History Revisited: चंगेज खान और मंगोलों के बारे में ऐसी जानकारी कहीं नहीं मिलेगी
दाई वियत और चांपा के वियतनामी साम्राज्य आपस में प्रतिद्वंद्वी थे। लेकिन मंगोलों से जंग के वक्त देश की रक्षा के लिए दोनों साथ आए। सोंग राजवंश पर कब्जे के लिए मंगोलों ने 1258 में दाई वियत पर अपना पहला आक्रमण किया।
इस दुनिया ने हर बदलते वक्त के साथ इतने नए चेहरे देखें हैं। जिसे देखकर कभी उसे खुशी हुई तो कभी ये दुनिया बहुत रोई भी है। साम्राज्य पोंजी स्कीम्स की तरह होती हैं। एक तरह का कपटपूर्ण निवेश घोटाला जो बाद के निवेशकों से लिए गए धन से, पहले के निवेशकों के लिए रिटर्न जेनरेट करता है। शाही क्षेत्र पर कब्जे की लागत केवल लूट और ट्रिब्यूट के विजयी फॉर्मूले पर ही लिखी जा सकती है। ये लाइनें पॉल क्रिवाज़ेक की किताब ''बेबीलोन: मेसोपोटामिया और सभ्यता का जन्म'' की हैं। वैसे तो ये असीरियन साम्राज्य के बारे में कही गई थी। लेकिन मानव इतिहास के हर साम्राज्य पर मुफीद बैठती है। मंगोल साम्राज्य कोई अपवाद नहीं था। चंगेज खान के नेतृत्व में अस्पष्ट मूल से लेकर एकीकृत लोगों तक, मंगोलों ने दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य का निर्माण किया। लेकिन चंगेज खान की मृत्यु के तीन दशकों के भीतर, साम्राज्य अंदरूनी लड़ाई की वजह से बिखर गया। मंगोल इतने खतरनाक थे कि जिंदा इंसान को तीन मिनट में खा जाते थे। मिस्र की मामलुक सल्तनत के हाथों मंगोलों की हार ने उनके पतन की शुरुआत कर दी। आप में से बहुत से लोग 1260 में ऐन जलुत में मामलुक की जीत की कहानी से परिचित होंगे। लेकिन एशिया में तीन साम्राज्य ऐसे भी थे जिन्होंने मंगोलों के विश्वविजय और दुनिया पर राज करने के उसके सपने को पूरा नहीं होने दिया। इन साम्राज्यों ने मंगोल को रोकने में अहम भूमिका निभाई। इससे साम्राज्य का अंतत: पतन हुआ। ऐसे में आज आपको मंगोल को रोकने में वियतनाम, इंडोनेशिया और भारत के साम्राज्यों की अनसुनी कहानी सुनाते हैं।
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वियतमान का दाई वियत और चांपा
दाई वियत और चांपा के वियतनामी साम्राज्य आपस में प्रतिद्वंद्वी थे। लेकिन मंगोलों से जंग के वक्त देश की रक्षा के लिए दोनों साथ आए। सोंग राजवंश पर कब्जे के लिए मंगोलों ने 1258 में दाई वियत पर अपना पहला आक्रमण किया। दक्षिणी चीनी सांग राजवंश दुनिया का सबसे धनी और सबसे अधिक औद्योगिक साम्राज्य था और मंगोलों की निगाह इसके धन पर थी। मंगोल जनरल सुबुताई के बेटे उरियांगखदाई ने दाई वियत पर आक्रमण का नेतृत्व किया। मंगोलों ने राजधानी थांग लोंग पर कब्जा जमा लिया। लेकिन चीन में जरूरी मामलों ने उरियांगखदाई और पूरी मंगोल सेना को वापस बुलाने के लिए मजबूर कर दिया। 1258 में मुठभेड़ के बाद 25 साल तक शांति रही। दाई वियत और चांपा दोनों ने तय किया कि मंगोल को ट्रिब्यूट देना ही वक्त की नजाकत है। लेकिन कुबलई खान के मंगोलों के शासक बनने के बाद चीजें बदल गईं। 