भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी ने जो कुछ कमाया था उसे लंदन में गंवा दिया
राहुल गांधी लोकसभा तक को अपनी सियासत का अखाड़ा बनाने से नहीं चूकते हैं, एक तो राहुल गांधी लोकसभा में आते ही बहुत कम हैं और आते भी हैं तो वह लोकसभा के भीतर गुरिल्ला शैली में इंट्री करते हैं और अपनी बात कहकर नौ-दो ग्यारह हो जाते हैं।
कांग्रेस की कमान एक गैर गांधी नेता के हाथों में जाने के बाद भी ऐसा लगता नहीं है कि कांग्रेस के भीतर कुछ बदला है। आज भी कांग्रेस की सियासत गांधी परिवार के ही इर्दगिर्द घूम रही है। राहुल गांधी ही कांग्रेस का फेस बने हुए हैं। वहीं कांग्रेस के नये अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, गांधी परिवार के यस मैन से अधिक नजर नहीं आ रहे हैं। यदि यह कहा जाए कि गांधी परिवार ने पार्टी पर अपना वर्चस्व बनाये रखने और कांग्रेस की असफलता का ठीकरा खड़गे पर फोड़ने के लिए उनके (खड़गे) कंधों का सहारा लिया है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
उधर, खड़गे और उनकी ‘टीम’ का अधिकांश समय गांधी परिवार उसमें भी राहुल गांधी के बचाव में गुजर जाता है। यह वह नेता हैं जो अपनी सियासत को बचाए रखने के लिए कांग्रेस को गर्त में झोंक देने से भी परहेज नहीं करते हैं। वहीं राहुल गांधी एक के बाद एक विवाद पैदा करते जाते हैं। उनकी बचकानी हरकतें थमने का नाम ही नहीं लेती हैं। यही वजह है राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से जो कुछ ‘कमाया’ था उसे उन्होंने ब्रिटेन में विवादित बयान देकर गंवा दिया। बयान भी ऐसा वैसा नहीं। वह बाहरी ताकतों से हिन्दुस्तान के लोकतंत्र को बचाने की फरियाद कर रहे हैं। देश की संवैधानिक संस्थाओं पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करना, उद्योगपतियों का अपमान करना, संसद और स्पीकर की विश्वसनीयता पर संदेह पैदा करना, देश के महापुरुषों और स्वतंत्रता सेनानियों को बार-बार अपमानित करना, विरोधियों को अनाप-शनाप तरीके से आरोपी बनाना, चीन जो हमेशा भारत को आंखें दिखाता है उसका महिमामंडन करना राहुल गांधी का शगल बन गया है।
राहुल गांधी लोकसभा तक को अपनी सियासत का अखाड़ा बनाने से नहीं चूकते हैं, एक तो राहुल गांधी लोकसभा में आते ही बहुत कम हैं और आते भी हैं तो वह लोकसभा के भीतर गुरिल्ला शैली में इंट्री करते हैं और अपनी बात कहकर नौ-दो ग्यारह हो जाते हैं। वह यहां तक आरोप लगाते हैं कि लोकसभा में उन्हें बोलने नहीं दिया जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि राहुल गांधी किसी भी विषय पर पांच-दस मिनट गंभीरता से बोलने की कूवत ही नहीं रखते हैं। इसीलिए वह अपनी भड़ास देश के बाहर जाकर निकालते हैं। अब तो कांग्रेस में यह चलन बन गया है कि जब भी लोकसभा का सत्र शुरू होता है, किसी न किसी मुद्दे पर हंगामा खड़ा करके संसद नहीं चलने देते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय राहुल गांधी राफेल फाइटर विमान खरीद में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए मोदी के खिलाफ चौकीदार चौर है का नारा दे रहे थे तो 2024 के चुनाव आते-आते इसे उद्योगपति अडानी और मोदी से जोड़ कर मोदी को चोर बता रहे हैं।
इसे भी पढ़ें: Anurag Thakur ने फिर की राहुल गांधी से माफी की मांग, बोले- झूठ बोलना उनकी आदत बन गई है
मर्यादा तो तब तार-तार हो गई, जब राहुल गांधी ने ब्रिटेन दौरे पर वही पुराना बेसुरा राग छेड़ा कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो रहा है। उन्होंने पश्चिमी देशों से भारत में लोकतंत्र की कथित बहाली को लेकर हस्तक्षेप करने तक का अनुरोध कर दिया। वह यह भूल गए कि जिस ब्रिटेन में वह भारत की बदनामी कर रहे थे उसी ब्रिटेन ने आजादी से पहले भारतवासियों के साथ जानवरों से भी बुरा सलूक किया था। स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को दस वर्ष से अधिक तक काल कठोरी में रखा गया, उन्हें कोल्हू में बैल की जगह जोता जाता था। क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राज मंगल पाण्डेय जैसे तमाम आजादी के मतवालों को मौत के घाट उतार दिया गया। उसी ब्रिटेन और अन्य विदेशी ताकतों से राहुल गांधी हिन्दुस्तान के लोकतंत्र को बचाने की नौटंकी कर रहे हैं जो पूरी तरह से भारत के आंतरिक मामलों में दखल दें।
