मोदी ने पुरानी व्यवस्था से ही ईमानदार सरकार चला कर दिखा दिया
मोदी ने इन पौने पांच सालों में देश की राजनीति का स्तर भी सुधारा है। इन पौने पांच सालों के दौरान पुरानी चली आ रही व्यवस्था से ही ईमानदार सरकार का संचालन करके मोदी ने लोगों की धारणा को बदलने का काम किया।
'मन की बात' कार्यक्रम के दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि एक महिला ने उनको कहा कि यह कार्यक्रम सुनते हुए महसूस होता है कि घर को कोई बड़ा-बुजुर्ग कुछ समझा रहा है। देश के इतिहास में अनेक ऐसे नेता व महापुरुष हुए हैं जिन्होंने जनसाधारण में अपनी पैठ बनाई जैसे स्वामी विवेकानंद ने देश में आध्यात्मिक पुनर्जागरण का शंखनाद किया। राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी जी ने देश का राजनीति के साथ-साथ धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में भी नेतृत्व किया। लोगों ने उन्हें बापू व महात्मा उपनामों से अलंकृत कर अपने दिलों में जगह दी। बच्चों को लुभाने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू सबके चाचा कहलाए परंतु वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल इन महापुरुषों की श्रेणी में बैठे दिखाई दे रहे बल्कि इनमें भी अपनी विलक्षण पहचान बनाते जा रहे हैं। वे समाज के सभी वर्गों का प्रबोधन करते दिख रहे हैं जो आज तक नहीं हो पाया। यह न अतिशयोक्ति है और न ही व्यक्ति विशेष की छवि निर्माण का प्रयास बल्कि धरातल की सच्चाई है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री और राजनीतिज्ञ होने के अतिरिक्त भी बहुत कुछ हैं। प्रधानमंत्री का पद देश का सम्मानित संवैधानिक सिंहासन है परंतु अपने गुणों व योग्यता के बल पर मोदी इससे ऊपर उठते दिखने लगे हैं।
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जिस तरह देश की राजनीति केवल विरोध के लिए विरोध करने को अभिशप्त है उसी तरह कुछ-कुछ शापित देश का बुद्धिजीवी लेखक वर्ग भी है जो कई बार सच्चाई को परस्पर बातचीत में तो स्वीकार करता है परंतु लोकोपवाद से लिखने में गुरेज करता है। या कह लें कि निष्पक्ष दिखने और व्यक्ति पूजा के आरोप लगने के भय से अच्छे को अच्छा कहने से भी कतराता है। मुझे याद है कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले जब मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो मैंने एक लेख में उन्हें भारत का इब्राहिम लिंकन कह दिया तो सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा मीडिया तक कई तरह की आलोचना का शिकार होना पड़ा। कईयों ने तो मुझे 'भक्त' तक कहा जो उस समय मोदी प्रशंसकों को दी जाने वाली गाली गलौच के भाव वाली पदवी थी। लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उनके संघर्षमयी जीवन को लेकर उन्हें इससे मिलते-जुलते विशेषण मिले तो मैंने अपने आलोचकों को शर्मिंदा करना जरूरी नहीं समझा। कहा जाता है कि सभी सवालों के जवाब व्यक्ति नहीं दे सकता, कुछ जवाब समय से भी मिलते हैं। आज फिर मोदी के बारे में लिख रहा हूं तो पूरी आशंका है कि कुछ एक को यह भाएगा नहीं परंतु लोकवासना से भयभीत हो सच्चाई से पीठ मोड़ने वाला कायर मैं नहीं हो सकता।
राजनीतिक रूप से सभी जानते हैं कि आज की राजनीति में वाकपटुता, वकृतत्व शैली, व्यंग्यात्मक वाचन, नए-नए विशेषण गढ़ने जैसे अनेक गुणों में मोदी का कोई सानी नहीं है, परंतु उनके एक नेता होने के अतिरिक्त अन्य गुणों से देश उस समय परिचित हो पाया जब उन्होंने मन की बात कार्यक्रम शुरू किया। इसकी शुरूआत से पहले विरोधियों ने यह कहते हुए आलोचना शुरू कर दी कि वे रेडियो का राजनीतिक इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। विरोधियों की आशंका भी निराधार नहीं थी क्योंकि इससे पहले यही कुछ ही तो होता आ रहा था। देश के बड़े-बड़े नेता व प्रधानमंत्री तक स्तर के लोग राष्ट्र के नाम संबोधन तक में राजनीतिक छोंक लगाते रहे हैं, परंतु मोदी ने इस मिथक को तोड़ा।