1279 में सोंग राजवंश की विजय के बाद, कुबलई ने मांग करना शुरू कर दिया कि चंपा और दाई वियत के राजा आकर व्यक्तिगत रूप से उसके सामने आत्मसमर्पण कर दें। कोई भी राजा ऐसा नहीं करना चाहता था। 1282 में मंगोल जनरल सोगेतु ने चांपा पर आक्रमण किया। शुरुआत में सोगेतु ने चंपा की राजधानी विजया पर कब्जा कर लिया, जिससे राजा इंद्रवर्मन और राजकुमार हरिजीत भागने पर मजबूर हो गए। दो साल की छापामार लड़ाई हुई, जिसमें मंगोलों को भारी नुकसान हुआ। फिर 1285 की शुरुआत में कुबलई के बेटे तोघोन ने उमर के साथ अपने बेड़े कमांडर के रूप में चंपा पर हमला किया। दाई वियत उनकी मदद करने के मूड में नहीं थे। लेकिन वियतनामी उमर के नौसैनिक हमले में नहीं लड़ सके और थांग लॉन्ग फिर से मंगोलों के हाथों में चला गया। मई 1285 में वियतनामी गर्मी के दौरान दाई वियत सैनिकों ने एक जवाबी हमला किया। प्रिंस क्वैक टुएन ने मंगोल शिविर पर हमले का नेतृत्व किया जहां सोगेतु तैनात था, जिससे उसकी मौत हो गई। उमर ने 1288 में फिर से दाई वियत पर हमला किया। बोच डोंग नदी की लड़ाई में वियतनामी ने धातु के स्पाइक्स के सहारे 400 मंगोल जहाजों को डूबा दिय। मंगोलों को भगा दिया गया और वे चीन लौट आए। लेकिन दाई वियत और चंपा दोनों नहीं चाहते थे कि युद्ध आगे बढ़े। तैमूर खान (कुबलई के उत्तराधिकारी) के शासनकाल के दौरान, वियतनामी राज्य और मंगोल दोस्त बन गए। आगे कोई संघर्ष नहीं हुआ।
इंडोनेशिया का मजापहित साम्राज्य
इंडोनेशिया का मजापहित साम्राज्य जावा में स्थित था। यह 13वीं और 16वीं शताब्दी के बीच अस्तित्व में था। साम्राज्य की स्थापना विजया, सिंघासारी के राजकुमार ने किया। 1292 में मंगोल सैनिक चीन के सम्राट कुबलई खान के अपमान का बदला लेने के लिए जावा आए। मंगोलों द्वारा जावा पर किए गए इस आक्रमण में एक हॉलीवुड फिल्म का निर्माण किया गया था, जिसमें विश्वासघात और चतुर राजनीतिक पैंतरेबाज़ी की एक दिलचस्प साजिश को दर्शाया गया था। कुबलई खान चाहता था कि सिंघासार का सम्राट उसके अधिकार के अधीन हो जाए। उसने जावा में सौदा करने के लिए दूत भेजे। कीर्तनगर ऐसा करने के मूड में नहीं था। उसने दूत के कान काट दिए, उसके ऊपर गर्म लोहे डालवा दिया। इस कदम ने कुबलई खान के गुस्से को भड़का दिया। लेकिन वह जापान और वियतनाम की घटनाओं के बाद सतर्क था। उसने 1,000 जहाजों के काफिले में 20 हजार लोगों को लेकर रवानगी भरी। जहाज में एक साल की खाद्य आपूर्ति भी रखी गई। उसकी मंशा राज्य पर कब्जे के बाद एक वफादार कठपुतली शासक को स्थापित करना था। लेकिन जब मंगोल सेना जावा पहुंची तो उन्हें चौंकाने वाली खबर मिली। सिंघासार के एक जागीरदार राज्य केदिरी ने कीर्तनगर को उखाड़ फेंका था।
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मंगोलों के लिए अब क्या?
