पीएम म्यूजियम से नेहरू के 'गायब लेटर्स' पर प्रशासनिक कार्रवाई हो, सिर्फ सियासत नहीं!

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कमलेश पांडे । Dec 17 2024 6:32PM

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तिगत पत्रों को सार्वजनिक किए जाने यानी प्रधानमंत्री संग्रहालय को पुनः सुपुर्द करने को लेकर जो तल्ख सियासी बयानबाजी शुरू हुई है, उसके आधिकारिक लापरवाही वाले पहलुओं पर भी विचार किया जाना जरूरी है। क्योंकि लगभग 15 वर्ष बाद इस रहस्य से पर्दा उठा है। वहीं, इससे जवाहरलाल के प्रासंगिक सियासी कद का भी पता चलता है।

साहित्य मिजाजी राजनीतिज्ञ और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तिगत पत्रों को सार्वजनिक किए जाने यानी प्रधानमंत्री संग्रहालय को पुनः सुपुर्द करने को लेकर जो तल्ख सियासी बयानबाजी शुरू हुई है, उसके आधिकारिक लापरवाही वाले पहलुओं पर भी विचार किया जाना जरूरी है। क्योंकि लगभग 15 वर्ष बाद इस रहस्य से पर्दा उठा है। वहीं, इससे जवाहरलाल के प्रासंगिक सियासी कद का भी पता चलता है। 

अब बीजेपी जिस तरह से नेहरू के लेटर्स को पीएम म्यूज़ियम को वापस करने के लिए विदेशी मूल की उनकी मनाती बहू, राज्यसभा सांसद व कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर दबाव बढ़ा रही है और केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी बोल रही है कि ये पत्र देश की संपत्ति हैं, के राजनीतिक मायने स्पष्ट हैं। जबकि इसमें प्रशासनिक लापरवाही का पहलू भी समीचीन होना चाहिए। क्योंकि इससे हमेशा नामचीन व जिम्मेदार लोग ही जुड़े रहते हैं।

आपको याद होगा कि आरएसएस और भाजपा से जुड़े लोग स्वतंत्रता सेनानी नेहरू और उनके वंशजों के राजनीतिक फैसलों और व्यक्तिगत जीवन पर तथ्यात्मक और मनगढ़ंत हमले करके कांग्रेस का बुरा हाल कर चुके हैं और यदि अपेक्षित पत्र भी उसके हाथ लग गए तो उनको सियासी हमले का पुख्ता आधार मिल जाएगा। यही वजह है कि गांधी परिवार ने भावनात्मक भूलों और तत्कालीन मजबूरियों से जुड़े सुबूतों पर कुंडली मारकर बैठने का फैसला किया है, क्योंकि लगभग 6 दशक तक उसने यहां तिकड़मी तौर पर शासन किया है। 

हालांकि, उनकी जगह आए समाजवादियों व राष्ट्रवादियों ने भी कुछ वही किया और आज भी कमोबेश कर ही रहे हैं। इससे बहुतेरे कांग्रेसी पाप अब धूल चुके हैं। बता दें कि बीजेपी ने सोमवार को कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गाधी से कहा कि उन्हें देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ओर से कई बड़ी हस्तियों को लिखी गई चिट्ठी को प्राइम मिनिस्टर म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी (PMML) को लौटा देना चाहिए। क्योंकि ये ऐतिहासिक दस्तावेज देश की संपत्ति होते हैं न कि किसी की निजी संपत्ति। इस मामले को लेकर संसद में हंगामा भी हुआ। बीजेपी की ओर से सांसद संबित पात्रा ने सोमवार को लोकसभा में यह मुद्दा उठाया। 

पात्रा का दावा था कि नेहरू ने ये लेटर्स गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन, बाबू जगजीवन राम, जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली, गोविद वल्लभ पंत जैसे नेताओं और साइंटिस्ट अल्बर्ट आइंस्टाइन को लिखा था। बताया जाता है कि पीएमएमएल से जुड़े सदस्य रिजवान कादरी ने राहुल गांधी को लेटर लिखकर कांग्रेस के पास मौजूद जवाहरलाल नेहरू के अहम खतों को संग्रहलाय को सौंपे जाने की अपील की थी। यह लेटर 10 दिसंबर को लिखा गया था, जिसमें दस्तावेज लाने में राहुल गांधी से भी मदद मांगी गई।