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विजयादशमी के पर्व 3 अक्तूबर, 2014 के पहले 'मन की बात' कार्यक्रम में उन्होंने खादी, स्वच्छता अभियान, कौशल विकास और दिव्यांग विद्यार्थियों पर चर्चा की। अभी तक 51 मन की बात कार्यक्रम हो चुके हैं परंतु अभी तक किसी ने नहीं सुना कि मोदी ने इसमें कभी राजनीतिक रंग घोला हो। अपने इस कार्यक्रम के जरिए वे स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, कौशल विकास, स्टैंड अप इंडिया, खेलो भारत जैसे अभियानों को जनसाधारण लोगों के निजी जीवन का हिस्सा बना चुके हैं। स्वच्छ भारत अभियान का तो इतना असर हुआ कि आज आप कहीं प्रयोग के तौर पर भी सार्वजनिक जगह पर कूड़ा फेंको तो कई आंखें आपको घूरना शुरु कर देती हैं। यहां तक कि छोटे-छोटे बच्चे इस अभियान से अपने आप को जोड़ चुके हैं। मन की बात कार्यक्रम से जिस तरह से खेलों को प्रोत्साहन मिला उसका उदाहरण राष्ट्रमंडल व एशियाई खेलों में भारत का प्रदर्शन रहा है। यह बात ठीक है कि खेलों का स्तर सुधारने में अनेकों अन्य कारण भी रहे परंतु युवाओं को खेलों के साथ जोड़ने, खिलाड़ियों में जीत का जज्बा भरने, जीतने पर उन्हें प्रोत्साहित करने, हारने पर पुन: प्रयास करने, गुमनाम खिलाड़ियों की कथा देश के सामने लाने जैसे जज्बे को खुराक पानी देने का बहुत बड़ा काम मोदी ने किया है। केवल युवा ही नहीं बल्कि बच्चों, महिलाओं, प्रौढ़ों व वृद्धों तक को समय-समय पर उचित प्रबोधन दिया है मोदी ने। यूं ही नहीं कोई कहता कि उन्हें मोदी अपने परिवार के अभिभावक जैसे लगते हैं।
अभी हाल ही में आयोजित परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम में वे एक प्रेरक वक्ता (मोटीवेशनल स्पीकर) और मार्गदर्शक के रूप में दिखाई दिए। वे इससे पहले भी विद्यार्थियों को परीक्षा के ज्वर से बचने की कक्षा ले चुके हैं। परंतु अबकी बार उन्होंने विद्यार्थियों के साथ-साथ अध्यापकों व अभिभावकों का भी ऐसा मार्गदर्शन किया जो दुर्लभ से दुर्लभतम कहा जा सकता है और कम से कम आज के किसी अन्य नेता से तो इसकी अपेक्षा तक नहीं की जा सकती। चुनौती को अवसर, बुरी लत का सदुपयोग, अंकों की अंधी दौड़ से छुटकारा पाने के जो तरीके उन्होंने बताए वह अद्वितीय हैं। दूसरे शब्दों में उन्होंने बच्चों को तो सिखाया ही साथ में अध्यापकों को पढ़ाने व अभिभावकों को बच्चों की परवरिश के बेजोड़ नुक्ते बताए।
मोदी ने इन पौने पांच सालों में देश की राजनीति का स्तर भी सुधारा है। राजनीति को चाहे अभी भी उतने सम्मान की नजरों से न देखा जाता हो परंतु वह समय भी नहीं रहा जब रामलीला मैदान में धरने के दौरान समाजसेवी अन्ना हजारे सभी नेताओं को चोर कहते थे तो पूरा देश तालियां बजाता था। राजनीति में भ्रष्टाचार इस कदर व्याप्त था कि जनसाधारण लोग लोकपाल को ही रामबाण मानने लगे थे। इन पौने पांच सालों के दौरान पुरानी चली आ रही व्यवस्था से ही ईमानदार सरकार का संचालन करके मोदी ने इस धारणा को बदलने का काम किया। यही कारण है कि आज उसी अन्ना हजारे ने उसी लोकपाल की मांग को लेकर अपने रालेगण सिद्धी में छह दिन सत्याग्रह किया तो बहुत से लोग तो इससे अनभिज्ञ रहे। देश में फिर लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इसका परिणाम क्या होगा यह तो अभी से नहीं कहा जा सकता परंतु यह जरूर निश्चित है कि देश की जनता मोदी को जो भी भूमिका देगी उसी में वे बहुत कुछ नया और सकारात्मक ही पाएगी क्योंकि मोदी प्रधानमंत्री व नेता के अतिरिक्त भी बहुत कुछ हैं।
-राकेश सैन
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