इस बीच, कीर्तनगर के दामाद राडेन विजया ने जावा में एक छोटे से राज्य की स्थापना की, जिसे माजापहित के नाम से जाना जाता। उसने केदिरी सैनिकों का विरोध करना जारी रखा। लेकिन वह इतना मजबूत नहीं था कि केदिरियों को हरा सके। वह मंगोल सेना के पास पहुंचा और उनसे केदिरी साम्राज्य से लड़ने में मदद करने के लिए कहा। केदिरी मंगोल सेना के आगे घुटने टेक दिए। कुबलई की सेना ने केदिरी की राजधानी दाहा पर धावा बोल दिया और शाही परिवार को बंधक बना लिया। विजया को हमले में शामिल होना था, लेकिन उसने ऐसा किया नहीं। जिससे मंगोलों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। उसने अपने सौदे के हिस्से के रूप में मंगोलों को एक बड़ा इनाम देने की पेशकश की। मंगोल सेना के एक चीनी कमांडर गाओ जिंग को विजया के इरादों पर संदेह हो गया। जब मंगोल सेनाएं इनाम लेने के लिए माजापहित में पहुंचीं, तो विजया के लोगों ने उन पर घात लगाकर हमला किया, जिसमें कई लोग मारे गए। मंगोल सेना दाहा में अपनी जीत का जश्न मना रही थी जब विजया के सैनिकों ने हमला किया, उन्हें पकड़ लिया। विजय बहुत ही चालाक शासक था उसने अपने विरोधी को उखाड़ फेंकने के लिए पहले तो मंगोलों से हाथ मिलाया फिर उन्हें धोखा दे दिया। छह महीने के गुरिल्ला युद्ध के बाद, मंगोलों ने जावा को जीतने के अपने सपने को छोड़ दिया। विजया ने माजापहित के नए साम्राज्य की स्थापना की।
खिलजी ने मंगलों को बैरंग लौटाया
जब कभी भी अलाउद्दीन खिलजी का नाम लिया जाता है. उसे सिर्फ उसकी बर्बरता और अमानवीयता के लिए ही याद किया जाता है। उसके इन युद्धों के जीतने के तरीके की वजह से ही इतिहास उसे एक निर्दयी शासक के तौर पर याद रखे हुए है। ख़ास बात यह है कि अलाउद्दीन खिलजी की वजह से वहशी मंगोल भारत में अपना कब्ज़ा नहीं कर पाए। ये खिलजी ही था जिसकी वजह से एक या दो नहीं 6 बार मंगोलों को अपने कदम वापस खींचने पड़े। जब भारत में खिलजी का शासन था, उस समय मंगोलों ने हमला किया। चंगेज के क्रोध के डर से, दिल्ली के तत्कालीन सुल्तान इल्तुतमिश ने जलाल की मदद करने से इनकार कर दिया। लेकिन सिंधु नदी के तट पर जलाल पर अपनी जीत के बावजूद चंगेज खान ने कभी भी भारत पर पूर्ण पैमाने पर आक्रमण नहीं किया। वह फारस, चीन और पूरे मध्य एशिया पर विजय प्राप्त करने के बाद अपरिचित क्षेत्र में जाने से हिचकिचा रहा था। उसका लक्ष्य अपने नए क्षेत्रों पर शासन करना था। मंगोल साम्राज्य 1260 में गोल्डन होर्डे (रूस), इलकाहानेट (फारस), चगताई खानते (मध्य एशिया) और युआन राजवंश (चीन) में विभाजित हो गया था। मंगोलों ने पहली बार सन 1298 CE में हमले की कोशिश की. इस हमले में उन्होंने करीब एक लाख घोड़ों का भी इस्तेमाल किया। इसके जवाब में अलाउद्दीन ने अपने भाई उलुग खान और जनरल ज़फर खान के नेतृत्व में अपनी सेना भेजी. खिलजी की सेना ने मंगोलों को इस युद्ध में करारी शिकस्त दी। जीत के साथ ही करीब 20 हजार सैनिकों को युद्धबंदी भी बना लिया, जिन्हें बाद में मौत की सजा दे दी गई। अपनी हार के एक साल बाद एक बार फिर उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप पर हमला किय। इस बार भी ज़फर खान के नेतृत्व में सेना खिलजी ने जीत हासिल की। लगातार हो रही अपनी हार से दुवा खान झल्ला उठा था। उसने एक बार फिर अपने बेटे कुतलुग ख्वाजा के नेतृत्व में दो लाख सेना को हमले में भेज दिया। बता दें, इससे पहले खिलजी के चाचा जलालुद्दीन ने मंगोलों की मांगों को मानते हुए युद्ध का फैसला नहीं किया था। अलाउद्दीन का आमना-सामना मंगोल कुतलुग ख्वाजा से किली पर हुआ। साथ ही यही वो दिन था जब खिलजी ने एक बार जनरल ज़फर खान की वजह से जीत हासिल कर ली। इस तरह हार की वजह से मंगोल पीछे हट गए और वापस लौट गए।
- अभिनय आकाश
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