बकौल राहुल गांधी, ‘भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, यहां लोकतंत्र पर आघात का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।’ कितनी हैरानी की बात है कि जिस पार्टी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया, उसी पार्टी का एक नेता ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य यूरोप देशों से भारत के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप का अनुरोध कर रहे हैं। बड़ी विडंबना यह है कि यह सब स्वतंत्रता के अमृतकाल में हो रहा है और यह सब वह शख्स कर रहा है जो कांग्रेस की मनमोहन सरकार के समय संसद से पास बिल को फाड़ देता है। पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ चलाये जा रहे आतंकवाद और उसके आतंकवादियों के द्वारा किए गए बम धमाकों से हुई हमारे जवानों की मौतों को इसके द्वारा बम धमाके में हुई मौत बताया जाता है। हिन्दुस्तानी सेना जब पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करती है तो राहुल और उनके करीबियों द्वारा इसके सबूत मांगे जाते हैं। कांग्रेस के ही एक पीएम कहते हैं देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। स्वयं घोटाले के आरोप में बेल पर बाहर घूम रहे राहुल गांधी को चीन की विस्तारवादी नीति काफी रास आती है। वह चीन की कम्युनिस्ट सरकार की शान में कसीदे पढ़ते हैं। उसके नेताओं से चुपके-चुपके मिलते हैं।
इस बात पर किसी को एतराज नहीं है कि राहुल गांधी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बड़े आलोचक बन गए हैं, लेकिन जब सह संघ और मोदी की आड़ में देश से खिलाफत करेंगे तो उनसे सवाल तो पूछा ही जाएगा और माफी मांगने को भी कहा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति उनकी घृणा उनके भाषणों में सामान्य रूप से ध्वनित होती है। इसमें अक्सर वह ऐसा कह जाते हैं, जिसका सच से कोसों नाता नहीं होता। उनके सिलसिलेवार झूठ के तमाम उदाहरण हैं। वह बिना किसी सबूत के झूठ पर झूठ बोलते रहते हैं और गांधी परिवार की चाटुकारिता करने वाले नेता उनकी सही-गलत बात पर वाहवाही करते और ताल ठोंकते रहते हैं। राहुल कहते हैं जीएसटी को बिना बहस के पारित कर दिया गया। शायद उन्हें पता ही नहीं कि जीएसटी का विचार सबसे पहले यूपीए की सरकार ने ही रखा था। इसी प्रकार नोटबंदी पर वह हंगाम मचाते हैं जबकि नोटबंदी के बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता ने बीजेपी को बड़े अंतर से जिताया था। जबकि संसद ने 101वें संविधान संशोधन के माध्यम से जीएसटी पर मुहर लगाई थी।
स्वतंत्रता के बाद लंबे समय तक देश में कायम रहे कांग्रेस राज में नेहरू-गांधी परिवार की अलोकतांत्रिक गतिविधियों की लंबी सूची है। इसकी शुरुआत जवाहरलाल नेहरू के दौर से ही शुरू हो गई थी, जिन्होंने संविधान के प्रथम संशोधन के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘युक्तियुक्त निर्बंधन’ लागू किए। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी के सुझाव पर नेहरू ने 1959 में केरल की कम्युनिस्ट सरकार को अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग से हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया। इसमें दूसरे दलों के उभार से अप्रसन्नता का भाव निहित था। इंदिरा गांधी ने आपातकाल की तानाशाही में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को कैद कराया। संसद और न्यायपालिका को बंधक बनाया। जबरन नसबंदी का आक्रामक अभियान चलाया, जिसमें मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया। जब राजीव गांधी का नाम बोफोर्स घोटाले में आया तो मीडिया की आवाज दबाने के लिए वह 1988 में एक दमनकारी कानून लेकर आए। ऐसे अलोकतांत्रिक कृत्यों की सूची अंतहीन है। ऐसे में कांग्रेस के किसी नेता विशेषकर गांधी परिवार के सदस्य को यह शोभा नहीं देता कि वह लोकतंत्र की विशेषताओं को लेकर कोई उपदेश दे।