बताया जाता है कि कांग्रेस की तरफ से अब तक कोई जवाब या प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। इस पर बीजेपी ने सवाल उठाए कि आखिर इन खतों में ऐसा क्या था 

जिसे छुपाया जा रहा है। सवाल है कि पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू के वे कौन कौन से खत थे और ये किसे लिखे गए थे जिन्हें वापस मांगा जा रहा है और कौन मांग रहा है? यही नहीं, सवाल है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ढेरों खत जो कभी नेहरू मेमोरियल में सुरक्षित तौर पर रखे हुए थे, बाहर कैसे गए और इसके लिए कौन से अधिकारी जिम्मेदार हैं, उन पर कार्रवाई की जाए।

बताया जाता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ढेरों खत जो कभी नेहरू मेमोरियल में सुरक्षित तौर पर रखे हुए थे, जो अब वहां नहीं हैं। सवाल है कि न तो ये चोरी हुए हैं और न ही रखे-रखे नष्ट हुो गए हैं, बल्कि इन्हें साल 2008 में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने अपनी सरकार के रहते मंगवा लिया था। हैरत की बात है कि इन्हें मंगवाने के डेढ़ दशक बाद भी लौटाया नहीं गया। जबकि केंद्र में लगभग 11 वर्षों से भाजपा की सरकार है और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री संग्रालय का स्वरूप भी बदल दिया है। इसके लिए जिम्मेदार व लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।

खबर है कि पहले भी सितंबर 2024 में लेटर लिखकर मांगा गया था और अब एक बार फिर इन्हें देश की धरोहर बताते हुए वापस मांगा जा रहा है। राहुल को लिखे लेटर में यहां तक कहा गया है कि यदि वे ऑरिजिनल नहीं दे सकते तो डिजिटल या फोटोकॉपी ही भिजवा दें। लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया है। इसके बाद संसद में भी यह मुद्दा उछाल दिया गया। दरअसल जवाहर लाल नेहरू के ये पत्र केवल एडविना माउंटबेटन से ही जुड़े हुए नहीं हैं बल्कि अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, पद्मजा नायडू, विजया लक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, बाबू जगजीवन राम आदि के बीच के संवाद भी इसमें शामिल हैं। इनमें लेडी माउंटबेटन (एडविना माउंटबेटन) को लिखे हुए खत भी हैं।

यही वजह है कि 10 साल बाद जगी मोदी सरकार अब इस मसले पर राहुल गांधी और सोनिया गांधी को आड़े हाथों ले रही है।  बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि सोनिया गांधी ने इन खतों को गायब कर दिया है। यह पहली बार नहीं है कि नेहरू के खतों को लेकर बवाल मचा है। पहले भी एडविना माउंटबेटन औऱ नेहरू के बीच हुए पत्राचार पर बीजेपी कांग्रेस को निशाने पर लेती रही है। ऐसे में गांधी परिवार का इन लेटर को मेमोरियल (जो कि अब प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय के नाम से जाना जाता है) से मंगवाना और फिर बार-बार कहने पर भी न लौटाना, संदेह पैदा करता है।

गौरतलब है कि ये वे दस्तावेज हैं जो मेमोरियल को दान किए गए थे। इनमें नेहरू के एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन जैसी हस्तियों के साथ हुए पत्राचार है।पहले ये सारी चिट्ठियां नेहरू मेमोरियल के पास थीं। लेकिन 2008 में सोनिया गांधी ने वहां से 51 डिब्बे (कार्टन) अपना एक प्रतिनिधि भेजकर मंगवाए। लिहाजा, एक बार फिर अब नेहरू मेमोरियल के सदस्य और इतिहासकार रिजवान कादरी ने इन्हें वापस मांगने के लिए लेटर लिखा है। ये लेटर राहुल गांधी को लिखा गया है कि वे नेहरू से जुड़े दस्तावेजों के वे 51 डिब्बे लौटाएं जो सोनिया गांधी ले गई थीं।

