परिवार में सुलह होने से गद्गद् हैं मुलायम सिंह यादव, सपा में फिर से जोश भरने में लगे हैं
साल 2012 तक की यूपी की राजनीति का तीन दशक का इतिहास लिखा जाये तो पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव हमेशा मुख्य किरदार के रूप में रहते थे। वह ही बसपा को चुनौती देते थे तो राष्ट्रीय दल कहलाने वाली कांग्रेस और भाजपा भी यूपी में फलफूल नहीं पाईं थीं।
समाजवादी पार्टी में पारिवारिक कलह दूर होते ही समाजवादी पार्टी के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी राजनैतिक परिदृश्य पर नजर आने लगे हैं। चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच सुलह की कोशिश में लम्बे समय से लगे राजनीति के माहिर खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव की अपनी कोशिशें परवान चढ़ीं तो नेताजी के चेहरे की खुशियां भी बिखरने लगी हैं। अब वह पार्टी कार्यालय में जाते हैं, बीजेपी हो या फिर अन्य विरोधी दलों के नेता, सब पर हमला भी बोलते हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सपा की लाल टोपी पर जो उंगली उठाई थी, उसका भी जवाब मुलायम ने अपने ही अंदाज में देकर साबित कर दिया है कि उन्हें अभी हल्के में नहीं लिया जाए, उनमें अभी भी ‘अखाड़ा’ जीतने की हैसियत है।
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गौरतलब है कि साल 2012 तक की यूपी की राजनीति का तीन दशक का इतिहास लिखा जाये तो पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव हमेशा मुख्य किरदार के रूप में रहते थे। वह ही बसपा को चुनौती देते थे तो राष्ट्रीय दल कहलाने वाली कांग्रेस और भाजपा भी यूपी में फलफूल नहीं पाईं थीं। एक दौर वह भी था जब मुलायम सत्ता में रहें या नहीं उनकी चर्चा यूपी से लेकर दिल्ली तक में होती जरूर थी। यह और बात है कि पिछले पांच वर्षों में वह राजनीतिक गतिविधियों से दूरी ही बनाए रहे, लेकिन इस दौरान परिवार में पड़ी फूट उन्हें जरूर सताती रही। इसी का फल है कि आज समाजवादी परिवार में सुलह हो गई है। मुलायम इससे बेहद खुश हैं, इसीलिए लम्बे समय के बाद आजकल मुलायम का पुराना अंदाज देखने को मिल रहा है। वह (मुलायम) अक्सर ही पार्टी कार्यालय में भीष्म पितामाह की तरह डटे मिल जाते हैं। इसीलिए चुनावी फिजां में एक बार फिर पुराना नारा ‘जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है, गूँजने लगा है।
यह और बात है कि मुलायम जब जोश में भरकर बोलते हैं तो उम्र का असर जरूर उनकी बोली में दिखता है, इसीलिए कई बार बोलते-बोलते रूक भी जाते हैं, लेकिन फिर माइक से उनकी आवाज गूंजने लगती है तो समाजवादियों में नया जोश भर जाता हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में दांव-पेच और संघर्ष की अपने अंदाज में परिभाषा लिखने वाले पुराने ‘पहलवान’ मुलायम सिंह यादव आजकल अपनी शारीरिक भाषा (बॉडी लैंग्वेज) से कार्यकर्ताओं को पाठ पढ़ाते हैं। फिर जब थक जाते हैं तो सुरक्षाकर्मियों के सहारे अपनी कार में बैठ कर घर की ओर रवाना हो जाते हैं। नेताजी के खड़े होते ही उनके पीछे पार्टी के कार्यकर्ता और नेता भागने लगते हैं।
खैर, बीते पांच वर्षों में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की राजनीति से दूरी बनाए रखने की बात होती है तो आम से लेकर खास समाजवादी यही कहने लगते थे कि काफी समय से बीमार चल रहे हैं, लेकिन अब कभी-कभार ही सही लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित पार्टी मुख्यालय पहुंच ही जाते हैं। भले संगठन की बागडोर पूरी तरह अखिलेश के हाथ में हो, लेकिन मुलायम अभी भी पूरी ठसक के साथ खुलकर सियायसत पर बात करते हैं। पिछले वर्ष 22 नवंबर, 2021 को मुलायम लम्बे समय बाद अपना जन्मदिन मनाने मुख्यालय पहुंचे थे और कार्यकर्ताओं से मुलाकात की थी। तब से फिर आवास पर थे, लेकिन चुनाव करीब आते ही चुनौतियों को समझते हुए इधर वह लगातार पार्टी कार्यालय पहुँच रहे हैं। चुनावी रणनीति बनाने में माहिर मुलायम जानते हैं कि कार्यकर्ताओं के बीच उनके खड़े रहने के मायने क्या हैं।
गौर करने वाली बात है कि पिछले दिनों एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समाजवादी पार्टी की ‘लाल टोपी’ को खतरनाक बताया था। तब से भाजपा के तमाम नेता इसी लाइन पर चलते हुए सपा पर तंज कस चुके हैं। उसका जवाब लगातार सपा मुखिया अखिलेश यादव भी दे रहे थे, लेकिन तब लाल टोपी के साथ लाल सदरी भी पहनकर कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचे मुलायम ने कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया था और कभी मोदी को पीएम बनने का आशीर्वाद देने वाले मुलायम सख्त लहजे में बोले कि समाजवादी पार्टी की लाल टोपी से भाजपा के बड़े नेता डर गए हैं। यह सिर्फ प्रति उत्तर नहीं था, क्योंकि इस बात के साथ मुलायम की जोरदार खिलखिलाहट कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा देने वाली थी। यही मुलायम की खासियत है, महज कुछ शब्दों से अपने कार्यकर्ताओं में जोश भर देते हैं और यही वजह है कि आज भी सपाई उनसे सीख लेते हैं।
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मुलायम जब पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से बातचीत करते हैं तो उन्हें उत्साह से भरने के लिए कहते हैं ‘उम्मीद है, जनता में विश्वास है...’, ‘हम सरकार जरूर बनाएंगे, हम जो कहते हैं, वह वादा पूरा करते हैं...’। यही नहीं राजनीतिक बातों के बीच बार-बार यह बात आई- ‘देखो, इतनी सर्दी में हमारे कितने कार्यकर्ता आए हैं। यह मामूली बात नहीं है।’ मुलायम अपने कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा और पार्टी के लिए जरूरत इसलिए भी हैं, क्योंकि वह राजनीति की चलती-फिरती पाठशाला कहे जाते हैं। पहली बार 1967 में विधायक बने मुलायम ने राजनीति के पथ पर कदम बढ़ाया तो फिर रफ्तार बढ़ती ही गई। आठ बार विधायक चुने गए सपा संरक्षक तीन बार देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनका कार्यकाल 1989 से 91, 1993 से 95 और 2003 से 2007 तक रहा। सात बार सांसद बने मुलायम 1996 से 98 तक देश के रक्षा मंत्री का दायित्व भी संभाल चुके हैं। 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना करने वाले मुलायम सिंह 1982 से 85 तक विधान परिषद के सदस्य रहे।
बहरहाल, राजनीति के जानकार यह नहीं मान रहे हैं कि समाजवादी परिवार में सब कुछ ठीकठाक हो गया है, चाचा शिवपाल से भतीजे अखिलेश की सुलह हो गई है तो चुनावी बेला में राजनैतिक परिदृश्य से प्रो0 रामगोपाल यादव का नादारद होना, कई सवाल खड़े कर रहा है।
-अजय कुमार
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