दौर में ऐसा नहीं था। अमेरिका ने पाकिस्तान को अपना विरोधी चुना। यूएन में भी अमेरिका और ब्रिटेन की तरफ से कश्मीर को लेकर प्रस्ताव आते रहे औऱ भारत के पक्ष में एकलौता खड़ा रूस इन्हें अपने वीटो से गिराता रहा।
चीन तो सदाबहार दोस्त
1950 तक चीन भी कश्मीर पर तटस्थ राय रखता था। लेकिन जैसे जैसे भारत के साथ उसका सीमा विवाद बढा। चीन ने पाकिस्तान के साथ नजदीकियां बढ़ा ली। दरअसल चीन के साथ पाकिस्तान के गहरे रिश्तों के पीछे वजह रणनीतिक और आर्थिक हित है। सीपेक के तहत पाकिस्तान में चीन के ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं, जिन पर किसी तरह की आंच आने से पहले ही वो बचाव की कोशिश करेगा। पाकिस्तान की मीडिया के मुताबिक पाकिस्तान चीन में बने हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन पाकिस्तान का पक्ष ले रहा है, क्योकि ऐसा करना चीन के लिए बेहद फायदेमंद है। बीते चार सालों से भारत और चीन के वीच टेंशन थी, अब हाल के दिनों में संबंध सामान्यीकरण की ओर बढ़े हैं। लेकिन ये समझना होगा कि इस मामले में चीन की ओर से जांच की मांग को समर्थन देकर चीन दरअसल चाहता क्या है? चीन इस तरह से कश्मीर का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर पाकिस्तान के साथ सुर से सुर मिलाकर चलने की कोशिश कर रहा है।
शिया ईरान और सुन्नी पाकिस्तान की निभ पाएगी?
जब पाकिस्तान वजूद में आया तो उसी रोज ईरान वो पहला मुल्क था जिसने उसे औपचारिक मान्यता दी। आगे चलकर 1955 में दोनों मुल्क सेंट्रल ट्रीटी आर्गनाइजेशन यानी सीईएनटीओ अमेरिका की शह पर बना था, जो सोवियत खरते को कम करने के उद्देश्य से की गई थी। लेकिन 1965 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान के फाइटर जेट्स के फ्यूल भी ईरान में ही भरे गए थे। 1971 की जंग में भी यही हुआ। बिना शोर शराबे के ईरान ने पाकिस्तान की मदद की। इस्लामी क्रांति और खुमैनी के दौर शुरू होने के बाद भी पाकिस्तान सबसे पहले नए ईरान को मान्यता देने वालों में से एक था। अफगान में सोवियत फौज की एंट्री के बाद पाकिस्तान को अमेरिका ने मुजाहिदों का अड्डा बनाया। लेकिन वक्त के साथ पाकिस्तान और ईऱान एक दूसरे पर आतंकियों को पनाह देने का कारण बताने लगे। सबसे बड़ा फैक्टर बलोच आबादी बना।
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