संभल हिंसा से सुलगते सवालों का जवाब आखिर कौन देगा?
उल्लेखनीय है कि संभल के कैला देवी मंदिर के ऋषिराज गिरी समेत आठ वादियों ने सिविल जज सीनियर डिविजन आदित्य कुमार सिंह की चंदौसी स्थित कोर्ट में इस बाबत एक वाद दाखिल किया है। जिसके दृष्टिगत कोर्ट ने कमिशन गठित कर रिपोर्ट मांगी है।
कहते हैं कि लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा भुगती। भारत देश और भारतीय इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। मुहम्मद बिन कासिम जैसे मुस्लिम आक्रांताओं और उनके अनुगामियों ने तलवार की नोंक पर भारत की देशज सत्ता हथियाने के बाद यहां की सनातन सभ्यता-संस्कृति के साथ जो खिलवाड़ किया, उसका हिसाब-किताब अब उनकी धर्मांतरित पीढ़ियों को देना पड़ रहा है। खासकर मंदिरों को ढहाकर जिन मस्जिदों का निर्माण किया गया, उनकी मुक्ति यानी जीर्णोद्धार का अभियान अब स्थानीय प्रशासन के गले की हड्डी बन चुकी है।
देखा जाए तो ऐसे मामलों में कभी आपसी विवाद, तो कभी न्यायिक आदेश के अनुपालन में सिविल व पुलिस प्रशासन को अपनी सक्रियता दिखानी पड़ती है, लेकिन कानून का राज स्थापित करने में उनकी विफलता से जब तब सांप्रदायिक दंगे भी भड़क जाते हैं जिससे धन-जन की भारी क्षति भी होती है। अतीत की बात यदि भुला दी जाए तो भी स्वतंत्र भारत की यह एक बड़ी चुनौती है, जबकि यह हिंदुओं के हिस्से का हिंदुस्तान है, क्योंकि मुस्लिमों को तो पाकिस्तान दे ही दिया गया, जिसका भाग ही बंगलादेश है।
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लेकिन भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने के बजाय धर्मनिरपेक्ष देश घोषित करना, फिर वोट बैंक की राजनीति के तहत मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनाना और आतंकवाद पर समझौतापरस्त रुख अपनाने की प्रतिक्रियाओं में उभरे राष्ट्रवाद व हिंदुत्व की जनभावना ने जब बदले की कार्रवाई शुरू की तो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों में खलबली मच गई। रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद और उसके न्यायसंगत समाधान ने तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं के सत्ता की चूलें हिला दीं और हर ओर उनका पतन हुआ।
अब रामजन्मभूमि मुक्ति मिशन के पूरा होने के बाद न केवल मथुरा-काशी, बल्कि वैसे तमाम मंदिरों की मुक्ति के सवाल जनमानस में सुलगने लगे हैं, जिन्हें बर्बरतापूर्ण कार्रवाई के बाद मस्जिदों में तब्दील कर दिया गया था। चूंकि इतिहास खुद को दुहराता है, इसलिए अब धीरे-धीरे पुराने गड़े मुर्दे उखड़ने लगे हैं, उखाड़े जाने लगे हैं। इसी कड़ी में उत्तरप्रदेश के संभल जनपद के सदर तहसील स्थित दीपा सराय की जामा मस्जिद को जब हिंदू पक्ष श्री हरिहर मंदिर होने का दावा कर रहे हैं और उनके इसी दावे के आधार पर कोर्ट ने जब मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया था, तो फिर कानून के अनुपालन में कार्य कर रहे लोगों के विरुद्ध शांतिप्रिय समुदाय द्वारा बवाल काटने को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि संभल के कैला देवी मंदिर के ऋषिराज गिरी समेत आठ वादियों ने सिविल जज सीनियर डिविजन आदित्य कुमार सिंह की चंदौसी स्थित कोर्ट में इस बाबत एक वाद दाखिल किया है। जिसके दृष्टिगत कोर्ट ने कमिशन गठित कर रिपोर्ट मांगी है। इस मामले की अगली सुनवाई 29 नवंबर 2024 को होगी। हिंदू पक्ष के एक स्थानीय वकील