जिन आंकड़ों पर नीतीश कुमार को शर्मिंदा होना चाहिए, उसे गर्व के साथ पेश कर रही है सरकार
विपक्षी दलों के हंगामा के बीच जिस अंदाज में बिहार सरकार ने इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश किया उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। बिहार शायद देश का इकलौता ऐसा अनोखा राज्य है जिस राज्य में कोई भी राजनीतिक दल अपने आप को बिहार की दुर्दशा के पाप से अलग नहीं रख सकता है।
बिहार की जेडीयू-आरजेडी गठबंधन सरकार ने मंगलवार को बिहार विधानसभा में जातिगत जनगणना से जुड़े आंकड़ों को पेश कर दिया। सरकार ने इन आंकड़ों में राज्य में आबादी की शैक्षणिक स्थिति के बारे में जानकारी दी है। यह भी बताया कि राज्य में किस जाति में कितने प्रतिशत लोग गरीब हैं। किस जाति के कितने प्रतिशत लोग शिक्षित हैं।
विपक्षी दलों के हंगामा के बीच जिस अंदाज में बिहार सरकार ने इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश किया उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। बिहार शायद देश का इकलौता ऐसा अनोखा राज्य है जिस राज्य में कोई भी राजनीतिक दल अपने आप को बिहार की दुर्दशा के पाप से अलग नहीं रख सकता है। बिहार की दयनीय हालत का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि जिस रिपोर्ट पर वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, वहां के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव एवं उनके पिता लालू यादव और कुछ हद तक विपक्षी भाजपा को भी शर्मिंदा होना चाहिए। उस रिपोर्ट को नीतीश सरकार ने गर्व के साथ सदन के अंदर पेश कर दिया।
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बिहार में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर 1990 में भाजपा के समर्थन से लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1990 में नीतीश कुमार लालू यादव के साथ थे। राबड़ी देवी के भाइयों के बढ़ते प्रभाव और नीतीश की मौजूदगी में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव द्वारा राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के साथ किए गए व्यवहार के बाद नीतीश कुमार ने लालू यादव से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई। भाजपा के साथ मिलकर लड़ते रहे। और फिर फाइनली 15 साल बाद वर्ष 2005 में नीतीश कुमार, लालू परिवार (राबड़ी देवी) को बिहार की सत्ता से हटा कर बिहार के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद नीतीश कुमार लगातार 8 साल तक भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री रहे। भाजपा ने सिर्फ समर्थन ही नहीं दिया बल्कि सरकार में शामिल भी रही। नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय फलक पर आने के बाद नीतीश कुमार कभी भाजपा के साथ तो कभी लालू यादव के साथ मिलकर सरकार बनाते रहे। नीतीश कुमार के उपमुख्यमंत्री और मंत्री तो बदलते रहे लेकिन मुख्यमंत्री पद नीतीश कुमार के पास ही रहा। पहले लालू यादव फिर उनकी पत्नी और फिर नीतीश कुमार, ये तीनों मिलकर 1990 के बाद से बिहार पर राज कर रहे हैं, यानी पिछले 33 वर्षों से बिहार के भाग्य विधाता बने हुए हैं और उसके बाद भी बिहार की हालत कितनी दयनीय हो गए हैं, यह इन्ही की सरकार द्वारा विधानसभा में पेश किए गए आंकड़े बताते हैं।
जरा इन आंकड़ों पर गौर कीजिए। बिहार सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़े के मुताबिक राज्य में 32.1 फीसदी लोग ऐसे हैं जो कभी स्कूल ही नहीं गए हैं। बिहार की 22.67 आबादी ने सिर्फ पहली से पांचवी तक की शिक्षा हासिल की है। कक्षा 11 से 12 तक पढ़ने वाले लोगों का आंकड़ा सिर्फ 9.19 फीसदी है और बिहार में ग्रेजुएट तक कि पढ़ाई करने वाले लोग सिर्फ 7 फीसदी ही है।
सामान्य वर्ग की बात तो छोड़ ही दीजिए लेकिन जिस धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के नाम पर लालू-नीतीश पिछले 33 वर्षों से बिहार पर राज कर रहे हैं उस बिहार में मुसलमानों की बात करें तो 25.84 फीसदी शेख गरीब है। पठान में 22.2 फीसदी और सैयद में 17.61 फीसदी परिवार अभी भी गरीब है। सामाजिक न्याय के नाम पर मसीहा बनने वाले लालू/नीतीश के 33 वर्षों के राज के बावजूद 29.87 फीसदी तेली, 34.56 फीसदी मल्लाह, 32.99 फीसदी कानू, 34.75 फीसदी धानुक, 35.88 फीसदी नोनिया,38.37 फीसदी नाई परिवार गरीब है।
किसी भी राज्य पर 33 वर्षों तक राज करने वाले राजनीतिक दलों के लिए यह आंकड़ा अपने आप में काफी शर्मनाक है कि आज भी बिहार में सामान्य वर्ग में गरीब परिवारों की संख्या 25.09 फीसदी है। आरक्षण का लाभ हासिल करने के बावजूद, पिछड़ा वर्ग के तहत आने वाले लोगों में 33.16 फीसदी परिवार गरीब हैं तो वहीं अत्यंत पिछड़ा से ताल्लुक रखने वाले 33.58 फीसदी परिवार गरीब हैं। अनुसूचित जाति में 42.93 फीसदी गरीब परिवार हैं तो वहीं अनुसूचित जनजाति में 42.70 फीसदी परिवार गरीब है।
बिहार की इस हालत के लिए निश्चित तौर पर बिहार में राज करने वाले नेता तो जिम्मेदार हैं ही लेकिन इसके साथ-साथ बिहार के मतदाता भी कम जिम्मेदार नहीं है क्योंकि इस बुरी हालत के बावजूद बिहार के हुक्मरान बड़े गर्व के साथ इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश कर रहे हैं और आरक्षण का लॉलीपॉप देकर एक बार फिर से सामाजिक न्याय के नाम पर दलित, पिछड़े और अत्यंत पिछड़े वर्ग से आने वाली जातियों का मसीहा बनने की कोशिश कर रहे हैं और जनता इन्हें मसीहा बना भी देगी। कोई इनसे सवाल नहीं पूछेगा कि बिहार की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन है? आरक्षण के बाद भी बिहार के अनुसूचित जाति और ओबीसी के समाज में इतनी ज्यादा गरीबी क्यों है ? आखिर इन तक आरक्षण का लाभ नहीं पहुंच पाने के लिए जिम्मेदार कौन है?
- संतोष पाठक,
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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