वहीं, भाजपा सांसद और प्रवक्ता संबित पात्रा ने तो आरोप लगाए हैं कि नेहरू और माउंट बेटन की वाइफ के बीच जो खत लिखे गए थे, उसे गायब कर दिया है। नेहरू और जय प्रकाश नारायण के बीच जो संवाद हुआ था वो राष्ट्र की सम्पत्ति थी और उन लेटर को वापस किया जाना चाहिए। संबित कहते हैं, ‘मुझे इस बात की उत्सुकता है कि नेहरू जी ने एडविना माउंटबेटन को क्या लिखा होगा जिसे सेंसर करने की आवश्यकता थी।

वहीं, इतिहासकार कादरी ने पत्र लिखकर कहा है कि राहुल अपनी माताजी से बात करिए और ये सारे पेपर्स लौटाइए क्योंकि ये राष्ट्र की धरोहर हैं। हर हिन्दुस्तानी को ये अधिकार है कि उनके पहले प्रधानमंत्री किससे क्या बात कर थे और कौन से दस्तावेजों पर साइन कर रहे थे, ये देश को पता होना चाहिए। कादरी ने आगे कहा कि सोनिया गांधी से कोई जवाब नहीं मिलने के बाद ही उन्होंने राहुल गांधी को एक और पत्र लिखा। बता दें कि पीएमएमएल सोसाइटी का कार्यकाल 4 नवंबर 2024 को समाप्त होने वाला था, लेकिन संस्कृति मंत्रालय ने इसे 13 जनवरी 2025 तक दो महीने का विस्तार दिया है।

इस मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि प्रधानमंत्री संग्रालय के अधिकारियों द्वारा बरती गई इतनी बड़ी लापरवाही की बात कोई नहीं कर रहा है। इससे आशंका पैदा होती है कि संभव है कि इससे भी बड़ी बड़ी लापरवाही हमारे अधिकारियों ने की हो, जिससे राष्ट्रहित का मसौदा देशी-विदेशी लोगों तक पहुंच चुका है। इस बारे में गहन जांच होनी चाहिए और स्पष्ट नियमन बनाए जाने चाहिए। यदि है तो उसे सख्ती पूर्वक लागू किया जाए। यह सियासत से ज्यादा महत्वपूर्ण बात है।

नेहरू के गायब कर दिए गए पत्रों के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अभिव्यक्ति की आजादी से लेकर आपातकाल आदि से जुड़े संविधान संशोधनों का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर 'एक परिवार के हित' में संविधान संशोधन करते रहने का आरोप लगाया। राज्यसभा में चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि संशोधनों के दौरान कांग्रेस की सरकारों ने न तो प्रक्रिया का पालन किया और न ही संविधान की भावना का कोई सम्मान किया। इसलिए संभव है कि पत्र मिल जाएं तो ये आरोप पुष्ट हो जाएं।

वहीं, राज्यसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष

मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर राज्यों को आरक्षण को लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू की ओर से लिखे गए पत्र के बारे में 'तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर' देश को गुमराह करने का आरोप लगाया। साथ ही, माफी की मांग की। खरगे ने कहा कि पहला संशोधन सविधान सभा के सदस्यों ने किया था, जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी शामिल थे। अब सच या है, और झूठ क्या है, ये तो पत्र ही रहस्योद्घाटन करेंगे, बशर्ते कि वह सही सलामत मिल जाएं।

यदि ये पत्र मिल गए तो नेहरुकालीन कांग्रेस के रिकॉर्ड को तोड़ चुकी भाजपा अब कुछ ऐसे भी यत्न करेगी जिससे वह कांग्रेस मुक्त भारत के 'महात्मा गांधी के स्वप्न' और अपने अभियान के लक्ष्य को पूरा कर सके। इसीलिए तो सत्ता के ग्यारहवें वर्ष में उसे इन पत्रों की याद आई है। यदि एजेंसी छापामारी करें तो बहुतेरे महत्वपूर्ण रिकॉर्ड नेताओं के अलमारियों में मिल जाएंगे, क्योंकि कभी वो उनसे जुड़े हुए थे और किसी को फंसाने के लिए उपयुक्त समय पर उनका उपयोग करेंगे लेटर बम की तरह!

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