गोपाल शर्मा ने बताया है कि, कोर्ट में दायर याचिका में बताया गया है कि बाबरनामा और आइन- ए-अकबरी ने पुष्टि की है कि उस स्थान पर हरिहर मंदिर था। मंदिर को मुगल सम्राट बाबर ने 1529 में ध्वस्त कर दिया था। लिहाजा इस मामले में उन्होंने कोर्ट में बाबरनामा और आइन-ए-अकबरी का संदर्भ दिया है, जिनसे साफ होता है कि वहां हरिहर मंदिर था। हिंदू पक्ष का कहना है कि मंदिर पृथ्वीराज चौहान के शासन से पहले बना था, जबकि मस्जिद मुगलकाल में मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।
लिहाजा, महंत ऋषि राज गिरि महाराज आदि ने 19 नवंबर को सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर सर्वे की मांग की थी। इस मामले में सिविल जज के कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन मुख्य याचिकाकर्ता हैं। चूंकि चंदौसी स्थित सिविल जज सीनियर डिवीजन आदित्य कुमार सिंह की अदालत में वाद दाखिल किया था। इसलिए कोर्ट ने इसी याचिका पर 7 दिन में सर्वे रिपोर्ट मांगी है, जिसे 29 नवंबर को जमा करना है। कोर्ट कमिश्नर रमेश सिंह राघव के नेतृत्व में टीम ने 19 नवंबर की शाम को ही सर्वे की शुरुआत कर दी थी। रविवार को टीम सर्वे की प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिए दोबारा मस्जिद पहुंची थी।
मसलन, कोर्ट से सर्वेक्षण का आदेश जारी होने के बाद मंगलवार को जब पहली बार सर्वे हुआ, तब से ही मुस्लिम समुदाय में असंतोष फैलने लगा और उस दिन भी विरोध हुआ था। क्योंकि मुस्लिम पक्ष मान रहा है कि इस प्रक्रिया में जल्दबाजी की गई, उनको पर्याप्त समय या अवसर नहीं दिया गया। इसलिए सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद के बाहर बड़ी संख्या में शांतिप्रिय समुदाय के लोग एकत्रित हो गए, जिससे स्थिति पहले तनावपूर्ण हुई, फिर अनियंत्रित हो गई। जिसे भारी मशक्कत के बाद नियंत्रित किया गया।
बताया जाता है कि मस्जिद में आमतौर पर रविवार दोपहर में नमाज होती है। ऐसे में सर्वे करने वाली टीम को इससे पहले आने के लिए कहा गया था। सर्वे टीम के वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया कि सुबह साढ़े 7 बजे टीम पहुंची और 10 बजे तक सर्वे चला। फिर हम जरूरी तस्वीरें और विडियो लेकर जब निकलने लगे तभी भीड़ ने घेर लिया। फिर सर्वेक्षण टीम को सुरक्षित निकालने के क्रम में जो कुछ हुआ, वह न केवल योगी सरकार बल्कि शांतिप्रिय समुदाय के लिए भी एक कलंक है।
ऐसा इसलिए कि लखनऊ में बाजाप्ता एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि, "संभल में एक गंभीर घटना हुई। चुनाव के बारे में चर्चा को बाधित करने के लिए सुबह जानबूझकर एक सर्वेक्षण टीम भेजी गई थी। इसका उद्देश्य अराजकता पैदा करना था, ताकि चुनावी मुद्दों पर कोई बहस न हो सके। मैं कानूनी या प्रक्रियात्मक पहलुओं में नहीं जाना चाहता, लेकिन दूसरे पक्ष की बात भी नहीं सुनी गई। यह जानबूझकर भावनाओं को भड़काने और चुनाव में धांधली पर चर्चा से बचने के लिए किया गया था। संभल में जो कुछ हुआ, वह चुनावी गड़बड़ियों से ध्यान हटाने के लिए बीजेपी, सरकार और प्रशासन की ओर से किया गया था।"