दरअसल, राहुल गांधी की समझ लगातार देश विरोधी बनती जा रही है। वह विदेश में जाकर देश को हिन्दू आतंकवाद से खतरा बताते हैं। यूपीए की मनमोहन सरकार रामसेतु और भगवान राम के अस्तित्व को नकारती है तब राहुल चुप रहते हैं। राहुल के अनुसार आरएसएस एक गुप्त संगठन है जो लोकतंत्र के अवमूल्यन में लगा है। वह भूल जाते हैं कि पंडित जवाहरल लाल नेहरू तक संघ के समाजिक कार्यों की तारीफ कर चुके हैं। राहुल के लिए यह याद रखना भी आवश्यक है कि उनकी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल के रूप में जो फासीवादी शासन थोपा था, उसमें संघ के 3,254 लोग जेल गए थे। आंकड़ों के अनुसार सबसे अधिक 772 नेता जनसंघ के कैद किए गए थे। उन्हें उत्पीड़नकारी कानून मीसा के अंतर्गत कैद किया गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि देश में असली फासीवादी कौन है? राहुल का दावा है कि संसद में विपक्षी सांसदों की आवाज दबाई जा रही है और सरकार की आलोचना पर सांसदों के माइक बंद कर दिए जाते हैं। यह दावा नितांत निराधार है।
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, गत वर्ष शीत सत्र में राहुल की उपस्थिति नगण्य थी। इस बजट सत्र में उनकी उपस्थिति सुधरने के बाद मात्र 40 प्रतिशत हुई है। पिछले साल वह संसद में केवल एक बार बोले। उनका एक दावा यह भी है कि मोदी सरकार उनके फोन टैप करा रही है और उनकी सरकार में ऐसा नहीं होता था। यह दावा ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है, जिनके परिवार के शासन में मलय कृष्ण धर सहित आइबी के तमाम अधिकारियों ने फोन टैपिंग और अन्य शरारतपूर्ण गतिविधियों के साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं। मोदी और सिखों को लेकर उनका प्रलाप इन सभी झूठों से भी बदतर है। कैंब्रिज में उन्होंने कहा कि मोदी ‘देश को बांट रहे हैं।’ उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित एक सिख की ओर संकेत करते हुए कहा कि मोदी की नजरों में अल्पसंख्यक दोयम दर्जे के नागरिक हैं। यह न केवल भ्रामक, बल्कि छल-कपट से भी ओतप्रोत है। यह विभिन्न वर्गों में विभाजनकारी प्रवृत्ति को भड़काने का प्रयास है, जिसकी कड़ी निंदा होनी चाहिए। राहुल भले ही लोकतंत्र के प्रति अपनी पार्टी की संदिग्ध प्रतिबद्धताओं को अनदेखा करने का प्रयास करें, लेकिन उनके पास ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं जिससे वह देश के करोड़ों लोगों को अतीत की बातें भुलाने में सफल हो जाएं।
भारत के आंतरिक मामलों में दखल से जुड़ी राहुल गांधी की विनती सुनकर डॉ. बीआर आंबेडकर की दूरदर्शिता याद आती है। आंबेडकर ने राष्ट्र और भावी पीढ़ियों को विश्वासघात के परिणामों को लेकर आगाह किया था। उन्होंने कहा था कि यह बात मुझे बहुत कचोटती है कि भारत ने पूर्व में न केवल अपनी स्वतंत्रता गंवाई, बल्कि यह स्वतंत्रता अपने ही कुछ लोगों के विश्वासघात और छल-कपट के कारण छिनी। राहुल गांधी और उनके चाटुकार जिस तरह की सियासत कर रहे हैं उससे न देश का भला हो रहा है, न ही कांग्रेस को कोई फायदा मिल रहा है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यही कहा जाएगा, 'बर्बाद गुलिस्ता करने को एक ही उल्लू काफी है, हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम गुलिस्ता क्या होगा।’
-अजय कुमार
अन्य न्यूज़