मणिशंकर अय्यर का सुझाव राहुल की नेतृत्व क्षमता पर सवाल
अय्यर का जो सुझाव है उसका मतलब यह भी है कि पार्टी नेता भी अब मानने लगे हैं कि कांग्रेस में अपने बलबूते जीतने की शक्ति नहीं रही। यह अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल भी है।
पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस में उठ रही आमूलचूल बदलाव की माँग के बीच वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने सुझाव दिया है कि पार्टी को 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबले के लिए राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाना चाहिए। उनका कहना है कि 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन बना कर उसमें देश भर की तमाम क्षेत्रीय पार्टियों को शामिल किया था और सत्ता हासिल की थी। 2014 में संप्रग काफी हद तक बिखर गया था और कांग्रेस ने एक तरह से अकेले ही चुनाव लड़ा और अपना अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन करते हुए लोकसभा में मात्र 44 सीटों पर सिमट गयी। अय्यर ने उत्तर प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा है कि यदि भाजपा को 42 प्रतिशत वोट मिले हैं तो इसका मतलब 58 प्रतिशत वोट भाजपा के खिलाफ पड़े हैं लेकिन यह 58 प्रतिशत वोट एकजुट नहीं हो पाने के कारण बिखर गये और भाजपा को लाभ हुआ।
अय्यर का कहना है कि भाजपा को हराने के लिए महागठबंधन बनाना ही पड़ेगा और सभी पार्टियों के नेताओं को अहं का त्याग कर इसका हिस्सा बनना चाहिए। गठबंधन में शामिल होने की शर्त, नेतृत्व, कार्यक्रम आदि भी आम सहमति से किये जाने चाहिए। अय्यर का आरोप है कि भाजपा संसदीय लोकतंत्र को राष्ट्रपति प्रणाली में बदलती जा रही है और सारी सत्ता एक व्यक्ति तक केंद्रित कर दी गयी है जोकि लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। अय्यर गठबंधन की सफलता के लिए बिहार का उदाहरण भी दे रहे हैं जहां धुर विरोधी लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने एक साथ आकर जो गठबंधन बनाया उसने भाजपा को विधानसभा चुनावों में धराशायी कर दिया। उनका कहना है कि लोकसभा चुनावों में भी सभी दल अलग-अलग लड़े थे जिसका सीधा फायदा भाजपा को हो गया।
दूसरी तरह यदि अय्यर के सुझाव की व्यवहारिकता को देखें तो उस पर अमल नामुमकिन नहीं तो बहुत मुश्किल तो जरूर है। जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस तो कांग्रेस के साथ आ जाएगी लेकिन उसी गठबंधन में पीडीपी कैसे शामिल होगी? हरियाणा में कांग्रेस को अपनी धुर विरोधी आईएनएलडी को सहयोगी बनाना आसान नहीं होगा। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से हाथ मिला लिया है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि बसपा कैसे इस गठबंधन का हिस्सा बनेगी? इसी तरह ओडिशा में बीजद, आंध्र प्रदेश में तेदेपा, तेलंगाना में टीआरएस का कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ना मुश्किल है तो तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक और द्रमुक तथा पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और वामपंथियों का एक साथ कांग्रेस के साथ आना मुश्किल है। सवाल एक और उठेगा कि इस मोर्चे का नेतृत्व कौन करेगा? राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का दावा मजबूत होगा तो चुनावी जीत तथा प्रशासनिक अनुभव के पैमाने पर नीतीश कुमार, नवीन पटनायक और ममता बनर्जी की भी अपनी अपनी दावेदारी होगी।
बहरहाल, अभी देखने वाली बात यह होगी कि कांग्रेस की लगातार हार (पंजाब को छोड़ दें) के बाद क्या क्षेत्रीय दल या अन्य पार्टियां उससे जुड़ने में रुचि दिखाएंगी। उत्तर प्रदेश के बारे में भी कहा जा रह है कि समाजवादी पार्टी को कांग्रेस के साथ गठबंधन भारी पड़ गया। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी संगठन में ढांचागत बदलाव की बात कही है इसलिए अब सभी निगाहें इस बात पर हैं कि कांग्रेस की मजबूती के लिए क्या-क्या कदम उठाये जाते हैं। अय्यर के सुझाव पर पार्टी का रुख भी आने वाले समय में पता चलेगा वैसे यह वही अय्यर हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी को 'चाय वाला' कह कर भाजपा को बड़ा चुनावी हथियार थमा दिया था। अय्यर का जो सुझाव है उसका मतलब यह भी है कि पार्टी नेता भी अब मानने लगे हैं कि कांग्रेस में अपने बलबूते जीतने की शक्ति नहीं रही। यह अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल भी है।
- नीरज कुमार दुबे
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