हालांकि, सवाल यह भी है कि एक न्यायिक और प्रशासनिक कार्रवाई को सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सियासी रंग क्यों दिया? क्या सिर्फ इसलिए कि अल्पसंख्यक मुस्लिम वर्ग उनका वोट बैंक है? आखिर वह इस बात से अनजान क्यों हैं कि संभल जिला प्रशासन ने शनिवार को ही शांति भंग की आशंका में जिन 34 लोगों को 10 लाख रुपये तक के मुचलके पर पाबंद किया, उसमें सपा के संभल सांसद जिया उर रहमान बर्क के पिता ममलुकुर रहमान बर्क भी शामिल हैं। वहीं, इस मुचलके पाबंदी के ठीक एक दिन बाद वहां जिस तरह से आगजनी व फायरिंग की गई, जिसमें कुछ लोग हताहत भी हुए, उससे तो यही पता चलता है कि सर्वेक्षण टीम व पुलिस पर हमलावरों को सियासी संरक्षण प्राप्त है। तभी तो संभल के जिला अधिकारी राजेंद्र पैंसिया ने एक अधिसूचना जारी कर किसी भी बाहरी व्यक्ति, सामाजिक संगठन या जनप्रतिनिधि को अधिकारियों के आदेश के बिना संभल में प्रवेश करने पर रोक लगा दी है।
बता दें कि संभल की जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर बताते हुए दाखिल वाद के आधार पर सर्वे के लिए रविवार सुबह सात बजे कोर्ट कमिश्नर की टीम पहुंची तो संभल में बवाल हो गया। अचानक टीम के पहुंचने की सूचना पर जुटी भीड़ मस्जिद में दाखिल होने कोशिश करने लगी। फिर उन्हें रोकने पर भीड़ ने पुलिस पर पथराव कर दिया। हिंसक हुई भीड़ ने चंदौसी के सीओ की गाड़ी समेत कई वाहनों में तोड़फोड़ कर दी और आग लगा दी। इसी बीच फायरिंग भी शुरू हो गई। पुलिस ने आंसू गैस के गोले और लाठीचार्ज कर भीड़ को खदेड़ा। बवाल में घिरकर दो-तीन लोगों की मौत हो गई। कई अधिकारियों समेत दर्जनों लोग घायल हुए हैं। तनाव को देखते हुए संभल में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है।
बता दें कि सर्वे टीम कोर्ट कमिश्नर चंदौसी के वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश सिंह राघव की अगुवाई में आई थी। संभल के डीएम डॉ. राजेंद्र पैंसिया और एसपी कृष्ण कुमार विश्नोई भी टीम के साथ थे। इसलिए बाहर हालात बेकाबू होते देख पुलिस ने आंसू गैस के गोले और लाठियां चलाकर सर्वे टीम को किसी तरह सुरक्षित बाहर निकाला। भले ही पुलिस के आक्रमक होते ही उपद्रवी भागने लगे, लेकिन कुछ देर बाद भीड़ फिर जुट गई और लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। इस दौरान छतों से फायरिंग होने लगी। मौके पर पहुंची अन्य जिलों की पुलिस और पीएसी के साथ अधिकारियों ने उपद्रव करती भीड़ से मोर्चा लिया। इसके बावजूद करीब डेढ़ घंटे हालात बेकाबू रहे। जैसे-तैसे भीड़ को तितर-बितर कर पुलिस आगे बढ़ी। पूरे इलाके की नाकेबंदी कर दी।
इस घटना के बाद पूरे शहर में तनाव गहरा गया। शाम होने तक सख्ती इतनी बढ़ा दी गई कि शहर में अघोषित कर्फ्यू जैसा माहौल हो गया। एक ओर हिंसा का शिकार युवकों के परिजनों ने पुलिस की गोली से मौत होने की बात कही है। वहीं, दूसरी ओर मौके पर पहुंचे कमिश्नर आंजनेय कुमार सिंह ने कहा कि तीन युवकों में दो की मौत गोली लगने से हुई है, लेकिन पुलिस ने गोली नहीं चलाई थी। भीड़ को खदेड़ने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले और लाठी का प्रयोग किया था। तीसरे युवक की मौत का कारण स्पष्ट नहीं हुआ है। घायलों में डीआईजी, संभल के डीएम, एसपी और एसडीएम भी शामिल हैं।
वहीं, संभल बवाल में हयातनगर निवासी रोमान (40), फत्तेहउल्ला सराय निवासी बिलाल (22) और मोहल्ला कोट तबेला निवासी नईम (35) की मृत्यु हो गई। वहीं, एक अन्य मृतक की पहचान नहीं हुई है। इस बवाल के बाद पुलिस के साथ पीएसी, आरआरएफ और आरएएफ को शहर में लगाया गया है। बवाल में कई पुलिसकर्मी और अधिकारी घायल हुए हैं। सभी का मेडिकल कराया गया है। बवालियों को चिह्नित कर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
वहीं, उपद्रवी गिरफ्तारी के डर से चोरी-छिपे इलाज करवा रहे हैं। घायल लोग कहां और कैसे इलाज करा रहे हैं, पुलिस इसकी तलाश कर रही है। एएसपी श्रीशचंद्र के मुताबिक, दो घायल ही मेडिकल कराने जिला अस्पताल पहुंचे थे। जो लोग चोरी-छिपे इलाज करा रहे हैं, उनका पता लगाया जा रहा है। पथराव-फायरिंग में पुलिस ही नहीं, सैकड़ों उपद्रवी भी घायल हुए हैं।
सवाल है कि जब पिछले पांच दिनों से संभल में जामा मस्जिद सर्वे को लेकर विवाद चल रहा था, नेता बयानबाजी भी कर रहे थे, पुलिस लोगों को मुचलकों में पाबंद भी कर रही थी, लेकिन बवाल को भांपने में अधिकारी नहीं बल्कि जिले से लेकर मंडल मुख्यालय तक का सूचना तंत्र भी फेल हो गया। रविवार जैसे बवाल का कोई इनपुट नहीं मिला था। वहीं, करीब डेढ़ घंटे तक चले पथराव में गलियां ईंट-पत्थरों से पट गईं। हालात नियंत्रित होने के बाद पुलिस ने नगर पालिका की टीम बुलवाई और गलियों से ईंट-पत्थर हटवाने के साथ ही क्षतिग्रस्त वाहनों को मौके से हटवाकर थाने भिजवाया। तब जाकर जामा मस्जिद के आसपास की सड़कें साफ हुईं।
हैरत की बात है कि पत्थरबाजी करने वाले उपद्रवी नकाब पहने हुए थे। पुलिस की बार-बार चेतावनी के बाद भी न तो पथराव बंद किया और न ही पीछे हटे। पुलिस ने जब आंसू गैस के गोले छोड़े तो उपद्रवियों ने वही गोले उठाकर पुलिस पर फेंक दिए। इससे पुलिसकर्मियों को मोर्चा संभालने में परेशानी हुई। इसलिए पुलिस अधिकारियों को आशंका है कि उपद्रव करने वाले पेशेवर थे और वह हिंसा करने ही आए थे।
इससे साफ है कि शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुए बवाल में जनहानि के साथ बड़ी आर्थिक क्षति हुई है। इसलिए बवाल के बाद पुलिस उपद्रवियों को पकड़ने के प्रयास में जुटी है। सीसीटीवी से पहचान करने के बाद पुलिस उन्हें पकड़ने के प्रयास में जुटी है। पुलिस ऐसे लोगों का सहयोग ले रही है, जो शांतिप्रिय हैं। घर-घर पुलिस की टीम दबिश दे रही है और उपद्रवियों की पहचान कर गिरफ्तारी के प्रयास में जुटी है। पुलिस अधिकारियों की मानें, तो रविवार शाम तक दो महिलाओं समेत 21 लोगों को पुलिस हिरासत में ले चुकी है। वहीं, हिरासत में ली गईं दोनों महिलाओं ने पूछताछ में बताया कि पुलिस को टारगेट कर पथराव किया गया। ऐसा भी बताया जा रहा है कि कुछ बाहरी लोगों ने भीड़ में शामिल होकर उपद्रव किया है। पत्थर फेंकने और तोड़फोड़ व पथराव करने वाले अधिकांश उपद्रवियों के चेहरे रुमाल से ढके हुए थे। जिससे पता चलता है कि यह योगी सरकार के खिलाफ कोई सोची समझी सियासी साजिश है। इसलिए पुलिस अब क्षेत्र में गश्त कर घर-घर उपद्रवियों की तलाश कर रही है।
संभल में जो कुछ हुआ, वह लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। इसलिए इस पर सियासत नहीं होनी चाहिए। यह सांप्रदायिक दंगा कम और पुलिस के विरुद्ध हिंसा की कार्रवाई ज्यादा प्रतीत हुई, जो एक खतरनाक ट्रेंड है। बहरहाल, पूरे देश में इस मनोवृत्ति को प्रशासन को कुचलना ही होगा, ताकि सर्वत्र शांति बहाल रहे। उसे ऐसी शिक्षा व्यवस्था विकसित करनी होगी, ताकि पुलिस की जरूरत ही कम पड़े। यदि भारत वाकई धर्मनिरपेक्ष देश है तो फिर धर्म आधारित शिक्षा के प्रशासनिक स्वीकृति और सरकारी पाठ्यक्रम दोनों पर रोक लगे। यह सभी धर्मों पर समान रूप से लागू हो।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
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